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________________ ७८२ पाइअसद्दमहण्णवो विणमिअ-विणिच्छि विणमिअ वि [विनत] विशेष रूप से नत | विणा प्र[विना] सिवाय, बिना (गउड; प्रासू विणिकुट्टिय वि [विनिकुट्टित] कूट कर (भग; औप; रणाया १, १ टी-पत्र ५)। १०१५६; दं १७)। बैठाया हुआ; 'थंभविणिकुट्टियाहिं पवराहिं विणमिअ वि [विनमित] नमाया हुआ | विणामिद (शौ) देखो विणमिअ = विनमित सालहंजीहि (सुपा १८८) (गउड)| (नाट - मृच्छ २१८) विणिकम देखो विणिक्खम । विणिक्कमइ विणय पुं [विनय] १ अभ्युत्थान, प्रणाम | विणायग पुं[विनायक] यक्ष, एक देव-जातिः । (गउड २७५; पि ४८१)। प्रादि भक्ति, शुश्रूषा, शिष्टता, नम्रता (प्राचा; | 'तत्थेव प्रागमो सो विणायगो पूयणो नाम' विणिक्कस सक [विनि + कृष] खींच कर ठा ४, ४ टी--पत्र २८३, कुमाः उवा; (पउम ३५, २२)। २ गणपति, गणेश निकालना । संकृ. विणिक्कस्स (सूत्र १, ५, प्रौपः गउड; महा; प्रासू ८)। २ संयम, (सट्ठि ७८ टी)। ३ गरुड (पउम ७१, ६७) १, २२) चारित्र (सम ५१)। ३ नरकावास-विशेष, त्थ न [ ख] अस्त्र-विशेष, गरुडास्त्र (पउम | विणिक्खंत वि [विनिष्क्रान्त १ बाहर एक नरक-स्थान (देवेन्द्र २६)। ४ अपनयन, । ७१, ६७) ।। निकला हुप्रा । २ जिसने गृह-त्याग किया हो दूरीकरण । ५ शिक्षा, सीख । ६ अनुनय । विणास देखो विगस्त । विणासइ (भवि) । वह, संन्यस्त (उप १४७ टी; कुप्र३६; महा)। ७ वि. विनय-युक्त, विनीत । ८ निभृत, विणास सक [वि + नाशय ] ध्वंस करना, विणिक्खम अक [विनिस् + क्रम] १ शान्त । ६ क्षिप्त, फेंका हुआ । १० जितेन्द्रिय, नष्ट करना । विरणासेइ (उवः महा)। भवि. बाहर निकलना । २ सन्यास लेना। विणिसंयमी (हे १, २४५)। ११ पुं. शास्त्रानुसार विणासिही, विणासेहामि (पि ५२७:५२८)। क्खमइ (गउड ८५१, ११८१) । संकृ. प्रजा का पालन (गउड ६७) मंत वि कर्म. विणासिज्जइ (महा) । कवकृ. विणा विणिक्खिमित्ता (भग) [वन् ] विनय-युक्त (उप पृ १६६) । सिज्जत (महा)। कृ. विणासियव्व (सुपा विणिक्खमण न [विनिष्क्रमण] १ बाहर विणय वि [विनत] १ विशेष रूप से नमा निकलना । २ संन्यास लेना (पंचा १८, २१)। हुआ (प्रॉप) । २ पुन. एक देव-विमान (सम विणास पुं[विनाश] विध्वंस (उव; हे ४, ३७)। ४२४) विणय देखो विगया तणय पुं[तनय] (नाट-मृच्छ ११६) विणासग वि [विनाशक] विनाश-कर्ता (द्र विणिगिण्ह सक [ विनि+ ग्रह 1 निग्रह गरुड पक्षी (वजा १२२) °सुअ पुं[सुत] वही अर्थ (पान) करना, दंड देना । वकृ. विणिगिव्हत (उप विणासण न [विनाशन] १ विनाश, विध्वंस पृ २३)। विणयइत्त देखो विणइत्तु (सुख २६, ४) ।। (भवि) । २ वि.विनाश,कर्ता (पण्ह २, १-- विणिगृह सक [विनि + गृहय् ] गुप्त रखना, विणयंधर [विनन्धर] एक शेठ का नाम पत्र ६९; दस ८, ३८) । ढकना । विरिणगृहिज्जा (प्राचा २, १, १०, (उप ७२८ टी)। विणासिअ वि [विनाशित] विनाश-प्राप्त । २) विणयण न [विनयन] विनय-शिक्षा, शिक्षण; (पान; महा; भवि)। विणिग्गम [विनिर्गम] निःसरण, बाहर 'पायारदेसणानो पायरिया, विणयणादुव- विणि देखी विणी। निकलना (गउड) ज्झाया' (विसे ३२००) विणिअंसण न [विनिदर्शन] खास उदाहरण, विणिग्गय वि [विनिर्गत] बाहर निकला विणया स्त्री [विनता] गरुड की माता का विशेष दृष्टान्त (से १२, ६६)। हुआ, बाहर गया हुआ (से २, ५; महा: नाम (गउड) तणय पुं [तनय गरुड भवि)। पक्षी (से १४, ६१; सुपा ३५४)। विणिसण वि [विनिवसन] वस्त्र-रहित, नंगा (गा १२५) । विणिघाय पुं[विनिघात] १ मरण, मौत । विणस देखो विणरस । विरणसइ (उर ७, ३; २ संसार, भव-भ्रमण (ठा ५, १-पत्र विणिइत्तु देखो विणइत्तु (उत्त २६, ४) कुमा ८, २१) २६१) विणिउत्त वि [विनियुक्त कार्य में प्रवर्तित विणिच्छ सक विनिस + चि] निश्चय विणसिर वि [विनश्वर विनाश-शील; नश्वर (दे १, १०) (उप पृ ७५)। करना । विणिच्छइ (सण)। संकृ. विणिविणस्स अक [वि+ नश] नष्ट होना, विणिओग पुं[विनियोग १ उपयोग, ज्ञान च्छिऊण (सण) । विध्वस्त होना । विणस्सइ, विणस्सए, (विसे २४३७) । २ कार्य में लगाना (पंचा विणिच्छय पुं[विनिश्चय] निश्चय, निर्णय, विणस्से (उव; महाः धर्मस ४०१)। भवि. | ७, ६) । ३ विनिमय, लेनदेन (कुप्र २०६)M - परिज्ञान (पएह १,१-पत्र १,ठा ३, ३; विणस्सिहिसि (महा)। वकृ. विणस्समाण | विणिओय सक [विनि + योजय ] जोड़ना, उव) (उवा)। कृ. विणस्स (धर्मसं ४०२, ४०३) लगाना । विणिनोयइ (भवि) विणिच्छिअ वि विनिश्चित] निश्चित, विणस्सर देखो विणसिर (पि ३१५)। विणित देखो विणी = विनिर् + इ । निर्णीत (भग; उवाः कप्पः सुर २, २०२)। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016080
Book TitlePaia Sadda Mahannavo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovinddas T Seth
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1986
Total Pages1010
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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