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________________ वंजुलि-वंसय पाइअसहमहण्णवो ७३५ वंजुलि वि[कजुलिन् ] वैतस वृक्षवाला। वकृ. वन्दमाण (ओघ १८; सं १०, अभि वंदिअ देखो वंद = वन्दु । स्त्री. °णी (गउड)। १७२) । कवकृ. वन्दिज्जमाण (उप ६८६ | वंदिअ वि [वन्दित] जिसको वन्दन किया वंझ वि [वन्ध्य] शून्य, वजित (कुमा)।- टी; प्रासू १६५) । संकृ. वन्दिअ, वन्दिओ, गया हो वह (कप्पः उव)। वंझा स्त्री [वन्ध्या] बाँझ स्त्री, अपुत्रवती स्त्री वन्दिऊण, वन्दित्ता, वन्दित्तु, वंदेवि वदिम देखो वंद - वन्द ।(पउम २६, ८३, सुपा ३२४)। (कम्म १, १; चंड; कप्पा षड्; हे ३, १४६; वंदुरा स्त्री [मन्दुरा] वाजिशाला, घुड़साल, चंड) । हेकृ. वंदित्तए (उवा)। कृ. वंज, वंटन [वृन्त फल या पत्तों का बन्धन (पिंड अस्तबल । वंद, वंदणिज, वंदणीअ, वंदिम (राजा वंद्र न [वन्द्र] समूह, यूथ (हे १, ५३; २, अजि १४द्रव्य १ रणाया १, १; प्रासू १६२ | वंटग [वण्टक] बाँट, विभाग (निचू १९)। | ७६; पउम ११, १२० स ६६६)। नाट-मृच्छ १३०; दसचू१)। वंध पुं [वन्ध्य एक महाग्रह, ज्योतिष्क देववंठ [दे] १ प्रकृत-विवाह, अविवाहित वंद न [वृन्द] समूह, यूथ (पउम १, १, विशेष (सुज्ज २०)। गुजराती में वांढो (दे ७, ८३; ओघ २१८)। प्रौपः प्राप्र)। वंफ सक [काङ्क्ष ] चाहना, अभिलाष २ खण्ड, टुकड़ा। ३ गण्ड (दे ७, ८३)। बंद। वि [वन्दक] वन्दन करनेवाला | करना । बंफइ, वंफए, बर्फति (हे ४, १९२; ४ भृत्य, दास (दे ७, ८३, सुर २, १९८ वंदग। (पउम ६,५८, १०१, ७३; महाः । कुमा) रयण ८३, सिरि १११५)। ५ वि. निःस्नेह, औपः सुख १, ३). वंफ अक [वल्] लौटना। वंफइ (हे ४, स्नेह-रहित (दे ७, ८३)। ६ धूर्त, ठग वंदण न [वन्दन] १ प्रणमन, प्रणाम । २ । १७६; षड् ) ।। (श्रा १२) स्तवन, स्तुति (कप्प; सुर ४, ६२: उव) वंफि वि विलिन] १ लौटनेवाला । २ नीचे वंठ वि [वण्ठ] खर्व, वामन, नाटा, बौना | कलस कलश] मांगलिक घट (प्रौप) गिरनेवाला (कुमा)।(हे ४, ४४७)। घड पुं[°घट] वही अर्थ (प्रौप), माला, वंफिअ वि [काक्षित] अभिलषित (कुमा)। वंठण (अप) न [वण्टन] बाँटना, विभाजन मालिआ स्त्री [ माला] घर के द्वार पर | वंफिअ वि [दे] भुक्त, खाया हुआ (दे ७, (पिंग)। मंगल के लिए बँधी जाती पत्र-माला (सुपा ५४; सुर १०, ४; गा २६२) वंडइअ वि [दे] पीडित (षड् )। ३५; पाप्र)। वडिआ, वंस पुं[दे] कलंक, दाग (दे ७, ३०) । वत्तिआ स्त्री [प्रत्यय] वन्दन-हेतु (सुपा 'वंडु देखो पंडु (गा २६५) ४३२, पडि) वंस [वंश] १ बाँस, वेणु (पएह २,५वंडुअन [दे] राज्य (दे ७, ३६)।वंदणा स्त्री [वन्दना] १ प्रणाम । २ स्तवन पत्र १४६; पात्र) । २ वाद्य-विशेषः 'वाइयो "वंडुर देखो पंडुर (गा ३७४) । वंसो' (कुमा २, ७०, राय) । ३ कुल (पंचा ३, २; पण्ह २, १-पत्र १००% 'चुलुगवंसदीवप्रो' (कुमा २,६१)। ४ सन्तान, वंढ पुं[दे] बन्ध (दे ७, २६)। अंत)। संतति । ५ पृष्ठावयव, पीठ का भाग। ६ वंत वि [वान्त पतित, गिरा हुआ (दस ३, वंदणिया स्त्री [दे] मोरी, नाला, पनाला: वर्ग। ७ इक्षु, ऊख । ८ वृक्ष-विशेष, सालवृक्ष १ टी)। 'अस्थि कंबलो, गरिणयाए नेमि । मुक्को । तो (हे १, २६०), इरि पु ["गिरि] पर्वतवंत [वान्त] १ जिसका वमन किया गया तोसे दिनो। तीए चं (? बं) दणियाए छूढो' विशेष (पउम ३६, ४) । करिल्ल, गरिल्ल हो वह (उव)। २ पुंन. वमनः 'वंते इ वा (सुख २, १७)। पुंन [°करील] वंशांकुर, बाँस का कोमल पित्ते इ वा' (भग)। वंदर देखो बंद - वृन्द (प्राप्र)। नवावयव (श्रा २०; पब ४) . जाली, वंतर पुं[व्यन्तर] एक देव-जाति (दं २७ वंदाप (अशो) देखो वंदाव । वंदापयति (पि याली स्त्री [जाली] बाँसों का गहन घटा __ महा). (सुर १२, २००; उप पू ३६) + रोअणा वतरिअ पुं[व्यन्तरिक ऊपर देखो (भग)। वंदारय पुं [वृन्दारक] १ देव, देवता स्त्री [रोचना] वंशलोचन (कप्पू)। वंतरिणी स्त्री [व्यन्तरी] व्यन्तर-जातीय देवी। (पाम कुमा)। २ वि. मनोहर (कुमा)। वंसकवेल्लुय पुन [दे. वंशकवेल्लुक छत (सुपा ६१३)। ३ मुख्य, प्रधान (हे १, १३२)। के नीचे दोनों तरफ तिरछा रखा जाता बाँस वंता देखो वम । चंदारु वि [वन्दारू] वन्दन करनेवाला (चेश्य (जीव ३; राय) IN 'ति देखो पन्ति (गा २७८, ४६३) ।। ६२१, लहुप्र) वंसग देखो वंसय (राज)। °वंथ देखो पन्थ (से १, १६, ३, ४२, १३, वंदाव सक [वन्दय् ] वन्दन करवाना। वंसप्फाल वि [दे] १प्रकट, व्यक्त । २ ऋजु, २०; पि ४०३)। वंदावइ (ब)।.. सरल (दे७, ४८)वंद सक [वन्द्] १ प्रणाम करना । २ वंदावणग न [वन्दन] वन्दन, प्रणाम (श्रावक वंसय वि [व्यंसक] १ धूर्त, ठग । २ पुं. . स्तवन करना। वंदइ (उव; महा: कप्प)। ३७४) । दुष्ट हेतु-विशेष (ठा ४, ३–पत्र २५४) ।। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016080
Book TitlePaia Sadda Mahannavo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovinddas T Seth
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1986
Total Pages1010
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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