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________________ ५६० पाइअसहमहण्णवो परिभाइय-परिमहिय माण (राज)। संकृ. परिभाइत्ता, परि- परिभुंजण न [परिभोजन] परिभोग (उप परिमंथिअ विपरिमथित] अत्यन्त आलोभायइत्ता (कप्प; प्रौप)। हेकृ. परिभाएउं १३४ टी। डित (सम्मत्त २२६)। (पि ५७३)। परिभंजणया स्त्री [परिभोजना] ऊपर देखो परिमंद वि [परिमन्द मन्द, अशक्त (सुर परिभाइय वि [परिभाजित] विभक्त किया । (सम ४४)। ४, २४०)। हुप्रा (प्राचा २, २, ३, २)। परिभुत्त वि [परिभुक्त] जिसका परिभोग परिमग्ग सक [परि + मार्गय ] १ अन्वेपरिभायंत देखो परिभाअ। किया गया हो वह (सुपा ३००)। षण करना, खोजना। २ मांगना, प्रार्थना परिभायण न [परिभाजन] बँटवा देना | परिभुत्त । वि [परिवृत] वेष्टित, परिकरित, | करना। वकृ. परिमग्गमाण (नाट-विक्र (पिंड १६३)। परिभुय लपेटा हुआ, घेरा हुआ (पाचा २, ३०)। संकृ. परिमग्गेउं (महा)। परिभाव राक परि + भावय ] १ पर्या- ११, ३, २, ११, १६)। परिमग्गि वि [परिमार्गिन् खोज करनेवाला लोचन करना । २ उन्नत करना । परिभावइ परिभूअ वि [परिभूत] अभिभूत, तिरस्कृत (सूम २, ७, २, सुर १६, १२६; चेइय (गा २६१)। (महा)। संकृ. परिभाविऊण (महा)। परिमज्जिर वि [परिमज्जित] डूबनेवाला कृ. परिभावणीय (राज)। ७१४महा)। (सुपा है)। परिभावइत्त वि [परिभावयित] प्रभावक, | परिभोअ देखो परिभोग (अभि १११)। परिमट्ट वि[परिमृष्ट] १ घिसा हुआ (से उन्नति-कर्ता (ठा ४,४-पत्र २६५)। परिभोइ वि [परिभोगिन] परिभोग करने. ६, २, ८, ४३)। २ प्रास्फालितः 'परिमट्ठपरिभावि वि [परिभाविन] परिवभ करने- बाला (पि ४०५; नाट-शकु ३५)। मेरुसिहरो' (से ४, ३७) । ३ माजित, शोधित वाला (अभि ७१)। परिभोग पुं [परिभोग] १ बारबार भोग । (कप्प)। परिभास सक [परि + भाष्] १ प्रति(ठा ५, ३ टी; आव ६)। २ जिसका बारः | परिमद सक [परि + मर्दय 1 मर्दन करना । पादन करना, कहना। २ निन्दा करना। परिबार भोग किया जाय वह वस्त्र आदि (ौप)। वकृ. परिमदयंत (सुर १२, १७२)। भासइ, परिभासंति, परिभासेइ, परिभासए ३ जिसका एक ही बार भोग किया जाय(उत्त १८, २०; सूत्र १, ३, ३, ८, २, परिमद्दण न [परिमर्दन] मर्दन, मालिश जो एक ही बार काम में लाया जाया वह७, ३६, विसे १४४३)। वकृ. परिभास (कप्प; प्रौप)। आहार, पान आदि (उवा)। ४ बाह्य वस्तु | माग (पउम ५३, ६७)। परिमहा स्त्री [परिमर्दा] संबाधन, दबाना, का भोग (प्राव ६)। ५ प्रासेवन (पएह १, परिभासा स्त्री [परिभाषा] १ संकेत (संबोध | पैचप्पी-पैर दबाना आदि (निचू ३)। ५८ भास १६)। २ तिरस्कार । ३ चूणि, | परिभोग परिमन्न सक [परि + मन्] आदर करना। टीका-विशेष (राज)। परिभोत्तव्य देखो परिभुज। परिमन्नइ (भवि)। परिभासि वि [परिभापिन् परिभव-कर्ता, परिभोत्तु परिमल सक [परि + मल् , मृद्] १ घिसना। २ मदन करना; 'जो मरणयालि परिमइल सक [परि + मृज ] मार्जन करना 'राइणियपरिभासो' (सम ३७)। (संक्षि ३५)। परिभासिय वि [परिभाषित प्रतिपादित परिमलइ हत्थु (कुप्र ४५२), 'रणलिणीसु भमसि परिमल सि (सूअनि ८८ भास २१)। परिमउअ वि [परिमृदुक १ विशेष कोमल। २ अत्यन्त सुकर, सरल (धर्मसं ७६१; सत्तलं मालईपि यो मुअसि । परिमिंद सक [परि + भिद्] भेदन करना। ७६२) । स्त्री. उई (विसे ११६६)। तरलत्तणं तुह अहो महुअर कवकृ. परिभिजमाण (उप पृ ६७)। परिमउलिअ वि [परिमुकुलित] चारों ओर जइ पाडला हरइ ।' परिभीय वि [परिभीत] डरा हुआ (उव)। से संकुचित (सण)। (गा ६१६)। परिभुंज सक [परि + भुञ्] १ खाना, परिमंडण न [परिमण्डन] अलंकरण, विभूषा | परिमल पुं[परिमल] १ कुंकुम-चन्दनादि का भोजन करना । सेवन करना, सेवना। ३ मर्दन (से १,६४)। २ सुगन्ध (कुमाः पात्र)। बारबार उपभोग में लेना । कर्म. परि जिज्जइ परिमंडल वि [परिमण्डल] वृत्त, गोलाकार | परिमलण न [परिमलन] १ परिमर्दन । २ परिभुज्जइ (पि ५४६; गच्छ २, ५१)। (सूत्र २, १, १५; उत्त ३६, २२; स ३१२; विचार (गा ४२८; गउड)। वकृ. परिभुजंत, परि जमाण (निचू १; | पान औपपरण १; ठा १, १)। परिमलिअ वि [परिमलित, परिमृदित] णाया १, १; कप्प)। कवकृ. परिभुज्जमाण परिमंडिय वि [परिमण्डित] विभूषित, जिसका मदन किया गया हो वह (गा ६३७, (प्रौपः उप पृ ६७ रणाया १,१-पत्र ३७)। सुशोभित (कप्पः प्रौपः सुर ३, १२)। से ७, ६२, महा; वज्जा ११८)। हेकृ. परिभोत्तु (दस ५, १) । कृ. परिभोग, परिमंथर वि [परिमन्थर] मन्द, धीमा परिमहिय वि [परिमहित] पूजित (पउम परिभोत्तव्व (पिंड ३४; कस)। । (गउड; स ७१६)। परिमण्डन (जत ज्जा Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016080
Book TitlePaia Sadda Mahannavo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovinddas T Seth
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1986
Total Pages1010
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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