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________________ लोलंचाविअ-ल्हिक्क पाइअसहमहण्णवो (ठा ६-पत्र ३६५)। च्चुअ पुं[च्युत] लोहि । देखो लोही; 'कुंभोसु य पयणेसु लोहिल्ल वि [दे. लोभिन्] लम्पट, लुब्ध (दे रत्नप्रभा-नरक का एक नरक-स्थान (उवा) लोहिय लोहियसु य कंदुलोहिकुंभोसु ७, २५; पउम ८, १०७ गा ४४४) ।। लोलुंचाविअ वि [दे] रचित-तृष्ण, जिसने (सूअनि ८० ७६)। लोही स्त्री [लोही] लोहे का बना हुआ तृष्णा की हो वह (दे ७, २५) । लोहिअ पुलोहित] १ लाल रंग, रक्त भाजन-विशेष, कराह (उप ८३३; चारु १)।' वर्ण। २ वि. रक्त वर्णवाला, लाल (से २, लोलुव देखो लोलअ (सूत्र २, ६, ४४) ।।। ल्हस देखो लस = लस् । ल्हसइ (प्राकृ ७२) । ४. उवा)। ३ न. रुधिर, खून (पउम ५, लोव सक [लोपय् ] लोप करना, विध्वंस ७६)। ४ गोत्र-विशेष, जो कौशिक गोत्र की ल्हस प्रक [स्रेस् ] खिसकना, सरकना, करना । लोबेइ (महा)। एक शाखा है (ठा ७-पत्र ३६०) गिर पड़ना । ल्हसइ (हे ४, १९७; षड्)। लोव पुन लोप] विध्वंस, विनाश, प्रदर्शन लोहिअंक पुं [लोहित्यक, लोहिताङ्क] वकृ. ल्हसंत (वज्जा ६०)।'कम-लोवकारया' (कुप्र ४), 'या दुढे जासु अठासी महाग्रहों में तीसरा महाग्रह (सुज्ज लहसण न [स्रसनखिसकना, पतन (सुपा बहिं लोवं व तुमं अदंसरणा होसु' (धर्मवि लोहिअक्ख पुं[लोहिताक्ष] १ एक महाग्रह ल्हसाव सक [ संसय ] खिसकाना । संकृ. लोह देखो लोभ = लोभ (कुमा प्रासू १७६) (ठा २, ३–पत्र ७७)। २ चमरेन्द्र के ल्हसाविअ (सुपा ३०८)। लोह पुन [लोह] १ धातु-विशेष, लोहा महिष-सैन्य का अधिपति (ठा ५, १-पत्र ल्हसाविअ वि [संसित] खिसकाया हुआ (विपा १,६-पत्र ६६, पानः कुमा)। २ ३०२० इक)। ३ रत्न की एक जाति (णाया (कुमा)। धातु, कोई भी धातु; 'जह लोहाण सुवन्न १,१-पत्र ३१, कप्पः उत्त ३६, ७६)। ४ एक देव-विमान (देवेन्द्र १३२ १४४)। ल्हसिअ वि [स्रस्त खिसक कर गिरा हुमा तणाण धन्न घणाण रयणाई' (सुपा | ५ रत्नप्रभा पृथिवी का एक काण्ड (सम (कुप्र १८७; वज्जा ८४) ६३६) कार पुं [कार] लोहार (कुप्र १०४)। ६ एक पर्वत-कूट (इक)। ल्हसि वि [दे] हर्षित (चंड)। १८८) जंघ पुं [जङ्घ] १ भारत में लोहिआ अक [लोहिताय ] लाल ल्हसुण देखो लसुण (पएण १-पत्र ४०; उत्पन्न द्वितीय प्रतिवासुदेव राजा (सम लोहिआअ होना। लोहिमाइ, प्रोहियाइ १५४) । २ राजा चण्डप्रद्योत का एक दूत | पि २१०)। (महा) जंघवण न [जवन] मथुरा (हे ३, १३८; कुमा)। ल्हादि स्त्री [ह लादि] पाहाद, प्रमोद, खुशी लोहिआमुह पुं [लोहितामुख रत्नप्रभा का के समीप का एक वन (ती ७)। (राज)। एक नरकावास (स ८८)।लोह वि [लौह] लोहे का, लोह-निर्मित ( से ने ल्हाय पुं [ह लाद ] ऊपर देखो (धर्मसं लोहिञ्च पुं[लोहित्य] प्राचार्य भूतदिन्न के १४, २०) २१६)। शिष्य एक जैन मुनि (णंदि ५३) । लोहंगिणी स्त्री [लोहाङ्गिनी] छन्द-विशेष लोहिश्च ।न[लौहित्यायन] गोत्र-विशेष ल्हासिय पुं [ल्हासिक] एक अनायं मनुष्य(पिंग)। लोहिचायण (सुज्ज १०, १६ टी; इक; जाति (परह १, १-पत्र १४)।लोहल लोहल] शब्द-विशेष, अव्यक्त सुज्ज १०, १६)। ल्हिक्क अक [नि + ली] छिपना। ल्हिक्का शब्द (षड्)लोहिणी । स्त्री [दे] वनस्पति-विशेष, कन्द (हे ४, ५५; षड् २०६)। वकृ. लिहक्कंत लोहार पुं [लोहकार] लोहार, लोहे का काम लोहिणीहू विशेष (पएण १-पत्र ३५), (कुमा) करनेवाला शिल्पी (दे८, ७१ ठा -पत्र _ 'लोहिणीहू य थीहु ये' (उत्त ३६, ६६; सुख लिहक्क वि [दे] १ नष्ट (हे ४, २५८)। २ ४१७) ३६,६६) गत ( षड्) ॥ इन सिरिपाइअसहमण्णवम्मि लपाराइसहसंकलणो चउत्तीस इमो तरंगो समत्तो॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016080
Book TitlePaia Sadda Mahannavo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovinddas T Seth
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1986
Total Pages1010
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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