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________________ २६ पाइअसहमहण्णवो अट्ठ-अट्ठावय जिसकी आवश्यकता हो, जिसका प्रयोजन हो | की उम्र का (सुर २,१४६, ८,१०१)। विह | 'अढाणमेयं कुसला वयंति, दगेण जे सिद्धिमुयावहा 'अट्रेण जस्स कज्जं संजातं एस अट्ठजामो वि [विध] आठ प्रकार का (जी २४)। हरंति' (सूम १, ७)। य' (वव २)। जाय वि [ याच धनार्थी, वीस स्त्रीन [विंशति] अट्ठाईस (कम्म १, अट्ठाण न [आस्थान सभा, सभा गृह (ठा धन की चाहवाला (वव २)। सइय वि ५)। सद्रिस्त्री [षष्टि] संख्या-विशेष, अठसठ ५, १)। [शतिक सौ अर्थवाला, जिसका सौ अर्थ हो (पि ४४२-६)। समइय वि [सामयिक] | अट्राणउइ स्त्री [अष्टानवति] अठानबे, ६८ सके ऐसा (वचन प्रादि) (जं २)। °सेण पं जिसकी अवधि पाठ 'समय' की हो वह (औप)। (सम ६६) । [°सेन] देखो अडिसेण, देखो अत्थ अर्थ। सय न [शत] एक सौ आठ, १०८ (ठा अदाणउय वि [अष्टानवत] अठानबेवा, ६८ वाँ अट्ट त्रि.ब. [अष्ठन् ] संख्या-विशेष, पाठ, ८ १०)। सहस्स न [सहस्र एक हजार और (पउम ६८, ७८)। (जी ४१)। चत्ताल वि [°चत्वारिंश] आठ (प्रौप)। सामइय देखो °समइय (ठा | अटाणवइ देखो अट्राणउइ (कुप्र २१६)। अठतालीसवाँ (पउम ४८,१२६)। °चत्तालीस ८)। सिर वि [शिरस् , सिर] अष्ट-कोण, | अद्राणिय वि [अस्थानिक अपात्र, अनाश्रयः त्रिचत्वारिंशत् अठतालीस (पि ४४५) । पाठ कोण वाला (प्रौप) । °सेण पुं[सेन] 'अट्टारिणए होइ बहू गुणाणं, जेएगाणसंकाइ 'दुमिया स्त्री [ष्टिमिका] जैन साधुओं का देखो अट्रिसेण । 'हत्तर वि [सप्ततितम] | मुसं वएजा' (सूत्र १, १३) । ६४ दिन का एक व्रत, प्रतिमा-विशेष (सम अठत्तरवा (पउम ७८, ५७)। हत्तरि स्त्री अट्टायमाण वकृ [अतिष्ठत् ] नहीं बैठता हुआ ७७)। तालीस वि[चत्वारिंशत् ] अठ [सप्तति अठत्तर की संख्या, ७८ (सम ८६)।। (पंचा १६)। तालीस (नाट)। तीस त्रि [°ात्रिंशत् ] हा अ [धा] आठ प्रकार का (पि ४५१) । अट्ठार । त्रि. ब. [अष्ठादशन् ] संख्या अहॉरस विशेष, अठारह (पउम ३५, ७६७ संख्या-विशेष, अठतीस ( सम ६५: पि ४४२, अट्ठ न [काष्ट] काठ, लकड़ी (प्रयौ ७४)। संति ५)। वह वि [विध] अठारह प्रकार ४४५)। तीसइम वि [त्रिंश अठतीसवाँ अट्रंग वि [अष्टाङ्गा जिसका आठ अंग हो का (सम ३५)। (पउम ३८, ५८)। त्तरि स्त्री [°सप्तति] वह । णिमित्त न [निमित्त] वह शास्त्र अट्ठारसग न (अष्टादशक] १ अठारह का अठत्तर, ७८ की संख्या (पि ४४६) । त्तीस जिसमें भूमि, स्वप्न, शरीर, स्वर आदि पाठ विषयों के फलाफल का प्रतिपादन हो (सूत्र १, त्रि [त्रिंशत् ] अठतीस (सुपा ६५९; पि समूह (पंचा १४, ३) । २ वि. जिसका मूल्य अठारह मुद्रा हो वह (पव १११)। ४४५)। दस त्रि [दशन] अठारह, १८ १२) । महाणिमित्त न [महानिमित्त] अट्ठारसम वि [अष्टादश] १ अठारहवाँ (संति ३)। दसुत्तरसय वि [दशोत्तर- अनन्तर-उक्त अर्थ (कप्प)। (पउम १८,५८) । २ न. लगातार आठ दिनों शत् ] एक सौ अठारहवाँ (पउम ११८,१२०)। अटुंस