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________________ अजीर-अजिअ पाइअसहमहण्णवो २३ अजीर ) देखो अइन्न = अजीर्ण ( वव १; अन्ज वि [आय १ उत्तम, श्रेष्ठ (ठा ४,२)।। णाल्गुनी नक्षत्र का अधिष्ठायक देव (ठा २, अजीरयणाया १,१३) । २ मुनि, साधु (कप्प)। ३ सत्यकार्य करने- । ३)। ४ न. उत्तरा-फाल्गुनी नक्षत्र (ठा २, अजीरण देखो अइन्न = अजीर्ण (पिंड २७; वाला (वव १)। ४ पूज्य, मान्य (विपा १, ३)। पव १३१)। १)। ५ पुं. मातामह (निसी)। ६ पितामह | अजय पुं[आयक] १ मातमह, मां का अजीव अर्जीव अचेतन, निर्जीव, जड़ (गाया १,८)। ७ एक ऋषि का नाम बाप (पउम ५०, २) । २ पितामह, पिता का पदार्थ (नव २)। काय पुं[काय धर्मा- (णंदि)। ८ न. गोत्र-विशेष (णंदि)। ६ जैन पिता (भग ६, ३३); 'जं पुरण अजय-पजयस्तिकाय आदि अजीव पदार्थ (भग ७,१०)। साधू, साध्वी और उनकी शाखाओं के पूर्व में जयजियप्रथमझो दाणं परमत्थरो कलंक अजुअ ' [दे] वृक्ष-विशेष, सप्तच्छद, सतौना यह शब्द प्रायः लगता है, जैसे अजवइर, तयं तु पुरिसाभिमामीणं' (सूर १, २२०) । (द १, १७)। अजचंदगा, अजपोमिला (कप्प) । °उत्त अजय वि [अर्जक] १ उपार्जन करनेवाला, अजुअन [अयुत] दश हजार, 'दोएिण सहस्सा पुं[पुत्र] १ पति, भर्ता (नाट) । २ मालिक पैदा करनेवाला (सुपा १२४)। २ पुं. वृक्षरहाणं, पंच अजुयाणि हयाणं' (महा)। का पुत्र (नाट) । 'घोस पुं[ घोष] भगवान् विशेष (पएण १)। अजुअलबम ' [अयुगलपर्ण] सतौना (दे पार्श्वनाथ का एक गणधर (ठा ८) । मंगु पुं अजय ' [दे] १ सुरस नामक तृण । २ [ मङ्ग] एक प्राचीन जैनाचार्य (सार्ध २२)। गुरेटक नामक तृण (दे १, ५४)। ३ तृण, अजुअलवण्णा श्री [दे] इमली का पेड़ (दे | मिस्स वि [भिश्र] पूज्य, मान्य (अभि | घास (निचू ११)। १३) । समुद्द पुं[समुद्र] एक प्रसिद्ध अजल j[आर्यल] म्लेच्छों की एक जाति अजुत्त वि [अयुक्त] अयोग्य, अनुचित जैनाचार्य (साधं २२)। (परण १)। (विसे)। कारि वि [कारिन्] अयोग्य कार्य अज प्र[अद्य] आज (सुर २, १६७) । अजव न [आर्जव सरलता, निष्कपटता करनेवाला (सुपा ६०४)। त्त वि [तन] अधुनातन, प्राजकल का (नव २६)। अजुत्तीय वि[अयुक्तिक] युक्ति-शून्य, अन्याय्य (रंभा)। त्ता स्त्री [ता] आज कल (कप्प)। अजय (अप) देखो अज्ज = आर्य । खंड पुं (सुर १२, ५४)। प्पभिइ अ [प्रभृति] आज से ले कर | [खण्ड] आर्य-देश (वि)। 'अजुय देखो अउअ; पंच अजुयाणि हयाणं सत्त (उवा)। कोडीओ पाइक्कजरणारण' (सुख ६, १)। अजवया स्त्री [आर्जव] ऋजुता, सरलता | अन्ज पुं [दे] १ जिनेन्द्र देव । २ बुद्ध देव (दे अजेअ वि [अजय] जो जीता न जा सके, (पक्खि )। १, ५)। 'सो मउडरयणपहावेण अजेा दोमुहराया' अजवि वि [ आर्जविन् ] सरल, निष्कपट | अन्ज न [आज्य] घी, घृत (पास) । - (महा)। (प्राचा)। अज' देखो रि = ऋ। अजोग [अयोग] मन, वचन और काया अज्जविय न [आर्जव सरलता (सूत्र १, ५, अजं अ [अद्य आज (गा ५८) । के सब व्यापारों का जिसमें प्रभाव होता है २, २३)। अजंत वि [आयत् ] आगामी। काल पुं वह सर्वोत्कृष्ट योग, शैलेशी-करण (प्रौप)। | अज्जा स्त्री [आर्या] १ साध्वी (गच्छ २) । [°काल] भविष्य काल (पास)। अजोग वि [अयोग्य] अयोग्य, लायक नहीं २ गौरी, पार्वती (दे १, ५)। ३ प्रार्या छन्द अजहिजो प्र. [अद्ययः] आजकल (उप पृ . वह (नीचू ११)। (जं २)। ४ भगवान् मल्लिनाथ की प्रथम ३३४)। अजोगि पुं[अयोगिन] १ सर्वोत्कृष्ट योग को | शिष्या (सम १५२) । ५ मान्या, पूज्या स्त्री अन्जकालिअ वि [अद्यकालिक अाजकल का प्राप्त योगी। २ मुक्त आत्मा (ठा २,१; कम्म (पि १०६, १४३, १४५)। ६ एक कला (अणु १५८)। १४, ४७; ५०)। . (प्रौप)। अज्जग देखो अजय = अर्जक; 'अजगतरुमंजअज्ज सक [अर्ज ] पैदा करना, उपार्जन अज्जा स्त्री [आज्ञा] प्रादेश, हुकुम (हे २, रिव्व' (सुपा ५३)। करना, कमाना। अजइ (हे ४,१०८) । संकृ. अजग देखो अजय = आर्यक (निर १, १)। अज्जाय वि [अजात अनुत्पन्न, 'प्रजायस्सिअज्जिय (पिंग)। अन्जण सक [ अर्ज ] उपार्जन करना । संकृ. यरस्सवि एस सहावो त्ति दुग्घडं जाए' (धर्मसं अज्ज वि [अर्थ] १ वैश्य । २ स्वामी, मालिक अजणित्ता (सूअ १, ५, २, २३)। २७०)। अजण अर्जन] उपार्जन, पैदा करना अज्जाव सक [आ + ज्ञापय ] आज्ञा करना, अन्ज वि [आर्य] १ निर्दोष । २ आर्य-गोत्र में अजणण) (श्रा १२ सत्त १८); 'रज कोरस- हुकुम फरमाना। कृ. अज्जावेयव्व (सम उत्पन्न (णंदि ४६)। ३ शिष्ट-जनोचित,'प्रज्जाई। मेवं करेसुवायं तदजणणे' (उप ७ टी)। २, १)। कम्माई करेहि रायं' (उत्त १३,३२) । खउड अज्जम पं [अर्यमन् ] १ सूर्य (पि अजिअ वि [अर्जित] उपाजित, पैदा किया [खपुट] एक जैन प्राचार्य (कुप्र ४४०)। २६१) । २ देव-विशेष (जं ७) । ३ उत्तरा- | हुआ (श्रा १४)। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016080
Book TitlePaia Sadda Mahannavo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovinddas T Seth
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1986
Total Pages1010
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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