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________________ विभय-विमण पाइअसद्दमण्णवो विभय देखो विभज । विभए, विभयंति (कम्म | पिंड १२४)। हेकृ. विभासिङ (विसे २ शरीर-शोभा, 'मेहुणाम्रो उवसंतस्स कि ६, ३१: प्राचा; उत्त १३, २३)। १०८५) । विभूसाइ कारिनं' (दस ६, २, ६५; ६६; विभयणा स्त्री [विभजना] विभाग (सम्म | विभासण न [विभाषण] व्याख्या, व्याख्यान ६७; उत्त १६, ६)। १०१) ।। (विस १४२८)। विभूसिय वि [विभूषित] विभूषा-युक्त, विभर सक [वि + स्मृ] विस्मरण करना, | विभासय वि [विभाषक ] व्याख्याता, अलंकृत, शोभित (भगः उत्त १६, महाः भूल जाना। विभरइ (पि ३१३) । व्याख्या-कर्ता (विसे १४२५)।। विपा १,१-पत्र ७) विभव देखो विह्व (उवः महा)। विभासा स्त्री [विभाषा] १ विकल्प-विधि, विभेद । [विभेद] १ भेदन, विदारण पाक्षिक प्राप्ति, भजना, विधि और निषेध का विभवण न [विभवन] चिरूप-करण, खराब विभेय ) (धर्मसं ८२६); 'जयवारणकुंभ का विधान (पिंड १४३, १४४ १४५; विभेयक्खमे' (गउड; अ ७२८ टी) । २ भेद, करना (राज) २३५; ३०२; उप ४१५ टीः द्र १६)। २ प्रकार; 'उड्डाहोतिरियविभेय तिवणंपि' विभाइम वि [विभाज्य] विभाग-योग्य (ठा व्याख्या, विवरण, स्पष्टीकरण (विसे १३८५ । (चेइय ६६४)। ३, २-पत्र १३४)। १४२१; पिंड ६३७) । ३ विज्ञापन, निवेदन विभेयग वि[विभेदक भेदनकर्ताः 'परमम्मविभाइम वि [विभागिम] विभाग से बना (उप ९८०)। ४ विविध भाषण (पिंड विभेयगो' (धर्मवि ७६) हुआ (ठा ३, २–पत्र १३४) । ४३८) । ५ विशेषोक्ति (देवेन्द्र ३६७)। ६ विमइ स्त्री [विमति छन्द-विशेष (पिंग)। विभाग पुं [विभाग) अंश, बाँट (काल; परिभाषा, संकेत (कम्म १, २८ २६)। ७ विमइअ वि [दे] भत्सित, तिरस्कृत (दे सरण) एक महानदी (ठा ५, ३–पत्र ३५१)विभागिम देखो विभाइम = विभागिम (उप विभासिय वि [ विभासित] प्रकाशितः ७,७१) पृ १४१) विमउल वि [विमुकुल विकसित, खिला उयोतित (सम्मत्त ६२)। विभाय देखो विभाग (रंभा)। हुआ (णाया १, १ टी-पत्र ३; प्रौप)। विभिण्ण) देखो विहिण्ण = विभिन्न (गउड विभाय न [विभात] प्रकाश, कान्ति, तेज | विभिन्न ५७०, ११८० उत्त १६,५५)विमातय विविमान्त्रत] जिसक बार म मस(सण)।विभीसण पृ [विभीषण] १ रावण का एक लहत-गुप्त युक्ति की गई हो वह (सुर ११, विभाय पूं [विभाव] परिचयः 'कस्स विस | ९७) छोटा भाई (पउम ८, ६२)। २ विदेह वर्ष का एक वासुदेव (राज)। मदसाविभागो न होई' (स १६८) विमंसिअ वि [विमृष्ट, विमर्शित] विचारित, पर्यालोचित (सिरि १०४५) विभाव सक [वि + भावय ] १ विचार विभीसावण वि [विभीषण] भय-जनक, करना, ख्याल करना। २ विवेक से ग्रहण | भयंकर (भवि) विमग देखो विमय (राज)। करना। ३ समझना । वकृ. विभावंत, विभा- विभीसिया स्त्री [विभिषिका] भय-प्रदर्शन विमग्ग सक [वि + मार्गय ] १ विचार वेंत, विभावेमाण (सुपा ३७७; उप ५६७ | करना। २ अन्वेषण करना, खोजना । ३ टी; कप्प)। कवकृ. विभाविजंत, विभा- विभु पुं[विभु] १ प्रभु, परमेश्वर (पउम ५, प्रार्थना करना, मांगना। ४ इच्छा करना, विजमाग (से ८, ३२ स ७५०)। हेकृ.. ११२)। २ नाथ, स्वामी, मालिक (पउम चाहना। विमग्गइ, विमग्गहा (उव; उत्त विभावेत्तए (कस)। कृ. विभावणीय (पुप्फ ७०, १२)। ३ इक्ष्वाकु वंश के एक राजा १२, ३८) । वकृ. विमग्गंत, विमग्गमाण २५४)। का नाम (पउम ५, ७)। ४ वि. व्यापक (गा ३५१, सुर २, १७; से ४, ३६ विभाव देखो विभवः 'तप्रो महाविभावेणं (विसे १९८५) । महा)। पूइऊण पेसिया गया य' (महा)। विभूइ स्त्री [विभूति] १ ऐश्वर्य, वैभव (उवः विमग्गिअ वि [विमागित] १ याचित, विभावसु पु[विभावसु१ सूर्य, रवि । २ औप)। २ ठाटबाट, धूमधाम; 'महाविभूईए | मांगा हुमा (सिरि १२७, सुर ४, १०७)। रविवार (पउम १७, १७७ )। देखो चलिग्रो जिरणजत्ताए' (सुर ३, ६२, महा)। २ अन्वेषित, गवेषित (पास) विहावसु । ३ अहिंसा (पण्ह २, १-पत्र ६६) विमझ न [विमध्य] अन्तराल (राज)। विभाविय वि [विभावित ] विचारित विभूसण न [विभूषण] १ अलंकार, गहना। विमण वि [विमनस ] १ विषएण, खिन्न, (सण)। २ शोभाः 'दिव्वालंकारविभूसणाई' (उवः शोक-सन्तप्त (कप्पा सुर ३, १६८, महा)। विभास सक [वि + भाष्] १ विशेष रूप सौप)। २ शून्य-चित्त, सुन्न चित्तवाला (विपा १, से कहना, स्पष्ट कहना । २ व्याख्या करना । विभूसा स्त्री [विभूषा] १ सिंगार की सजा- २–पत्र २७)। ३ निराश, हताश (गा ३ विकल्प से विधान करना। विभासइ (पव | वट, शरीर पर अलंकार-वन आदि की सजा- ७६)। ४ जिसका मन अन्यत्र गया हो वह ७३ टी) । कृ. विभासियव्य (उत्तनि ३६; वट (माचा १, २, १, ३, प्रौपा जीव ३)। (से ४, ३१, गउड)। १०० Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016080
Book TitlePaia Sadda Mahannavo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovinddas T Seth
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1986
Total Pages1010
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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