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________________ विरहविरुद्रु विरह न [] एकान्त, विजन (७, १. या १, २ -पत्र ७९; पुप्फ ३४४ ); 'सामा देवी अंतराणि यदिहाणि य विरहारिण य पडिजागर मारणीम्रो २ विहरति (दिपा १ - ०१) २ कुसुंभ से रंगा हुम्रा कपड़ा (दे ७, ६१) । विरहाल न [ते] कुसुम्भ से रंगा हुआ (दे ७, ६८) विरहि वि [विरहिन] वियोगी, बिछुड़ा हुआ (कुमा) । विरहि वि [[वरहित] विरह-युक्त (भगः उव; हे ४, ३७७) । विरा श्रक [वि + ली ] १ नष्ट होना । २ द्रवित होना, पिघलना । ३ श्रटकना, निवृत्त होना । विराइ (हे ४, ५६ ) 1 विराइवि [विरागिन] विरागवाला, विरक्त, उदासीन । स्त्री. णी (नाट) । शिराइव [विराजिन] शोमनेवाला, चमकता (२, २१) चिराइ[न] शम्य-युक्त भावाजवाला (से २, २६ ) 1विराम देखी बिराय विसीन से २,२१) = विराइअ वि [बिराजित] गुशोभित (उबा; । श्रीपः महा) । [] 9 विराग पुं [विराग] १ राग का प्रभाव, वैराग्य, उदासीनता ( सुज १३ उप ७२८ टी) । २ वि. राग-रहित, वीतराग ( पच्च १०४ औप विराड 1 [विराट ] देश-विशेष (उप ६४८ टी) 1°नयर न ['नगर] नगर- विशेष (गाया १, १६ - पत्र २०६ ) । विराध ( प ) नाम (पिंग ) । [ विरोध ] एक राक्षस का उपम, निवृत्ति, अवसान ( गउड ) । - विरामण न [ विरमण ] विरत करना, निवर्तन, विरमाना 'वेरविरामण पज्जव सारणं' ( परह २, ४ पत्र १३१) । विराय श्रक [ वि + राज्] शोभना, चमकना । त्रिरायए (पान) । वकृ. विरायंत, विरायमाण (कप्पः श्रौपः गाया १, १ टी -- पत्र २, सुर २, ७६) । Jain Education International पाइअसद्दमयो विशीं विगलित ३८ ) । २ ५ - पत्र ६ कु विराय वि [विलीन] नष्ट (से ७, ६४; गउड, कुमा ६, पिघला हुआ ( पाच ) । विराय देखो विराग ( परह २, १४१ कुमा; सुपा २०५ व १११) - विराल देखो बिराल ( छाया १, १ – पत्र विरिंचिरा स्त्री [दे] धारा प्रवाह (दे ७, ६५ पि २४१) । ३) 1 विरालिआ स्त्री [विरालिका ] १ पलाशकन्द । २ पर्व॑वाला कन्द ( दस ५, २,१८ ) | देखो बिरालिआ चिरिक [] पारित ७ ६४) विरिक्क वि [विरिक्त ] जो खाली हुआ हो वह (पउम ४५, ३२: सुपा ४२२ ) । विरिक्क वि [विभक्त] १ बाँटा हुआ 'जेणं चित्तराभासमानेहि तरिका (पहा । २ जिसने भाग बाँट लिया हो वह अपना हिस्सा ले कर जो अलग हुआ हो वह 'एगम्मि सरिएणवेसे दो भाउया वणिया ते य परोप्परं विरिक्का' (ओघ ४६४ टी) विरिका की [दे] बिन्दु त लेश (मुल २, २७) विराली श्री [विराली] विशेष ४, श्रा २०; संबोध ४४) । २ चतुरिन्द्रिय जंतु की एक जाति (उत्त ३६, १४८ सुख ३६, १४८ ) | देखो विराली विराव [विराव ] शब्द, आवाज ( गउड) । विरावि वि [विराविन्] आवाज करनेवाला (गड)। उन विराद सक [वि + राज] करना भांगना तोड़ना राहत (उ) वकृ. (सुपा विरात, विरात (वा ३२० उय) - विराहअ } वि [विराधक ] खण्डन करनेवाला, बिराहगतीनेवाला अंतक (भग छाया १, ११ - पत्र १७१) । - विराणा स्त्री [विराधना ] खण्डन, भंग (समगाया ९, ११ टी -पत्र १७३ परह १, १ -पत्र ६ प्रोघ ७८८) । विराहिअ वि [विराधित] १ खण्डित, भग्न (भग) २ अपराद्ध, जिसका अपराध किया गया हो वह 'प्रविराहियवेरिएहि ' ( परह १, ३ –पत्र ५३) । ३ पुं. एक विद्याधर- नरेश ( पउम ७६, ७) । विरिअ वि [भग्न] भांगा हुआ, तोड़ा हुआ (कुमा) 1 विरिअ देखो वीरिअ ( सूप्रनि ९१ ९४; श्रप) 1 विरिंच सक [वि + भज् ] विभाग- ग्रहण करना, भाग लेना, बांट लेना 'सयरणो वि य से रोगं न विरिचइ, नेय नासेई' ( स १.७) 1 विरंच विरिंचि १२,७८ ) 1 For Personal & Private Use Only ७६७ [विरिधि] ऊपर देखो (सुर विरंचि [] विरत उदासीन (दे ७, १३. विमल, निर्मल २ पिरिंचिर] [] मश्च घोड़ा २ वि. विरल (दे ७, ६३) । [विरि] ब्रह्मा, विधाता (पान) । २८ ) 1 विरिचिरवि [दे] धारा वाला (षड् ) 1 से विजियम [दे] [अनुचर अनुगत (दे ७, ६६) । पैलाना I विरेचन करने विरिल्ल सक [वि + स्] विस्तारना, विरिल्लइ (प्राकृ ५६ ) | विअ ( प ) देखो त्रिवरीअ (पिंग) | विरीह सक [ प्रति + पालय ] पालन करना, रक्षण करना। विरीहइ (प्राकृ ७५ धावा १५३) । बिरु । अक [त्रि + रु] रोना, चिल्लाना । विरुअ वकृ. विरुयमाण ( उप ३३६ टी) | J विरुअ न [विरुत] ध्वनि, पक्षी की आवाज, शब्द (गा ६४ से १ २३; नाट मृच्छ १३६) विरुअवि [दे. विरूप] १ खराब, कुडौल, दुष्ट रूपवाला, कुत्सित (दे ७, ६३; भवि ) । २ विरुद्ध प्रतिकूल (प) देखो विरु विरुट्ठ [विरुष्ट ] नरक-स्थान विशेष (देवेन्द्र www.jainelibrary.org
SR No.016080
Book TitlePaia Sadda Mahannavo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovinddas T Seth
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1986
Total Pages1010
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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