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________________ ७५२ पाइअसहमहण्णवो वव्वीस-वसिम वव्वीस देखो वच्चीसग, बद्धीसक (पउम ३४, ६२) । २ चैत्र मास (सुज १०, १६) वसभुद्ध [दे] काक, कौआ (दे ७, ४६) ११३, ११)। उर न ["पुर] नगर-विशेष (महा) वसम देखो वसिम (महा) ।। वशधि (मा) देखो वसहि = वसति (प्राकृ "तिलअ ' [तिलक] १ हरिवंश में उत्पन्न वसमाण देखो वस = वस् । १०१)। एक राजा (पउम २२,६८)। २ न. एक वसल वि [दे] दीर्घ, लम्बा (दे ७, ३३) वश्च (म) देखो वच्छ = वृक्ष (प्राकृ १०१)। उद्यान, जहाँ भगवान् ऋषभदेव ने दीक्षा ली वसह पुं[वृषभ] वैयावृत्त्य करनेवाला मुनि थी (पउम ३, १३४) + तिलआ स्त्री (प्रोघ १४०)। २ लक्ष्मण का एक पुत्र वस प्रक [ बस ] १ वास करना, रहना । ["तिलका] छन्द-विशेष (पिंग)। (पउम ६,२०)। ३ बैल, साँढ़, साँड़ (पान)। २ सक. बाँधना। वसइ (कप्प; महा)। वसंवय वि [वशंवद] निज को अधीन ४ कान का छिद्र । ५ औषध-विशेष भूका. वसीय (उत्त १३, १८) । वकृ. वसंत, (प्राप्र)। इंध पु[चिहन शंकर, महादेव वसमाण (सुर २, २१६, ६, १२०; कुप्र कहनेवाला (धर्मवि ६) वसण न [वसन] १ वस्त्र, कपड़ा (पानः (गउड) १४कप्प)। संकृ. वसित्ता, वसित्ताणं केउ पुं[केतु] इक्ष्वाकु-वंश का एक राजा (पउम ५, ७) । वाहण पुं सुपा २४४; चेझ्य ४८२, धर्मवि)। २ (प्राचा; कप्प; पि ५८३)। हेकृ. वत्थए [°वाहन] १ ईशान देवलोक का इन्द्र (जं वसिउं ( कप्प; पि ५७८; राज)। कृ. निवास, रहना (कुप्र ४८) २-पत्र १५७)। २ महादेव, शंकर (वजा वसियव्य (ठा ३, ३, सुर १४,८७, सुपा वसण पुं [वृषण] अण्ड-कोष, पोता (सम ६०)। वीही स्त्री [वीथी] शुक्र ग्रह का ४३८) १२५; भगः परह १,३; विपा १, २; एक क्षेत्रभाग (ठा ६-पत्र ४६८) ।। वस वि [वश] १ प्रायत्त, अधीन (प्राचा: प्रौपः कुप ३६५) वसहि देखो वसइ (हे १, २१४; कुमा; गा वसण न [व्यसन] १ कट, विपत्ति, दुःख से २, ११)। २ पुंन. अधीनता, परतन्त्रता ५८२; पि ३८७) (पाप सुर ३, १६२, महा: प्रासू २३)। (कुमाः कम्म १, ४४) । ३ प्रभुत्व, स्वामित्व। वसा स्त्री [वसा] १ शरीरस्थ धातु-विशेष: २ राजादि-कृत उपद्रव (पाया १.२)। ३ ४ प्राज्ञा (कुमा)। ५ बल, सामर्थ्य (गाया 'मेयवसामंस- (पराह १, १-पत्र १४; खराब प्रादत-द्यूत, मद्य-पान प्रादि खोटी १, १७; औप)। अ, ग वि [ग] वशी गाया १, १२)। २ मेद, चरबी (माचा)। आदत (बृह १) भूत, पराधीन (पउम ३०, २०; अच्चु ६१; वसारअ वि [प्रसारक] फैलानेवाला (से सुर २, २३१; कुमाः सुपा २५७) वसणि वि [व्यसनिन् खोटी आदतवाला दृ वि | ६, ४०) [त] पराधीनता से पीड़ित, इन्द्रिय आदि (सुपा ४८८) । वसारअ देखो पसाह्य (से ६, ४०) की परवशता के कारण दःखित (पाचाः | बसा वृषा] १ ज्योतिष-प्रसिद्ध राशि- | वसाहा स्त्री प्रसाधाा अलंकार, ग्राभषण विपा १,१-पत्र ८ औप)। "ट्टमरण न विशेष, वृष राशि (पउम १७, १०८)। २ (से १,१६) ["तिमरण] इन्द्रियादि-परवश की मोत (ठा भगवान् ऋषभदेव (चेइय ५४१)। ३ एक वसि देखो वसइ; 'जत्थ न नजइ पहि पहि २, ४-पत्र ६३; भग)+ वत्ति वि जैन मुनि, जो चतुर्थ बलदेव के पूर्व जन्म में प्रडविवसिठाणयविसेसो' (सुर १, ५२) [वर्तिन् ] वशीभूत, अधीन (उप १३६ गुरु थे (पउम २०, १६२)। ४ गीतार्थ वसिअ वि [उपित] १ रहा हुआ, जिसने टी; सुपा २३८) इत्त वि [यत्त] मुनि, ज्ञानी साधु (बृह १, ३)। ५ बैल, वास किया हो वह (पात्र; स २६५; सुपा अधीन, परतंत्र (धर्मवि ३१)+ णुग वि बलीवदं (उव) । ६ उत्तम, श्रेष्ठ; 'मुरिणवसभा' ४२१; भत्त ११२; वै ७)। २ बासी, [°ानुग] वही अर्थ (पउम १४, ११)। (उव), करण न [करण] वह स्थान पयुषित; 'प्रवणेइ रयरिणवसियं निम्मल्लं वस पुं [वृप] १ धर्म (चेइय ५४१) । २ जहाँ बैल बांधे जाते हों (आचा २, १०, लोमहत्थेरण' (संबोध ६) १४)। क्खेत्त न [क्षेत्र] स्थान-विशेष, बैल, वृषभ (स ६५४; कम्म १, ४३)। वसिट्ठ [वशिष्ट] ? भगवान् पाश्वनाथ का देखो विस = वृष । जहाँ पर वर्षा-काल में प्राचार्य आदि रहते हों एक गणधर (ठ. ८-पत्र ४२६; सम १३)। वह स्थान (वव १०; निचू १७), गाम वसइ स्त्री [वसति १ स्थान, पाश्रय (कुमा)। २ एक ऋषि (नाट-उत्तर ८२) । पुं[ग्राम] ग्राम-विशेष, कुत्सित देश में | २ रात्रि, रात (दे ७, ४१)। ३ गृह, घर नगर-तुल्य गाँव; 'अस्थि हु वसभग्गामा वसि? [वशिष्ट] द्वीपकुमार देवों का उत्तर (गा १६६)। ४ वास, निवास (हे १, कुदेसनगरोवमा सुहविहारा' (वव १०)M दिशा का इन्द्र (इक) २१४)। णुजाय पुं[नुजात ज्योतिशास्त्र-प्रसिद्ध वसित्त न [वशित्व योग की एक सिद्धि, वसंत देखो वस = वस् । दश योगों में प्रथम योग, जिसमें चन्द्र, सूर्य योग-जन्य एक ऐश्वर्य; 'साहुवसित्तगुणेणं पसमं वसंत पुंबरन्त] १ ऋतु-विशेष, चैत्र और और नक्षत्र बैल के आकार से स्थित होते हैं। कूरावि जंतुणो जंति' (कुप्र २७७)वैशाख मास का समय (गाया १,१-पत्र (सुज १२-पत्र २३३)। देखो उसभ, | वसिम न [दे. वसिम] वसतिवाला स्थान ६४पाम सुर ३, ३६ कुमाः कप्पू: प्रासू रिसभ, वसह ।। | (सुर १,५२; सुपा १६४; कुप्र २२४७ महा)। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016080
Book TitlePaia Sadda Mahannavo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovinddas T Seth
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1986
Total Pages1010
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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