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________________ संजम-संजोइय पाइअसद्दमहण्णवो ८३७ संजमिजति (गउड २८६)। वकृ. संजमेंत, संजर पुंसिंज्वर ज्वर, बुखार (अच्चु ६७) जहा वत्थं (धर्मसं १८०)। कवकृ. संजुज्जंत संजमयंत. संजममाण (गउड ८४० दसनि संजल अकासं+ज्वल1१ जलना। २ (सम्म ५३) ।' १,१६८उत्त १८,२६)। कवकृ. संज प्राक्रोश करना । ३ ऋद्ध होना। संजले (सन संजुान[संयुत] छन्द-विशेष (पिंग) । देखो मीअमाण (नाट-विक्र ११२)। संकृ. १, ६, ३१, उत्त २, २४)। संजुअसंयुत । संजमित्ता (सूत्र १, १०, २)। हेकृ. संजलग वि [संज्वलन] १ प्रतिक्षण क्रोध संजुना स्त्री [संयुता] छन्द-विशेष (पिंग)। संज मउं (गउड ४८७)। कृ. संजमिअव्व, करनेवाला (सम ३७)। २ पूं. कषाय-विशेष संजुन वि संयुक्त] संयोगवाला, जुड़ा हुमा संजमितव्व (भगः रणाया १, १-पत्र (कम्म १. १७)। (महा सण पि ४.४ पिंग)। संजम सक [दे छिपाना । संजमेसि (दे ८, संजलिअ [संचलित] तीसरी नरक भूमि संजुत्ति स्त्री [दे] तैयारी (सुर ४, १०२; का एक नरक-स्थान (देवेन्द्र)। १२, १०१ स १०३, कुप्र २००)। देखो १५ टी)। संजल्लिअ (अप) वि [संचलित] प्राक्रोश संजत्ति। संजम संयम, १ चारित्र, व्रत, विरति, युक्त (भवि)। संजुद्ध वि [दे] स्पन्द-युक. थोड़ा हिलनेहिंसादि पाप-कर्मों से निवृत्ति (भगः ठा ७; प्रौप कुमाः महा)। २ शुभ अनुष्ठान (कुमा संजय देखो संजम = सं + यम् । संजबहु चलनेवाला, फरकनेवाला (दे ८. ६)। ७, २२)। ३ रक्षा. अहिंसा (णाया १, संजूह पुंन [संयूथ] १ उचित समूह (ठा (अप) (भवि)। १०-पत्र ४६५)। २ सामान्य, साधारणता। १-पत्र.)। ४ इन्द्रिय-निग्रह। ५ बन्धन। संजय देखो संजम % (दे)। संजबइ (प्राकृ ३ संक्षेप, समास (सूम २, २, १)। ४ ग्रन्थ६ नियन्त्रण. काबू (हे १, २४५)। संजम संजविअ देखो संजमिअ = (द) (पान पुं[संथम] श्रावक-व्रत (प्रौप)। रचना, पुस्तक निर्माण (अणु १४६)। ५ भवि)। दृष्टिवाद के अठासी सूत्रों में एक सूत्र का संजमण न संयमन] ऊपर देखो (धर्मवि नाम (सम १२८) १७: गा २६१: सुपा ५५३)। संजविअ देखो संजामअ = सयामत (भाव) - संजोअ सक[ सं + योजय ] संयुक्त करना, संजमिअ वि [दे] संगोपित, छिपाया हुआ संजा देखो संणा (हे २,८३)। संबद्ध करना, मिश्रण करना । संजोएइ, (दे८, १५)। संजागय वि [संज्ञायक] विज्ञ, विद्वान्, संजोयइ (पिंड ६३८; भगः उव; भवि)। संजमिअ वि [संयमित] बाँधा हुआ, बद्ध जानकार (राज) वकृ. संजोयंत (पिंड ६३६)। संकृ. संजो(गा ६४६: सुर ७, ५; कुम १८७)। संजात , देखो संजाय =संजात (सुर २, एऊण (पिंड ६३६)। कृ. संजोएअब्ध संजय अक[सं + यत् ] १ सम्यक् प्रयत्न संजाद ११४, ४, १६०; प्राप्रा पि (भग)। करना। २ सक. अच्छी तरह प्रवृत्त करना । २०४) । संजोअ सक[सं+दृश] निरीक्षण करना, संजयए, संजए (पव ७२; उत्त २, ४)। संजाय अक [सं + जन्] उत्पन्नन होना। देखना । संकृ. संजोइऊण (श्रु ३२)।संजय वि[संयत] साधु. मुनि, व्रती (भग संजायड (सरण)। संजोअ पुंसिंयोग] संबन्ध, मेल-मिलाप, प्रोघभा १७ काल); 'ममावि मायावित्ताणि संजाय वि [संजात] उत्पन्न (भग; उवाः मिश्रण ( षड् ; महा)। संजयारिण' (महा)। पंता स्त्री [प्रान्ता] महा सणः पि ३३३) । संजोग न संयोजन] १ जोड़ना, मिलाना साधु को उपद्रव करनेवाली देवी आदि | संजीवणी स्त्री [संजीवनी] १ मरते हुए को (ठा २, १-पत्र २६) । २ वि. जोड़नेवाला। (ोघभा ३७ टी) भद्दिगा स्त्री . जीवित करनेवाली औषधि (प्रासू ८३)। २ ३ कषाय-विशेष, अनन्तानुबन्धि · नामक [भद्रिका] साधु को अनुकूल रहनेवाली जीवित-दात्री नरक-भमि (सन १.५.२.६) क्रोधादि-चतुष्क (बिसे १२२६; कम्म ५. देवी यादि (ोघमा १७ टी) संजय वि नीवि वि संनिविना जिलानेवाला । ११ टो)। धिकरणिया स्त्री/धिकरणिकी] rrzता किसी अंश में व्रती और किसी जीवित करनेवाला (कप्पू)। खङ्ग आदि को उसको मूठ आदि से जोड़ने अंश में अवती, श्रावक (भग)संजुअ वि [संयुत] सहित, संयुक्त (द्र २२ । की क्रिया (ठा २, १-पत्र ३६) । संजय सिंजय भगवान् महावीर के पास | सिक्खा ४८; सुर ३, ११७; महा)। देखो संबोअगा स्त्री [संयोजना] १ मिलान, दीक्षा लेनेवाला एक राजा (ठा ८-पत्र संजत। मिश्रण (पिंड ६३६)। २ भिक्षा का एक संजुअन [संयुग] १ लड़ाई, युद्ध, संग्राम दोषः स्वाद के लिए भिक्षा-प्राप्त चीजों को संजयंत पुं[संजयन्त] एक जैन मुनि (पउम (पान)। २ नगर-विशेष (राज)। प्रापस में मिलाना (पिंड १) ५, २१)। "उर न [पुर] नगर-विशेष संजुज सक[सं+ युज् ] जोड़ना। कर्म. संजोइय वि [संयोजित] मिलाया हा, __'अविसिटे सब्भावे जलेण संजुम(? ज)ती जोड़ा हुआ (भगः महा) । Jain Education Intemational For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016080
Book TitlePaia Sadda Mahannavo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovinddas T Seth
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1986
Total Pages1010
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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