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________________ 1 हैं । जैसे गौ, अश्व, पुरुष, हस्ति आदि नाम जातिवाची हैं, ऐसे ही अनेक कल्पों में होने वाले दुष्यन्त, भरत आदिकों के लिये, यह भी जातिवाची नाम हैं । अतएव ऐसे नामों के ब्राह्मणों में आने से ब्राह्मण-ग्रन्थ महाभारत कालीन नहीं कहे जा सकते | उत्तर (क) जो यज्ञगाधायें हमने प्रमाणार्थ उद्धृत की हैं, वे सब पौरुषेय हैं । उनके पौरुषेय होने में जो प्रमाण हैं, वे आगे "क्या ब्राह्मण वेद हैं" इस प्रकरण में दिये जायेंगे | अतः पौरुषेय वाक्यों को " श्रतिसामान्यमात्र" मान कर अर्थ करना कल्पनामात्र के अतिरिक्त और कुछ नहीं । मन्त्र -संहिताओं में जो नियम चरितार्थ होते हैं वे मनुष्य रचित ग्रन्थों में नहीं हो सकते । (ख) दुःष्यन्त, भरत ज शब्दों को हम जातिवाची भी नहीं मान सकते। क्योंकि वहां भी वही पौरुषेय की आपत्ति आयेगी । जिन नवीन मीमांसकों ने "वेदों" में विश्वामित्र आदि शब्दों को जातिवाची माना हैं, उन्होंने भी अपौरुषेय वेदा में ही माना है । और हम तो उनकी इस कल्पना को भी निराधार ही मानते हैं । -- ८ प्रश्न- - अनेक लोग निम्नलिखित गाथास्थ नामों को भी महाभारत कालीन ही मानते हैं, क्या यह सत्य हैं ? एतेन हेन्द्रोतो दैवापः शौनकः जनमेजयं पारिक्षतं ॥ १ ॥ याजयां चकार तदेतद्गाथयाभिगतिम् - .. आसन्दीवति धान्याद: रुक्मिण: हरितस्रजम् । अवनादश्वर सारंग देवेभ्यो जनमेजयः ॥ इति ॥ २ ॥ शतपथ १३/५/४ ॥ तथा च एतेन ह वा ऐंद्रेण महाभिषेकेण तुरः कावषेयो* जनमेजयं पारिक्षितमभिषिषेच । .... तदेषाभि यज्ञगाथा गीयतेआसंदीवति धान्यादं रुक्मिणं हरितस्रजम् । अश्वं बबंध सारंग देवेभ्यो जनमेजयः ॥ इति Jain Education International ऐतरेय ८|२१|| * इसी तुरः कावषेय का उल्लेख शतपथ ९ | ४ | ३ | १५ || मैं है | For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016086
Book TitleVaidik kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwaddatta, Hansraj
PublisherVishwabharti Anusandhan Parishad Varanasi
Publication Year1992
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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