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________________ ४४६ पाइअसहमहण्णवो तोसलिय-थंभण पुत्त [पुत्र एक प्रक प्रसिद्ध जैन प्राचार्य 'त्ति प्र [इति ] उपालम्भ-सूचक अव्यय 'त्थरु देखो थरु (पि ३२७)। (प्रावम) (प्राकृ ७८)। स्थल देखो थल (काप्र ८७)। तोसलिय पुं [तोसलिक] तोसलि-ग्राम का | °त्ति देखो इअ = इति (कप्पः स्वप्न १०; सण स्थली देखो थली (पि ३८७)। प्रधीश क्षत्रिय (प्रावम)स्थ देखो एत्थ (गा १३२)। त्थव देखो थव = स्तु । वकृत्थवंत तोसवि वि [तोषित] खुश किया हुआ, स्थ वि [स्थ] स्थित, रहा हुआ (आचा) (नाट)। तोसिअ । संतोषित (हे ३, १५०; पउम | "त्थ देखो अत्थ (वान १५) । 'स्थवअ देखो थवय (से १, ४०; नाट)। ७७,८८) स्थअ देखो थय = स्तृत (से १,१)। 'त्थाण देखो थाण (नाट)। तोहार (अप) देखो तुहार (पिंग; पि ४३४) त्थउड देखो थउड (गउड)। 'त्थाल देखो थाल (कुमा)। 'त्त वि [५] त्राण-कर्ता, राक्षक; 'सकलत्तं | 'त्थंब देखो थंब (चारु २०)। 'थिअ देखो थिअ (गा ४२१)।संतुट्ठो सकल तो सो नरो होइ' (सुपा ३६६) 'त्थंभ देखो थंभ (कुमा)। "स्थिर देखो थिर (कुमा)। त्तण देखो तण (से १, ६१). | 'त्थंभण देखो थंभण (वा १०)।" 'त्थोअ देखो थोअ (नाट–वेणी २४)। ॥ इन सिरिपाइअसद्दमण्णवम्मि तयाराइसहसंकलयो तेवीस इमो तरंगो समत्तो॥ थ ' [थ] दन्त-स्थानीय व्यजन-विशेष (प्राप; थउड न [ स्थपुट ] १ विषम और उन्नत | थंब वि [दे] विषम, असम (दे ५, २४) ।। प्रामा)। प्रदेश (दे २, ७८)। २ वि. नीचा ऊँचा थंब पुं[स्तम्ब] तृण आदि का गुच्छ (दे ८, थ अ. १-२ बाक्यालंकार और पाद-पूर्ति में (गउड)। __४६ ७७१, कुप्र २२३)।प्रयुक्त किया जाता अव्ययः 'कि थ तयं थउडिअ वि [स्थपुटित] १ विषम और थंभ प्रक [स्तम्भ ] १ रुकना, स्तब्ध होना, पम्हुढं जं थ तया भो जयंत पवम्मि ' उन्नत प्रदेशवाला। २ नीचा-ऊँचा प्रदेशवाला स्थिर होना, निश्चल होना। २ सक. क्रिया(णाया १,१-पत्र १४८; पंचा ११)।(गउड)। निरोध करना, अटकाना, रोकना, निश्चल °थ देखो एत्थ (गा १३१, १३२; सण)। | थउड्ड न [दे] भल्लातक, वृक्ष-विशेष, भिलावा करना। यंभइ (भवि)। कम. थंभिज्जइ थइअ वि [स्थगित] आच्छादित, ढका हुआ (दे ५, २६) । (हे २, ६)। संकृ. थंभिउं (कुप्र ३८५)। (से ५, ४३; गा ५७०)।थइ। स्त्री [स्थगिका ] पानदानी, पान थंग सक [उद् + नामय् ] ऊँचा करना, थंभ पुं[स्तम्भ घेरा, 'थंभतित्थत्थंभत्थं एइ थइआ । रखने का पात्र, पानदान (महा), इत्त | उन्नत करना । थंगइ (प्राकृ ३५)। रोसप्पसरकलुसिलो नाह संगामसीहो' (हम्मीर मुं[वत् ] ताम्बूल-पात्र-वाहक नौकर (कुप्र थंडिल न [स्थण्डिल] १ शुद्ध भूमि, जन्तु २२)। 'तित्थ न [तीर्थ] एक जैन तीर्थ ७१), 'धर पुं ["धर] ताम्बूल-पात्र का रहित प्रदेश (कस; निचू ४) । २ क्रोध, गुस्सा (हम्मीर २२)। वाहक नौकर (सुपा १०७) 4 वाहक पुं (सूत्र १, ६)। | थंभ पुं[स्तम्भ] १ स्तम्भ, थम्भा, खम्भा (हे ["वाहक] पानदानी का वाहक नौकर (सुपा थंडिल्ल ' [स्थण्डिल] क्रोध, गुस्सा (सूत्र १. / २, ६ कुभा; प्रासू ३३) । २ अभिमान, गर्व, १०७)। देखो थगिय। ६,१३) । अहंकार (सूम १,१३, उत्त ११) "विज्जा थइआ श्री [दे] थेली, थैली, कोथली या थंडिल्ल न [स्थण्डिल] शुद्ध भूमि (सुपा ५५८ स्त्री ["विद्या] स्तब्ध-बेहोश या निश्चेष्ट बसनी-कमर में बाँधने की रुपयों की थैली (प्राचा) करने की विद्या (सुपा ४६३) 'संबलथइपासणाहो', 'दंसिया सवलत्थई (? इ) थंडिल्ल न [दे] मण्डल, वृत्त प्रदेश (दे ५, थंभण न [स्तम्भन] १ स्तब्ध-करण, या' (कुप्र १२ ८०) २५)। थांना (विसे ३००७, सुपा ५६६)। २ थइउं देखो थय = स्थगय ।थंत देखो था। स्तब्ध करने का मन्त्र (सुपा ५६९)। ३ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016080
Book TitlePaia Sadda Mahannavo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovinddas T Seth
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1986
Total Pages1010
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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