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६२४ पाइअसहमहण्णवो
फिरक-फुरण फिरक्क न [दे] खाली गाड़ी, भार ढोने- फुक्का स्त्री [दे] १ मिथ्या (दे ६, ८३)।२ फुडण न [स्फुटन] टूटना, खण्डित होना वाली खाली गाड़ी; 'समचित्ता दुवि वसहा फूक (कुप्र १५०)।
(परह १, १-पत्र २३)। सगडं कड़हति उवलभरियपि । अदवि विभि-फकार पं [फकार फफकार. फ फैकी फुडा स्त्री [स्फुटा] अतिकाय-नामक महोरगेन्द्र नचित्ता फिरक्कजुत्तावि तम्मति' (सुपा | आवाज (कुप्र ५८ सण)
की एक पटरानी, इन्द्राणी-विशेष (ठा ४, ४२४)।
फुक्किय वि [फूत्कृत] फुफकारा हुआ (माव. फिरिय वि [गत] गया हुअा,
फुडा स्त्री [फटा] सांप को फन, 'उक्कडफु'गोधणवालणहेउं पुरिसा इह
फुक्की स्त्री [दे] रजकी, धोबिन (दे६, ) डकुडिलजडिलककस वियडफुडाडोवकरणदच्छ' केवि अग्गो फिरिया। फुग्ग स्त्रीन [दे. स्फिच ] शरीर का अवयव- |
(उवा) जं सुम्मइ प्रासन्नो विशेष, कटि-प्रोथ (सूअनि ७६)।
फुडिअ वि [स्फुटित] १ विकसित, खिला सुन्नेचि हु एस संखरयों
हुआ (पाल, गा ३६०) । २ फूटा हुआ, (धर्मवि १३६)। फुग्गफुग्ग वि [दे] विकीर्ण रोमवाला,
विदीर्ण (स ३८१)। ३ विकृत (पएह १, फिलिअ देखो फिडिअ (से ८,६८)। परस्पर असंबद्ध-बिखरे हुए केशवाला: तस्स
२-पत्र ४०)।। फिल्लुस प्रक [दे] फिसलना, खिसकना,
भुमगारो फुग्गफुग्गाओ' (उवा)।
फुडिअ (अप) देखो फुरिअ (भवि)। गिरना । वकृ. 'सेवालियभूमितले फिल्लुस
फुट । अक [स्फुट , भ्रंश] १ विकसना, फुट्ट खोलना । २ प्रकट होना । ३ फूटना,
फुडिआ स्त्री [स्फोटिका] छोटा फोड़ा, माणा य थामथामम्मि' (सुर २, १०५) । फटना, टूटना । ४ नष्ट होना। फुटइ, फुट्टई,
फुनसी (सुपा १३८)। देखो फेल्लुस ।
फुट्ट इ, फुटउ (संक्षि ३६, प्राकृ ६६; हे ४,
| फुड्ड देखो फुट्ट । फुड्डइ (षड् )
3 फीअ देखो फाय (सूत्र २, ७, १)।
१७७; २३१; उवः भविः पिंगा गा २२८)।
| फुन्न वि [दे. स्पृष्ट] छूमा हुआ (पव १५८
3 फीणिया स्त्री [दे] एक जात की मीठाई,
भवि. 'फुट्टिस्सइ बोहित्थं महिलाजणकहियमंतं
| टी; कम्म ५, ८५ टी)। गुजराती में 'फेणी' (सम्मत्त ५७) ।
वा (धर्मवि १३), फुट्टिहिइ (पि ५२६)। वकृ. फुप्फुस न [दे] उदरवर्ती अन्त्र-विशेष, फुका स्त्री [दे फूक, मुह से हवा निकालना
फटत. फटमाण (पण्ड १.३ गा २०४ फेफड़ा (सूअनि ७३; पउम २६, ५४) ।। (मोह ६७)
फुम सक [भ्रम् ] भ्रमण करना । फुमह फुकार पुं
सुर ४, १५१, णाया १,१-पत्र ३६) फुङ्कार] फुफकार, कुपित सर्प
