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________________ ७५८ पाइअसद्दमण्णवो वामणिअ-वाय हाथ, पैर प्रादि अवयव छोटे हों और छाती, वाय सक [वाचय ]१पढ़ना । २ पढ़ाना। वाय [व्याज] १ कपट, माया । २ पेट आदि पूर्ण या उन्नत हों वह शरीर (ठा वाएइ, वाएसि (कुप्र १६९); 'सावक्का बहाना, छल । ३ विशिष्ट गति (था २३) । ६-पत्र ३५७; सम १४६; कम्म १,४०)। सुयजणणी पासत्था गहिय वायए लेह वाय देखो वाग = बल्क (विपा १, ६-पत्र २ वि. उक्त माकार के शरीरवाला, ह्रस्व, (धर्मवि ४७), 'सुत्तं वाए उवज्झायो (संबोध खवं (पव ११० से २, पाप्र)। स्त्री. °णी २५) । वक वायंत (सुपा २२३)। संकृ. वाय पुं[ब्राय विवाह, शादी (श्रा २३) (मोप; णाया १, १-पत्र ३७)। ३ पु. वाइऊण (कुप्र १६६)। कृ. वायणिज्ज (ठा वाय पुं [व्यात विशिष्ट गमन (श्रा २३)। श्रीकृष्ण का एक अवतार (से २, ६)। ४ वाय ' [वाप] १ वपन, बोना। २ क्षेत्र, देष-विशेष, एक यक्ष-देवता (सिरि ६६७)। वाय सक [वा] बहना, गति करना, चलना।। खेत (श्रा २३)। ५ न. कम-विशेष, जिसके उदय से वामन वायंति (भग ५, २)। वकृ. वायंत (पिंड शरीर की प्राप्ति हो वह कर्म (कम्म १, ८२, सुर ३, ४०; सुपा ४५०; दस ५, | वाय पुं [वाय] १ गमन, गति । २ सूंघना । ३ जानना, ज्ञान । ४ इच्छा। ५ खाना, ४०) चली स्त्री [स्थली] देश-विशेष १,८)। (ती १५)। वाय अक [ बै, म्लै ] सूखना । वानइ (संक्षि भक्षण। ६ परिणयन विवाह (श्रा २३)। वामणिअ वि [दे] नष्ट वस्तु-पलायित को । ३६ प्राप्र)। वकृ. वायंत (गउड ११६५) वाय वि [व्याद] विशष ग्रहण करनेवाला फिर से ग्रहण करनेवाला (दे ७, ५६) वाय सक [वादय] बजाना। वकृ. वायंत, (श्रा २३)। वायमाण (सुपा २६३, ४३२)। कु. | वामणिआ स्त्री [६] दीर्घ काष्ठ की बाड (दे | वाय वि [ वाच ] वक्ता, बोलनेवाला (श्रा २३)। वाइयव्य (स ३१४) । वाय पुं [वात] १ पवन, वायु (भगः णाया वामद्दण न [व्यामर्दन] एक तरह का वाय वि [वान] शुष्क, सूखा, म्लान (गउड १, ११, जी ७; कुमा)। २ उत्कर्ष (उव व्यायाम, हाथ आदि अंगों का एक दूसरे से । से ५, ५७; पार; प्राप्र कुमा)। ५५ टि)। ३ पुंन. एक देव-विमान (सम मोड़ना (गाया १,१-पत्र १९, कप्पः । वाय पुंदे] १ वनस्पति-विशेष (सूम २, १०) कंत पुन [कान्त] एक देव-विमान औप) ३, १६)। २ न. गन्ध (दे ७, ५३)। (सम १०) कम्म न [कर्मन] अपान वायु वामरि दे] सिंह, मृगेन्द्र (दे ७, ५४) वाय [व्रात समूह, संघ (श्रा २३ भवि) का सरना, पादना, पाद, पर्दन (मोघ ६२२ वामलूर पु [बामलर] वल्मीक, दीमक वाय वि [व्यात] संवरण करनेवाला (श्रा | टी) कूड पुंन [कूट] एक देव-विमान (पान, गउड)17 २३)। (सम १०) खंध ( [ स्कन्ध] घनवात वामा स्त्री [वामा] भगवान् पाश्वनाथजी की मकर वाय वि [व्यागस् ] प्रकृष्ट अपराधी (श्रा आदि वायु (ठा २, ४-पत्र ८६) उभय पुन २३)। [ध्वज] एक देव-विमान (सम १०)। माता का नाम (सम १५१) वाय पुं [वात] १ पवन, वायु। २ कपड़ा "णिसग्ग पुं [निसर्ग] अपान वायु का वामिस्स देखो वामीरा (पउम ६३, ३६) । बुननेवाला, जुलाहा (श्रा २३)। सरना, पर्दन (पडि), पलिक्खोभ पुं वामी स्त्री [दे] स्त्री, महिला (दे ७,५३) iVवाय वि [व्याप] प्रकृष्ट विस्तारवाला (श्रा [परिक्षोभ] कृष्णराजि, काले पुद्गलों की वामीस वि[व्यामिश्र] मिश्रित, युक्त, सहित २३) रेखा (भग ६, ५–पत्र २७१), "प्पभ (परम ७२, ४, तंदु ४४)। वाय पुं [वाक] ऋग्वेद आदि वाक्य (श्रा पुंन [प्रभ] देव-विमान विशेष (सम १०)। वामीसिय वि [व्यामिश्रित] ऊपर देखो २३)। फलिह पुं[परिघ कृष्णराजि (भग ६, (भवि)। वाय पुं[व्याय १ गति, चाल। २ पवन, ५) रुह पुं[रुह] वनस्पति-विशेष वामुत्तय वि [कामुकक] १ परिहित, वायु । ३ पक्षी का आगमन। ४ विशिष्ट लाभ (पएण १-पत्र ३६) "लेस्स मॅन पहना हुआ। २ प्रलम्बित, लटका हुमा (था २३)। [ लेश्य] एक देव-विमान (सम १०)। (प्रौप) बाय पुं [व्याच] वंचन, ठगाई (श्रा २३)। वण्ण पूंन [°वर्ण] एक देव-विमान (सम वामूढ वि [व्यामूढ] विमूढ़, भ्रान्त (सुर वाय पुं[वाज] १ पक्ष, पंख। २ मुनि, १०)°सिंग पुंन [ शृङ्ग] एक देव-विमान ऋषि । ३ शब्द, आवाज । ४ वेग। ५ न.. (सम १०) सिट्ठ पुंन ["सृष्ट] एक देव६, १२६; १२, १४३; सुपा ७०) घृत, घी। ६ पानी, जल । ७ या का धान्य विमान (सम १०) वित्त पुंन [वर्त] वामोह पु[व्यामोह] मूढ़ता, भ्रान्ति (उप (श्रा २३)। एक देव-विमान (सम १०) पृ ३२६; सुपा ६५; भवि) । वाय न [वाच शुक-समूह (श्रा २३)। वाय पुं [वाद] १ तत्त्व-विचार, शास्त्रार्थ वामोहण वि [व्यामोहन] भ्रान्ति-जनक वाय वि [वाज् ] १ फेंकनेवाला। २ नाशक (मोघभा १७ धर्मवि ८० प्रासू ६३)। २ (भवि) (श्रा २३) उक्ति, वचन (प्रौप)। ३ नाम, पाख्याः Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016080
Book TitlePaia Sadda Mahannavo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovinddas T Seth
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1986
Total Pages1010
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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