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________________ २८ लाहौर संस्करण के सर्वोत्तम कोष में यह नहीं है । और दूसरा श्लोक केवल दाक्षिणत्य पाठ में ही है । उस के स्थान में दूसरे दोनों पाठ कुछ और ही लिखते हैं। इस का प्रक्षिप्त होना निर्विवाद है। पहला श्लोक और उस में “तैत्तिरीयाणां" पाठ किसी कृष्ण-यजुर्वेद-भक्त दाक्षिणात्य का मिलाया हुआ प्रतीत होता है । महाभारत और महाभाष्य के प्रमाण सं* हम बता चुके हैं कि ब्राह्मणकार तित्तिरि और कठ आदि आचार्य महाभारत काल में ही थे, अतः उन को राम के काल में कहने वाला श्लोक किसी इतिहासानभिन्न व्यात्ति का मिलाया हुआ है। प्रश्न-हम तो ब्राह्मण-ग्रन्थों को बहुत पुराना समझते थे, पुराना ही नहीं, काल की राष्ट से वेदों के समीपतम समझते थे । आर्यों का इतिहास महाभारत-काल से भी लाखों वर्ष पहले का है । वेद भी तभी से चल आये हैं । यदि ब्राह्मण-ग्रन्थ महाभारत काल के हैं, तो इन लाखों वर्षों में अग्रा-बुद्धि रखने वाले ब्रह्मवर्चस्वी, सर्वविद्यावित् ऋषियों ने क्या कोई भी ग्रन्थ न बनाये थे। उत्तर-हम ने कब कहा है कि ब्राह्मण-ग्रन्थों की सब सामग्री महाभारत काल ही में बनी । इस के विपरीत हम कह चुके हैं कि ब्रह्मा के काल से ही ब्राह्मण वावयों का प्रवचन होना आरम्भ हो गया था । वह प्रवचन इन लाखों वर्ष पर्यन्त होता रहा । तदनन्तर महाभारत काल में कुछ नया प्रवचन हुआ । और सब प्रवचन का आद्यन्त संग्रह करके महाभारत कालीन ऋषियों ने ये साम्प्रतिक ब्राह्मण-ग्रन्थ बनाये। महाभारत के पूर्व लाखों वर्षों तक इन ब्राह्मण-ग्रन्थों की मौलिक सामग्री का ही केवल प्रवचन नहीं हुआ, प्रत्युत आर्य ऋषि मुनि सब ही विद्याओं के ग्रन्थ बनाते रहे हैं । इस में प्रमाण भी देखो । न्याय भाष्यकार महामुनि वात्स्यायन न्याय सूत्र ४ । १ । ६२ ॥ पर भाष्य करते हुए किसी ब्राह्मण-ग्रन्थ का यह प्रमाण देते हैं प्रमाणेन खलु ब्राह्मणेनेतिहासपुराणस्य प्रामाण्यमभ्यनुज्ञायते । ते वा खल्वेते अथर्वाङ्गिरस एतदितिहासपुराणमभ्यवदन् ............य एव मन्त्रब्राह्मणस्य द्रष्टारः प्रवक्तारश्च ते खल्वितिहासपुराणस्य धर्मशास्त्रस्य चेति । *जब तित्तिरि ही वैशंपायन का प्रशिष्य है तो नैत्तिरीय लोग राम-काल में केसे हो सकते हैं । देखो काण्डानुक्रमणिका वैशम्पायनो यास्कायैतां प्राह पैङ्गये । यास्कस्तित्तिरये प्राह उखाय प्राह तित्तिरिः ॥१५॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016086
Book TitleVaidik kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwaddatta, Hansraj
PublisherVishwabharti Anusandhan Parishad Varanasi
Publication Year1992
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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