फुट्ट वि [स्फुटित, भ्रष्ट] १ फूटा हुआ, टूटा (हे ४, १६१) । प्रयो. फुमावइ (कुमा)। आदि की आवाज (सुर २, २३७) फुटा स्त्री [दे] केश-बन्ध (दे ६, ८४)।
हुआ, विदीर्ण (उप ७२८ टी; सम्मत्त १४५, फुम सक [दे. फूत् + कृ] फूंक मारना,
सुर २, ६०; ३, २४३, १३, २१०)।२ मुँह से हवा करना । फुमेजा (दस ४, १०)। कुंद देखो फंद = स्पन्द। फुदइ (से १५, ७७)।
भ्रष्ट, पतित (कुमा)। ३ विनष्टः 'फुट्टहडा- वकृ. फुमंत (दस ४, १०)। प्रयो. फुमावेजा फंफमा । स्त्री [दे] करीषाग्नि, वनकरडे हडसीस' (णाया १.१६ विपा १,१)। (दस ४, १०)
कुआ की प्राग (पान दे ६, ८४ तंदु । फुफुगा । ४५; जीव २; बृह १; कम्म १,
फुट्टण न [स्फुटन १ फूटना, टूटना (कुप्र फुर अक [स्फुर ] १ फरकना, हिलना । २२) 10
४१७)। २ वि. फूटनेवाला, विदीर्ण होनेवाला २ तड़फड़ना । ३ विकसना, खीलना। ४ पुंफुमा स्त्री [दे] १ करीषाग्नि, 'अहवा डज्झउ (हे ४, ४२२)।
प्रकाशित होना, प्रकट होनाः ‘फुरइ अ
सीताइ तक्खणं वामच्छे' (से १५, ७६; निहुयं निमं फुफुम व्व चिरमेसो' (उप फुट्टिअ वि [स्फुटित] विदारित, 'फुट्टिअमोहो' ७२८ टी)। २ कचवर-वह्नि, कूड़ा-करकट | (कुमा ७, ६४)।
पिंग)। वकृ. फुरंत, फुरमाण- (गा १९२; की आग (सुख १, ८) फुट्टिर वि [स्फुटित] फूटनेवाला (सण)।
सुर २, २२१महा पिंग से ६, २५, १२, फुफुल ) सक [दे] १ उत्पाटन करना।
२६) । संकृ. फुरित्ता (ठा ७)। फुट्ठ देखो पुट्ठ = स्पृष्ट (पि ३११)। फुफुल्ल , २ कहना । फुफुल्लइ (हे२,१७४)।
फुर सक [अप + हृ] अपहरण करना, फुड देखो फुट्ट = स्फुट , भ्रश् । फुडइ (हे ४, | फुस सक [मृज , प्र+उछु ] पोंछनाः
छीनना । प्रयो. फुराविति (वव ३)।१७७ २३१, प्राकृ ६६); 'फुडंति सव्वंगसाफ करना । फुसदि (प्राकृ९३)।
फुर पुं[स्फुर] शस्त्र-विशेष; फुरफलगावरण
संधीओ' (उप ७२८ टी)। वकृ. फुडमाण फुसण देखो फासण (उप पृ ३४)।
गहिय- (पएह १, ३–पत्र ४६)।(सुर ३, २४३)। फुक्क अक [फूत् + कृ] १ फुफकारना, फँ
फुर (अप) देखो फुड - स्फुट (पिंग)।फू आवाज करना। २ सक, मुह से हवा
फुड देखो पुट्ठ = स्पृष्ट (पएण ३६, ठा ७- फुरण न [स्फुरण] १ फरकना, कुछ हिलना, निकालना, फूकना । फुक्का (पिंग) । वकृ. पत्र ३८३ जीवस २००० भग)
ईषत् कम्पनः 'जं पुण अच्छिप्फुरणं मह होही फुकंत (गा १७६), फुक्किजंत (म) (हे फुड वि [स्फुट] स्पष्ट, व्यक्त, साफ, विशद | भारिया तेण' (सुर १३, १२७)। २ स्फूर्ति ४, ४२२)। (पाम हे ४, २५८; उवा)।
(सुपा ६ वजा ३४ सम्मत्त १६१).
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