SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 8
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रमाण-ग्रन्थों [ रेफरेन्सेज़ ] के संकेतों का विवरण संकेत रन्थ का नाम अंगविज्जा अंगचूलिया अंतगडदसामो पंत अच्च अजि अझ अत्तचअसम अजिप्रसंतिथव अध्यात्ममतपरीक्षा अणु मणुप्रोगदारसुत्त अणुत्तरोववाइअदसा संस्करण प्रादि जिसके अंक दिए गए हैं वह प्राकृत ग्रन्थ परिषद्, वाराणसी-५, १६५७ हस्तलिखित । *१ रॉयल एसियाटिक सोसाइटी, लंडन, १९०७ २ प्रागमोदय-समिति, बंबई, १९२० वाणीविलास प्रेस, मद्रास, १८७२ स्व-संपादित, कलकत्ता, संवत् १९७८ १ भीमसिंह मारणक, संवत् १९३३ २ जैन प्रात्मानन्द सभा, भावनगर १ राय धनपतिसिंहजी बहादुर, कलकत्ता, संवत् १९३६ २ आगमोदय समिति, १९२४ बम्बई, १ रॉयल एसियाटिक सोसाइटी, लंडन, १९०७ २ आगमोदय-समिति, बम्बई, १९२० निर्णयसागर प्रेस, बम्बई, १९१६ त्रिवेन्द्र संस्कृत सिरोज १ जैन-धर्म-प्रसारक सभा, भावनगर, संवत् १९६६ २ शा. बालाभाई ककलभाई, अहमदाबाद, संवत् १९६२ ... हस्तलिखित डॉ. इ. ल्युमेन्-संपादित, लाइपजिग, १८६७ प्राकृत ग्रन्थ परिषद्, वाराणसी-५ १ डॉ. डबल्यु. शनिंग संपादित, लाइपजिग, १६१. " + २ भागमोदय-समिति, बम्बई, १९१६ श्रतस्कन्ध, प्रध्य० ३ प्रो. रवजीभाई देवराज-संपादित, राजकोट, १९०६ आगमोदय-समिति, बम्बई, १९१६ गाथा हस्तलिखित प्रध्ययन + हस्तलिखित गाथा अभिज्ञानशाकुन्तल प्रविमारक आउरपञ्चक्खाणपयन्नो प्राउ प्राक १प्रावश्यककथा २ अावश्यक-एर ज्यालुगन् आख्यानकमरिणकोश प्राचारांगसूत्र आख्या प्राचा प्राचानि पाचू मात्म आत्महि आत्मानु आनि आचारांग-नियुक्ति आवश्यकचूणि पात्मसंबोधकुलक मात्महितोपदेश-कुलक मात्मानुशास्ति-कुलक आवश्यकनियुक्ति १ यशोविजय-जैन-ग्रंथमाला, बनारस । २ हस्तलिखित । * ऐसी निशानी वाले संस्करणों में अकारादि क्रम से शब्द-सूची छपी हुई है, इससे ऐसे संस्करणों के पृष्ठ आदि के अंकों का उल्लेख प्रस्तुत कोश में बहुधा नहीं किया गया है, क्योंकि पाठक उस शब्द सूची से हो अभिलषित शब्द के स्थल को तुरन्त पा सकते हैं। जहाँ किसी विशेष प्रयोजन से अंक देने की प्रावश्यकता प्रतीत भी हुई है, वहाँ पर उसी ग्रन्थ की पद्धति के अनुसार अंक दिए गए हैं, जिससे जिज्ञासु को अभीष्ट स्थल पाने में विशेष सुविधा हो। + इन संस्करणों में श्रुतस्कन्ध, अध्ययन और उद्देश के अङ्क समान होने पर भी सूत्रों के अङ्क भिन्न-भिन्न हैं। इससे इस कोष में जिस संस्करण से जो शब्द लिया गया है उसी का सूचाङ्क वहाँ पर दिया गया है। अंक की गिनती उसी उद्देश्य या अध्ययन के प्रथम सूत्र से भारम्भ की गई है। +श्रद्धेय श्रीयुत केशवलालभाई प्रेमचन्द मोदी, बी. ए., एल एल.,बी. से प्राप्त । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016080
Book TitlePaia Sadda Mahannavo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovinddas T Seth
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1986
Total Pages1010
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy