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________________ १२ पाइअसहमहण्णवो अंभोहि-अकिट 'रुह न [रुह] कमल, पद्म; 'कुंभंभोरुहसर- | अकंडतलिम वि [दे]१ स्नेह रहित । जिसने वि [कारिन् ] अकृत्य को करनेवाला जलनिहिणो, दिध्वविमाणरयणगणसिहिणों | शादी न की हो वह (दे १, ६०)। (पउम ८०,७१)। (उप ६ टी)। अकंपण वि [अकम्पन] १ कप रहित । २ | अकय्य (मा) ऊपर देखो (नाट)। अंभोहि पुं[अम्भोधि समुद्र (कुप्र २७१)। पुं. रावण का एक पुत्र (से १४,७०)। अकरण न [अकरण] १ नहीं करना (कस) अंस पुंअंश] १ भाग, अवयव, खंड, टुकड़ा अकंपिय वि [अकम्पित] १ कम्परहित २ मैथुन, 'जइ सेवंति प्रकरणं पंचएहवि (पान)। २ भेद, विकल्प (विसे)। ३ पर्याय, २ . भगवान महावीर का आठवाँ गणधर | बाहिरा हुति' ( वव ३)। धर्म, गुण (विसे)। (सम १६ )। अकाइय वि [अकायिक] १ शारीरिक चेष्टा अंस पुं[अंश] विद्यमान कर्म, सत्ता-स्थित अकज देखो अकय = अकृत्य ( उव)। अण्ण कम; 'अंस इति संतकमै भन्नई (कम्म ६,६)। से रहित । २ पुं. मुक्तात्मा (भग ८, २)। । वि [अकर्ण] १ कर्ण रहित । हर वि [धर] भागीदार (उत्त१३, २२)। अकन्न , २-३ . स्वनामख्यात एक अंत- अकाम अकाम प्रानच्छा (सूत्र २, ६)। २ वि. इच्छारहित, निष्काम अंस द्वीप और उसमें रहनेवाला (ठा ४, २)। पु[अंस] कान्ध, कंधा (गाया अंसलग अप्प (सुपा २०६) । णिज्जरा स्त्री [निर्जरा] १,१८ तंदु)। [अकल्प] अयोग्य आचार, कर्म-नाश की अनिच्छा से बुभुक्षा आदि कष्टों शास्त्रोक्त विधि-मर्यादा से बाहर का आचरण अंसि देखो अस = अस्। को सहन करना (ठा४,४)। (कप्प)। अंसि स्त्री [अश्रि] १ कोण, कोना (उप पू ६८)। २ धार, नोक (ठा ८)। अप्प वि [अझल्प्य] अनाचरणीय, शास्त्र- अकामग ) [अकामक] ऊपर देखो। अंसिया स्त्री [अंशिका] भाग, हिस्सा (बृह निषिद्ध आहार-वस्त्र प्रादि अग्राह्य वस्तु अकामय J ३ अवांछनीय, इच्छा करने (वव १)। के अयोग्य (पएह १, १; गाया१, १)। अंसिया स्त्री [अर्शिका] १ बवासीर का रोग अकप्पिय पुं [अकल्पिक] जिसको शास्त्र अकामिय वि [अकामिक] निराश (विपा (भग १६, ३)। २ नासिका का एक रोग | का पूरा-पूरा ज्ञान न हो ऐसा जैन साधु (निचू ३)। ३ फुनसी, फोड़ा (निचू ३)। (वव १)। अकाय वि [अकाय] १ शरीररहित । २ पु अंसु पु [अंशु] किरण (लहुअर)। मालि अकप्पिय देखो अकप्प - प्रकल्प्य (दस ५)। | मुक्तात्मा (ठा २, ३)। पुं["मालिन्] सूर्य, सूरज (रयण १)। अकम वि [अक्रम] १ क्रम रहित । २ | अकार पुं [अकार] 'अ' प्रक्षर, प्रथम स्वर क्रिवि. एक साथ (कुमा)। वर्ण (विसे ४६५)। अंसु देखो अंसुय = अंशुक (पंच ३, ४०)। अंसु [अंशु] किरण । मंत, वंत वि अकम्म । न [अकर्मन्, 'क] १ कर्म अकारग ' [अकारक] १ अरुचि, भोजन की [मत् ] १ किरणवाला। २ पुं. सूर्य अकम्मग' का प्रभाव (बृह १)। २ पुं अनिच्छा रूप रोग (णाया १,१३)। २ वि. अकर्ता (सूत्र १,१)। वाइ वि [°वादिन] मुक्त, सिद्ध जीव (आचा)। ३ कृषि आदि (प्राकृ ३५)। कर्म रहित (देश, भमि वगैरह) (जी २४)। अंसु न [अश्र] आँसू, नेत्र-जल । मंत, वंत आत्मा को निष्क्रिय माननेवाला ( सूत्र १, वि [ मत् ] अश्रुवाला (प्राकृ३५)। भूमग, भूमय वि [भूमक] अकर्म-भूमि अंसु । न [अश्रु] आंसू, नेत्र-जल (हे १, में उत्पन्न होने वाला (जीव १)। भमि. अकासि प्रदे] निषेध-सूचक अव्यय, अलम् भूमी स्त्री [भूमि, भूमी] जिस भूमि में | 'प्रकासि लजाए' (दे १, ८)। अंसुय) २६; कुमा)। प्राप्त अकिंचण वि [अकिञ्चन] १ साधु, मुनि, कल्प वृक्षों से ही प्रावश्यक वस्तुओं की प्राप्ति अंसुय न [अंशुक] १ वस्त्र, कपड़ा (से ६, होने से कृषि वगैरह कर्म करने की आवश्यकता | भिक्षुक (पएह २, ५)। २ गरीब, निर्धन, ८२)। २ बारीक वस्त्र (बृह २)। ३ पोशाक, नहीं है वह, भोग-भूमि (ठा ३, ४)। वेश (कप्प)। दरिद्र (पान)। अंसोत्थ देखो अस्सोत्थ (पि ७४, १५२, भूमिय वि [ भूमिज] प्रकर्म-भूमि में अकिट्ठ वि [अकृष्ट] नहीं जोती हुई जमीन उत्पन्न (ठा ३, १)। 'अकिटुजाय-' (पउम ३३, १४)। ३०६)। अंह पुन [अंहस् ] मल, 'मउयं व वाहियो अकम्हा प्र[अकस्मात्] अचानक, निष्का- अकिट्ठ वि [अक्लिष्ट] १ क्लेशरहित, बाधासो निरंहसा तेण जलपवाहेण' (धर्मवि | रण (सुपा ५६६)। रहितः १४६)। अकय वि [अकृत] नहीं किया हुआ (कुमा)। 'पेच्छामि तुज्झ कंतं, अंहि पुं [अंह्र] पाद, पाँव (कप्पू)। "मुह वि [मुख अपठित, प्रशिक्षित (बृह संगामे कइवएसु दियहेसु । अकइ वि [अकति] असंख्यात, अनन्त (ठा ३)।त्थ वि [Tथे असफल (नाट)। | मह नाहेण विणियं, | अकय वि [अकृत्य १-२ करने के अयोग्य रामेण प्रकिट्ठधम्मेणं' (पउम अकंड देखो अयंड (गा ६६५)। या अशक्य । ३ न. अनुचित काम । कारि ५३, ५२ )। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016080
Book TitlePaia Sadda Mahannavo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovinddas T Seth
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1986
Total Pages1010
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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