वि [अष्टास्र] अष्ट-कोण (सूप २,१, का उपवास (गाया १,१)। दह त्रि [दशन] अठारह, १८ की संख्या १५)। अट्रारसिय वि [अष्टादशिक] अठारह वर्ष (पिंग)। पएसिय वि[प्रदेशिक पाठ अव- | अदिदि स्त्री [अष्टदृष्टि] योग की पाठ दृष्टियाँ, । की उम्र का (वव ४)। यव वाला (ठा १०)। पया स्त्री [पदा एक वे ये हैं :-मित्रा, तारा, बला, दीपा, स्थिरा, वृत, छन्द-विशेष (पिंग) °पाहरिअवि [प्राह- अट्ठारह कान्ता, प्रभा और परा (सिरि १२३)। देखो अटार (षड्, पिंग)। अट्ठाराह रिक आठ प्रहर संबंधी (सुर १५, २१८) । अट्टय न [अष्टक पाठ का समूह (वव १)। अट्रावण्ण) स्त्रीन [ अष्टापञ्चाशत् ] संख्या'भाइया स्त्री [भागिका] तरल वस्तु नापने अट्ठा स्त्री [अष्टा] १ मुष्टि, 'चउहि अट्टाहि लोयं अट्ठावन्न । विशेष, पचास और आठ, १८ का बत्तीस पलों का एक परिमाण (अणु)। करेइ' (जं २ स १८२)। २ मुट्ठीभर चीज | (पि २६५; सम ७४)। 'म न [म] तेला, लगातार तीन दिनों का अट्ठावन्न वि [अष्टापश्चाश] अठावनवाँ (पउउपवास (सुर ४,५५)। मंगल पुन [ मङ्गल] अट्ठा स्त्री [आस्था] श्रद्धा, विश्वास (सूअ २,१)। म ५८, १९) । स्वस्तिक आदि आठ मांगलिक वस्तु (राय)। अदा स्त्री [अर्थ] लिए, वास्ते 'तइया य मणी अट्ठावय '[अष्टापद] १ स्वनाम-ख्यात पर्वतमभत्तपुंन [मभक्त] तेला, लगातार तीन दिब्वो, समप्पिनो जीवरक्खट्ठा' (सुर ६, ६; विशेष, कैलास (पराह १, ४)। २ न. एक दिनों का उपवास (णाया १,१)। मभत्तिय ठा ५, २) । दंड पुं[दण्ड कार्य के लिए जाति का जुना (पराह १,४) । ३ चूत-फलक, वि [मभक्तिक] तेला करनेवाला (विपा २, की गई हिंसा (ठा ५, २)। जिस पर जुम्रा खेला जाता है वह (पण्ह १, १)। मी स्त्री [°मी] तिथि-विशेष, अष्टमी अद्वाइस वि [अष्टाविंश] अठाईसवाँ (पिंग)। ४) । ४ सुवर्ण, सोना (धरण ८)। "सेल पुं (विपा २, १) । मुत्ति पुं[मूर्ति] महादेव, अट्ठाइस स्त्रीन [अष्टाविंशति] संख्या- [शैल] १ मेरु-पर्वत । २ स्वनाम-ख्यात पर्वतशिव (ठा ६)। याल त्रि [°चत्वारिंशत् ] अट्ठाईस विशेष, अठाईस (पिंगः पि ४४२)। । विशेष, जहाँ भगवान् ऋषभदेव निर्वाण पाये अठतालीस (भवि)। वन्न त्रि [ पश्चाशत्] अट्ठाण न [अस्थान] १ अयोग्य स्थान (ठा ६; | थे 'जम्मि तुम अहिसित्तो, जत्थ य सिवसुक्खसंख्या-विशेष, अट्ठावन, ५८ (कम्म १, ३२)। विसे ८४५)। २ कुत्सित स्थान, वेश्या का | संपयं पत्तो। ते अट्ठावयसेला, सीसामेला गिरि"वरिस, वारिस वि [वार्षिक पाठ वर्ष ) मुहल्ला वगैरह (वव२)। ३ अयोग्य, गैरव्याजबी | कुलस्स' (धण ८)। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016080
Book TitlePaia Sadda Mahannavo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovinddas T Seth
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1986
Total Pages1010
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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