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________________ ८६४ पाइअसहमहण्णवो सप्फल-समईअ सप्फल देखो स-प्फल = सफल । सम्भाविय वि [साभाविक] पारमार्थिक, प्राकृति-विशेष (ठा ६--पत्र ३५७ सम १४६; भग; कम्म १, ४०)। वास्तविक (दसनि १, १३५)। सप्फल देखो स-प्फल = सत्-फल 10 चक्कवाल न सभ न. देखो सभा; 'सभारिण' (पाचा २, सफर देखो सभर = शफर (वै २०)। [चक्रवाल] वृत्त, गोलाकार (सुज ४) ।। १०; २)। 'ताल न ["ताल] १ कला-विशेष (प्रौप)। सफर पुन [दे] मुसाफिरीः 'वडसफरपवहणाणं' (सिरि ३८२) सभर पुंस्त्री [शफर मत्स्य, मछली (कुमा)। २ वि. समान तालवाला (ठा ७)। धम्मिअ स्त्री. °री (हे १, २३६; प्राकृ १४) । वि [धर्मिक] समान धर्माला (उप ५३० सफल देखो स-फल = स-फल । टी) पादपुत पुंन [पादपुत] आसनसभर पुं[दे] गृध्र पक्षी (दे ८, ३)। सफल सक [सफलय ] सार्थक करना। विशेष, जिसमें दोनों पैर मिलाकर जमीन में सभराइअ न शिफरायित जिसने मत्स्य की वकृ. सफलंत (सुपा ३७४)। लगाए जाते हैं वह प्रासन-बन्ध (ठा ५, १तरह प्राचरण किया हो वह (कुमा)।सफलिअ वि [सफलित] सफल किया हुआ पत्र ३००) पास वि [दर्शिन् तुल्य सभल देखो स-भल =स-फल। (सुपा ३५६: उव)। दृष्टिवाला, समदर्शी (गच्छ १, २२) 4 °पभ सभा स्त्री [सभा] १ परिषद् (उवाः रयण सब (अप) देखो सव्व = सर्व (पिंग)। पुंन [प्रभ] एक देव-विमान (सम १३) ।। ८३: धर्मवि ६)। २ गाड़ी के ऊपर की भाव पुं[ भाव] समता (सुपा ३२०) सबर पुं[शबर] १ एक अनार्य देश । २ उस छत-ढक्कन (श्रा १२)। 'या स्त्री [ता] राग-द्वेष का प्रभाव, देश में रहनेवाली एक अनायं मनुष्य-जाति, सभाज सक [सभाजय ] पूजन करना। मध्यस्थता (उत्त ४, १० पठम १४, ४०) किरात, भील (पएह १, १-पत्र १४; पामः हेकृ. सभाजइहूँ (शौ) (अभि १६०)। श्रा २७)। वत्ति पुं [वर्तिन्] यमराज, गउड)। "णिवसण न [निवसन] तमाल- सभाव देखो स-भाव = स्व-भाव । जम (सुपा ४३३)। सरिस वि [°सदृश] पत्र (उत्तानि ३)। देखो सवर। सम अक [शम्] १ शान्त होना, उपशान्त अत्यन्त तुल्य, सदृश, (पउम ४६, ५७)। सबरो स्त्री [शबरी] १ भिल्ल जाति की स्त्री होना। २ नष्ट होना। ३ प्रासक्त होना । सहिय वि [ सहित] युक्त, सहित (णाया १,१-पत्र ३७; अंतः गउड; चेइय समइ, समंति (हे ४, १६७; कुमा), 'जइ (पउम १७, १०५)। सुद्ध पुं[शुद्ध] ४८२)। २ कायोत्सर्ग का एक दोष, हाथ से समइ सकराए पित्तं ता कि पटोलाए' (सिरि एक राजा जो छठवें केशव का पिता था गुह्य-प्रदेश को ढककर कायोत्सर्ग करना (चेश्य ६६६)। बकृ. समेमाण (आचा १, ४, (पउम २०, १८२)। ४८२) समइअ वि [सामयिक] समय-संबन्धी, सबल (शबल] १ परमाधार्मिक देवों की सम सक [शमय ] १ उपशान्त करना, समय का (भग) एक जाति (सम २८)। २ वि. कर्बुर, दबाना । २ नाश करना। वकृ. 'दु(दुरिए समइअ वि [समयित] संकेतित (धर्मसं चितकबरा (प्राचा; उप २८२ गउड)। ३ समंतो' (धर्मा ३)। ५०५)। न. दूषित चारित्र । ४ वि. दूषित चरित्रवाला मुनि (सम ३६)। सम [श्रम] १ परिश्रम, प्रायास । २ खेद, समइअ न [समयिक] सामायिक नामक थकावट (काप्र ८४; सम्मत्त ७७; दे १, संयम-विशेष (कम्म, १८४,२१, २८)सबलिय वि [शबलित] कर्बुरित (गउड)। १३१; उप पृ ३५, सुपा ५२५; गउडा सण, समइंछिअदेखो समइच्छिअ (से १२, ७२). सबलीकरण न [शबलीकरण] सदोष करना, कुमा)। जल न [°जल] पसीना (पान)। समइकंत वि [समतिक्रान्त व्यतीत, गुजरा चारित्र को दूषित बनाना (मोघ ७७८)। सम पुं [शम शान्ति, प्रशम, क्रोध मादि का हुआ (सुपा २३) । सब्ब (अप) देखो सव्व = सर्व (पिंग)। निग्रह (कुमा)। समइच्छ सक [समति + क्रम् ] १ उल्लंघन सब्बल पुंन [दे] शस्त्र-विशेषः 'सरझसरसत्ति- सम वि [सम] १ समान, तुल्य, सरिखा | करना । २ प्रक. गुजरना, पसार होना । वकृ. सब्बलकरालकोंतेसु' (पउम ८, ९५ धर्मवि (सम ७५; उव कुमा; जी १२; कम्म ४, समइच्छमाण (प्रौपः कप्प)५६)IV ४०; ६२)। २ तटस्थ, मध्यस्थ, उदासीन, समइच्छिअ वि [समतिक्रान्व] १ गुजरा सब्बल देखो स-ब्बल-स-बल । राग-द्वेष से रहित (सूम १, १३, ६ ठा| हुमा । २ उल्लंधित (उप ७२८ टोः दे ८, सब्भ वि [सभ्य] १ सभासद, सदस्य (पाम: ८)। ३ स. सर्व, सब (श्र १२४)। ४ न. २०; स ४५) सम्मत्त ११६) । २ सभोचित, शिष्ट; 'मसब्भ- एक देव-विमान (सम १३, देवेन्द्र १४०)। समईअ वि [समतीत] १ गुजरा हुमा भासी (दस ६,२,८ सुर ६, २१५; स ५ सामायिक (संबोध ४५; विसे १४२१)। (पउम ५, १५२) । २ पुं. भूत काल (जीवस ६५०)। ६ प्राकाश, गगन (भग २०, २-पत्र १८१)। सब्भाव देखो स-भाव = सद-भाव ।। ७७५), 'चउरंस न [°चतुरस्र संस्थान- समईअ देखो समइअ = समयिक (कम्म ४, सब्भाव देखो स-भाव =स्व-भाव । विशेष, चारों कोणों के समान शरीर की । ४२)।। For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.016080
Book TitlePaia Sadda Mahannavo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovinddas T Seth
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1986
Total Pages1010
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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