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________________ प्रास्ताविक वक्तव्य । ९१. प्रबन्धकोश - परिचय बन्धकोश नामका यह ग्रन्थ - जिसमें २४ प्रबन्ध होनेके कारण इसका दूसरा, और प्रायः विशेष प्रसिद्ध ग्रन्थन्य कथात्मक निबन्ध सङ्ग्रह है । इसमें जिन २४ व्यक्तियोंके या प्रसिद्ध पुरुषोंके प्रबन्ध गून्थे गये हैं, उनमें से, ग्रन्थकार-ही-के कथनानुसार, १० तो जैनधर्म के प्रभावशाली आचार्य हैं, ४ संस्कृत भाषाके सुप्रसिद्ध कवि पण्डित हैं, ७ प्राचीन अथवा मध्य-कालीन प्रसिद्ध राजा हैं, और, ३ जैनधर्मानुरागी राजमान्य गृहस्थ पुरुष हैं । आचार्य भद्रबाहुसे लेकर हेमचन्द्रसूरि तकके जिन १० आचार्योंका वर्णन इसमें दिया गया है वे; तथा हर्ष, हरिहर, अमरचन्द्र और मदनकीर्ति - ये ४ कवि पण्डित, निस्सन्देह ऐतिहासिक पुरुष हैं। सातवाहन आदि जिन ७ राजाओंका चरित वर्णन इसमें प्रथित है, उनमें से, अन्तिम दो-अर्थात् लक्ष्मणसेन और मदनवर्मा - का समय मध्य कालका उत्तर भाग होनेसे उनके अस्तित्व और समयादिका सप्रमाण उल्लेख इतिहास के ग्रन्थों में से मिल सकता है । वत्सराज उदयन, भारतीय इतिहासके प्राचीन युगमें हो जाने पर भी, महाकवि भास आदिके नाटकादिक ग्रन्थोंमें अमर नाम प्राप्त कर लेनेके कारण ऐतिहासिकोंमें यथेष्ट परिचित है। सातवाहन और विक्रमादित्य, भारतीय साहित्य और जनश्रुतिमें अत्यन्त प्रसिद्ध होने पर भी, वे कौन थे और कब हो गये इस विषय में पुरातत्त्ववेत्ताओं में अत्यन्त मत-वैविध्य है । तथापि, वे कोई ऐतिहासिक पुरुष जरूर थे, इतना स्वीकार कर लेनेमें कोई आपत्ति नहीं की जा सकती । वङ्कचूल राजाके ऐतिहासिकत्वके लिये इन ग्रन्थोंको छोड कर और कोई अधिक वैसा इतिहास - सम्मत प्रमाण अमीतक ज्ञात नहीं हुआ । अत एव उसके अस्तित्व - नास्तित्वके बारेमें विशेष कुछ कहा नहीं जा सकता । नागार्जुनका जो वर्णन इस संग्रह में - अथवा इसके समान विषयक अन्य अन्य ग्रन्थोंमें दिया हुआ मिलता है, उससे तो, उसके कोई राजा या राजपुरुष होनेकी बात ज्ञात नहीं होती । प्रबन्धगत वर्णनसे तो वह कोई योगी या सिद्धपुरुष ज्ञात होता है। तो फिर ग्रन्थकार ने उसकी गणना राजा या राजपुरुषके रूपमें किस आशय से की है सो ठीक समझमें नहीं आता । सम्भव है, राजपुत्र ( आधुनिक राजपूत) रणसिंहकी पत्नीके गर्भ में जन्म लेने-ही-के कारण उसकी गणना राजवर्ग में की | नागार्जुनकी कथा भी ऐतिहासिक दृष्टिसे उतनी ही सन्दिग्ध है जितनी सातवाहन और विक्रमकी है । तथापि, वह भी एक ऐतिहासिक व्यक्ति अवश्य थी इतना मान लेना इतिहासके विरुद्ध नहीं कहा जा सकता | राजमान्य जैन गृहस्थोंमें आभड और वस्तुपाल सुप्रसिद्ध और सुज्ञात व्यक्ति हैं । परंतु, काश्मीरनिवासी संघपति रत्न श्रावककी कथा, इतिहासके विचारसे, वैसी ही अज्ञात है जैसी वङ्कचूलकी कथा है। ९२. प्रबन्धकोशके समान विषयक अन्य ग्रन्थ जनप्रभसूरि रचित विविधतीर्थकल्पकी प्रस्तावनामें हमने सूचित किया है कि - 'विस्तृत जैन इतिहासकी रचना के लिये, जिन ग्रन्थों में से विशिष्ट सामग्री प्राप्त हो सकती है, उनमें (१) प्रभावकचरित, (२) प्रबन्धचिन्तामणि, (३) प्रबन्धकोश, और (४) विविधतीर्थकल्प - ४ ग्रन्थ मुख्य 1 ये चारों ग्रन्थ परस्पर बहुत कुछ समानविषयक हैं और एक-दूसरेकी पूर्ति करनेवाले हैं ।' प्रबन्धकोश इन चारोंमें कालक्रमकी दृष्टिसे कनिष्ठ यानी सबसे पीछे का है। इस क्रम में, प्रभावकचरित सबसे पहला [वि० सं० १३३४ ], प्रबन्धचिन्तामणि दूसरा [वि० सं० १३६१], विविधतीर्थकल्प तीसरा [वि० सं० १३८९], और प्रबन्धकोश चौथा [वि० सं० १४०५ ] स्थान रखता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016085
Book TitlePrabandh kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajshekharsuri, Jinvijay
PublisherSinghi Jain Gyanpith
Publication Year1935
Total Pages176
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size15 MB
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