SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 56
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५१ उत्तर -- - यह भी मोहनलाल की भूल ही है । यहां "लोक" शब्द लौकिक प्रन्थों के लिये प्रयुक्त नहीं हुआ । प्रत्युत व्यवहार में प्रयुक्त होने वाले शब्दों के लिये हुआ है | अतः तथा के साथ वेद पद का अध्याहार निरर्थक ही है । और २ । १ । ६५ ।। सूत्र पर जो वात्स्यायन लिखता है यथा लौकिके वाक्ये विभागेनार्थग्रहणात प्रमाणत्वमेवं वेदवाक्यानामपि विभागेनार्थग्रहणात् प्रमाणत्वं भवितुमर्हतीति । इसका यही अभिप्राय है कि यद्यपि वात्स्यायन ने “ वेदवाक्यानाम् ” पद के आगे "ब्राह्मण" पद नहीं पढ़ा, तथापि यहां औपचारिक भाव से ही वेद शब्द का प्रयोग हुआ है । औपचारिक भाव से इतना कह देने से ही ब्राह्मण वेद नहीं माने जासकते । प्रश्न - तुम्हारे पास क्या प्रमाण है कि यहां वेद शब्द का प्रयोग औपचारिक भाव से है । उत्तर - वात्स्यायन आदि मुनि जो वेद, ब्राह्मण को जानते थे, वे उनके विरुद्ध नहीं कह सकते थे। हम सिद्ध कर चुके हैं कि ब्राह्मण अपने को वेद से भिन्न वा मनुष्यकृत बताता है। पुनः वात्स्यायन इसके विरुद्ध कैसे समझ सकते थे । अतः उनका प्रयोग औपचारिक ही है । ब्राह्मण ग्रन्थों के वेद न होने में और भी प्रमाण देखो । (झ) शतपथ ब्राह्मण १४ | ६ | १० | ६ ॥ में कहा है ऋग्वेदो यजुर्वेदः सामवेदो ऽथर्वाङ्गिरस इतिहासः पुराणं विद्या उपनिषदः श्लोकः सूत्राण्यनुव्याख्यानानि व्याख्यानानि वाचैव सम्राट् प्रजायन्ते । लग भग ऐसा ही पाठ शतपथ १४ । ५ । ४ । १० ॥ में भी आता है । यहां सूत्रादिवत् उपनिषदों को स्पष्ट वेदों से पृथक् माना है । जब ब्राह्मणकार स्वयं ब्राह्मण विभागों अर्थात् उपनिषदों को वेद नहीं मानते, तो फिर ब्राह्मण ग्रन्थ वेद कैसे हो सकते हैं । * Jain Education International * आर्ष ग्रन्थों का तो क्या कहना, उस स्मृति में भी जो याज्ञवल्क्य के नाम मढ़ी जाती हैं, इसी विचार के चिन्ह पाये जाते हैं। देखो अध्याय ३यतो वेदाः पुराणं च विद्योपनिषदस्तथा । - श्लोकाः सूत्राणि भाष्याणि यत्किञ्चिद्वाभयं क्वचित् ।। १८१ ।। बेचारा विश्वरूप इस आपत्ति को देख कर कहता है उपनि प्रदां पृथग्वचनं वेदभागान्तरस्य तादर्ध्यप्रदर्शनार्थम् । ―― For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016086
Book TitleVaidik kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwaddatta, Hansraj
PublisherVishwabharti Anusandhan Parishad Varanasi
Publication Year1992
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy