SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 952
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ८८२ सल्लुद्धरण न [रावोरण] १ शल्य को बाहर निकालना (विद्या १८ पत्र ८६) । २ श्रालावना प्रायश्चित्त के लिए गुरु के पास दूषण निवेदन (श्रोष ७९१) । सल्लेहा देखो संलेगा (बारा ३५ भवि ) । सहि वि[संलेखन ] क्षोण, 'सल्ले हिया कसाया करंति मुरिलो र वित्तसंखोई' ( धारा ३६ ) । सब सक [] १ शाप देना, श्राक्रोश करना गाली देना । २ श्राह्वान करना । सब (गा ३२४ ४०० ) सविमो, सत्रसु (कुमा)। कर्म. सम्पए (विने २२२७) । वकृ. सवमाण ( उ ) कवकृ. सम्मान (पह १, ३--पत्र ५४ ) 1 सत्र सक [ ] उत्पन्न करना, जन्म देना । सवइ (हे ४० २३३ षड़ ) सब देखो स= सु । सबइ, सबए (षड् ) 1 सब तक [] भरना, टपकना, चूना । सवइ (विसे १३६८ ) 1 वपुं [अस] १ कान । २ ख्याति 'सवोमू' (प्रा)। सती श्री [व] नदी ( अ १०३१टो) । सबक देखो सबत्ती (सुपा ३३७ ६०१; सूक्त ४६६ महाः कुत्र १७० ) । सक्ख देखो सबक्ख सन्पक्ष सवग्गीय वि [सवर्गीय] सवर्ग-संबन्धी (हास्य १२० ) 1 1 सबब देखो सन्पच = श्वपच ॥ सब न [ब] शत्र, मुरदा, मृत शरीर (पाथ सय स ७६३ सा = सबजा देखो सपज्जा ( चेइय २०४ कप्पू) 1 सवह वि [] श्रभिमुख, संमुख; सवडहुत्त 'सहसा सवडंमुहो चलियो' } ( महा दे ८, २१० पउम ७२ ३२० भवि ), उपश्रो नहपलं विमागत्यो अह तारण सबहुतो रणरसतरहालु सहसा (पउम ८, ४७), 'वच य दाहिणदिसं लंकानयरीसवडहुत्ती' (पउम ८ १३४) सवण देखो समग= श्रमण ( धारा ३६ भवि ) । Jain Education International सम सल्लुद्धरण- सव्व सवग पुं [श्रवण] १ क, कान (पाय सवह] [ शपथ ] १ प्राक्रोश-वचन, गाली सुपा १२८ ) । २ नक्षत्र विशेष (सम ८, १५ ( गाया १, १ - - पत्र २६ देवेन्द्र ३५ ) । २ सुज १०, ५) । न. श्राकर्णन, सुनना सोगन्ध, सोंह (गा ३३३; महा) | ३ दिव्य, ( भगः सुर १, २४६ ) । देखो सवन । दोषारोप की शुद्धि के लिए किया जाता सबण न [शपन] श्राह्वान (विसे २२२७ ) । अग्नि प्रवेश आदि (पउम १०१, ७) सवग देखो स-वग = सव्रण। - [] श्येन पक्षी (देब, ७) सपा वन [सवन] कर्मों में प्रेरणा (राज) सवगता सवणवा पत्र ४६; ६ सवाग ) देखो स बाग = श्वपाक 1 सवाय सवाय देखो स वायस-पाद, सवाद, सद्वाच् ॥ ar [raini ] १ श्राकर्णन, श्रवरण, सुनना (ठा २, १---- - पत्र ३५५ गाया ११पत्र २६ भग; श्रौप ) २ अवग्रह ज्ञान (fle for) सवारन [दे] सुबह प्रभात गुजराती में 'सवार' (बृह १) [व] समान वर्णवाला (पउम २, ३१) [न] [सावर्ण्य] समानता (प्रयो २०) । सब[सपत्न] १ दुश्मन, शत्रु र ( से ३, ५७ उप १०३१ टी; गउड) । २ वि. विरुद्ध (ओघ २७६) । ३ समान, तुल्य 'सयवत्तसवत्तनयण र मणिजा' ( कुप्र २); 'सयमेव सरिसवत्तं छत्तं उवरि ठियं तस्स' (कुम ११९) । देखी सपत्ती 'षि (?) तिखी' (पिंड ५१० ) । सर्वान्तिवा श्री [सपत्निका] नीचे देखा (आ) सवास पुं [दे] ब्राह्मण (८, ५) सवाल देखो सवास = सवास [[वि] [[राप्त ] शाप-१ १३; पान) । सचि[वि] सूर्य रवि बो ६६७ ) । २ हस्त नक्षत्र का अधिपति देव (सुन १०, १२) हस्त नक्षत्र (म) 1 सविल वि [ सापेक्ष ] अपेक्षा रखनेवाला ( सम्मत ७६ ) । सविन देस-सि-वियv सविट्ठा को [वि] विशेष प नक्षत्र नक्षत्र (राज) । सविग देव (१८) सवितुदेव सवि (२, ३-- ७७ ) ॥ सबत्ती श्री [सपत्नी] पति की दूसरी श्री रूचि न [दे] सुरा दाह (दे. ४) य सविन [सविध] पास, निकट ( पाच ) 1 सव्व वि [सव्य] वाम, बाँया (श्रीप; उप पृ १३० ) । (उवा काम ८७१ स्वप्न ५७ ठा ४, ३-पत्र २४२; हेका ४५ ) । सवन (मा) पुं [ श्रवण ] एक ऋषि का नाम ( मोह १०९) । देखो सत्रण = श्रवण । सवन्न देखो सवण ( हम्मीर १७ ) । सवय देखो स वय = सवयस स व्रत सवर देखो सबर (पउम ६८, ६५० इक कप्पू पि २५० ) । 7 सवरिआ देखो सपज्जा (नाट-वेणी २६) । सवल देखो सवल (दे २ ५५३ कुमार हे १, १३०; रंभा ) । - [[]] रोका एक प्राचीन जैन मन्दिर (मुणि १०८६६ ) 1 For Personal & Private Use Only = सव्वत्रि [य] श्रवण-योग्य, 'सव्वक्खरसंनिवाई' (भग १, १ - पत्र ११) | सब् स [सर्व] १ सव, सकल, समस्त । २ (2,xxe) [] १ सब से । २ सब ओर से (हे १, ३७६ कुमा बाचा) जमद[ि"तोभद्र ] १ सब प्रकार से सुखी । २ न. सब प्रकार से सुख (पंत्र १) । परिभा के ज्ञान का साधन भूत एक चक्र ( ति ६ ) । ४ महाशुकदेवलोक में स्थित एक विमान (सभ ३२) । ५ पाचवा ग्रैवेयक विमान www.jainelibrary.org
SR No.016080
Book TitlePaia Sadda Mahannavo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovinddas T Seth
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1986
Total Pages1010
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy