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________________ पाइअसद्दमहण्णवो णिस्सार -णिहाआ हमा ( षड्)। णिस्मार सक [निर + सारय ] बाहर २ मुक्ति, मोक्ष, निर्वाण (प्रौपः णंदि)। ३ णिहत्त देखो णिवत्त (भग)। निकालना । निस्सारइ (कुप्र १५४)। मभ्युदय, उन्नति (उत्त८)। णिहत्तण न [निधत्तन] कर्म का निविड़ णिस्सार वि[निःसार]१ सार-हीन, णिस्सेयसिय वि [नैःश्रेयसिक ] मुमुक्षु, बन्धन (भग)। णिस्सारग निरर्थक (प्रणुः सूत्र १, ७; मोक्षार्थी (भग १५)। णित्ति देखो णित्ति (राज)। प्राचा)। २ जीणं, पुराना (आचा)। णिस्सेस वि [निःशेष] सर्व, सब, सकल णिहम्म सक [नि + हम्म् ] जाना, गमन णिस्सारय वि [निःसारक] निकालनेवाला | (उप २००)। करना । णिहम्मइ (हे ४, १६२) । (उप २८० टी)। | णिह वि[निभा १ समान, तुल्य, सदृश (से । णिय वि [निहत] मारा हुमा (गा ११८; णिस्सारिय वि [निःसारित १ निकाला १, ५८ गा ११४ दे १, ५१)। २ न. सुर ३, ४६)। हुमा। २ च्यावित, भ्रष्ट किया हुआ (सूत्र बहाना, व्याज, छल (पान)। णिय वि [निखात] गाड़ा हुआ (स ७५६)। णिह वि [निह] १ मायावी, कपटी (सून १, णिहर प्रक [नि + हृ] पाखाना जाना णिस्सास पुं [निःश्वास] निःश्वास, नीचा ६)। २ पीड़ित (सून १, २, १)। ३ न. (प्रामा)। श्वास (भग)। २ काल-मान-विशेष (इक)। प्राघात-स्थान (सूत्र १, ५, २)। णिहर अक [आ + क्रन्द] चिल्लाना । णिहरइ ३ प्रारण-वायु, प्रश्वास (प्राप्र)। - णिह वि [स्निह] रागी, राग-युक्त (प्राचा)। (षडू)। णिस्साहार वि [नि:स्वाधार निराधार, णिहंतव्य देखो णिहण = नि + हन् । णिहर प्रक [निर + सू] बाहर निकलना । आलम्बन-रहित (सरण) । | णिहंस पुं[निघर्ष घर्षण (गउड)। णिहरइ ( षड्)। णिस्सिंग वि [निःशृङ्ग] शृग-रहित (सुपा णिहंसण न [निघर्षण] घर्षण, रगड़ (से ५, णिहरण देखो णीहरण (णाया १, २३१३)। ४६; गउड)। पत्र ८६)। णिस्सिघिय न [नि:शिवित अव्यक्त शब्द-णिहट ट प्र.१ जुदा कर, पृथक करके (प्राचा)। णिहव देखो णिहुव। णिहवइ (नाट; पि विशेष (विसे ५०१)। २ स्थापन कर (रणाया १,१६)। ४१३)। णिसिंच अक [निर् + सिच ] प्रक्षेप करना, डालना, फेंकना। वकृ.णिस्सिचमाण १७४)। णिहव [निवह] समूह ( षड्)। (राज)। संकृ. णिस्सिचिया (दस ५, १) । णिहण सक [नि + हन् ] १ निहत करना, णिहस सक [नि + धृष ] घिसना । संकृ. णिस्सिणेह वि [निःस्नेह] स्नेह-रहित (पि मारना । २ फेंकना। णिहणामि (कुप्र णिहसिऊण (उब)। १४०)। २६२)। णिहणाहि ( कप्प )। भूका- णिहस ' [निकष १ कषपट्टक, कसौटी का णिस्सिय वि [निश्रित] १ आश्रित, णिहरिणसु (प्राचा)। वकृ. निहणंत (सण)। पत्थर (पान)। २ कसौटी पर की जाती अवलम्बित (ठा १०; भास ३८) । २ प्रासक्त, संकृ.णिहणित्ता (पि ५८२) । कृ. णिहंतव्व रेखा (हे १, १८६; २६०; प्राप्र)। अनुरक्त, तल्लीन (सूम १, १, १, ठा ५, २)। (पउम ६, १७)। णिहस पुं [निघ] घर्षण, रगड़ (से ६, ३ न. राग, आसक्ति (ठा ५. २)। णिण सक [नि + खन्] गाड़ना। 'निहणंति ३३) । णिस्सिय वि [निश्रित] १ निश्चय से बद्ध धरा धरणीयलम्मि' (वज्जा ११८)। हेकृ. णिहस [दे] वल्मीक, सर्प प्रादि का बिल (सूम २, ६, २३)। २ पक्षपाती, रागी । 'चोरो दव्वं निहणि उम् भारद्धो' (महा)। (दे ४, २५) । (वव १)। । णिहण न [दे] कूल, तीर, किनारा (४, णिहसण न [निघषेण] घर्षण, रगड़ (से, णिास्सय वि [निःसृत ] निर्गत, निर्यात २३)। १० गा १२१; गउड; वज्जा ११८)। (भास ३८)। णिहण त [निधन] १ मरण, विनाश (पामः । णिहसिय वि [निघर्षित] घिसा हुप्रा (वजा णिस्सील वि [निःशील] सदाचार-रहित, जी ४६)। २ पुं. रावण का एक सुभट १५०)। दुःशील (पउम २, ८८ ठा ३, २)। (पउम ५६, ३२)। णिहा नी [निहा] माया, कपट (सूत्र १,८)। णिस्सग वि इनिःशूक] निर्दय, निष्करुण णिहणण न [निहनन] निहति. मारना णिहा सक [ निधा ] स्थापना करना । (श्रा १२)। (महा; स १६३)। निहेउ (स ७३८)। कवकृ.णिहिप्पंत (से णिस्सेज्जा देखो णिसेज्जा (पव १२७)। णिहणिअ वि [निहत] मारा हा (सुपा ,६७) । संकृ.णिहाय (सूम १,७)। णिस्सेणि स्त्री [निःश्रेणि] सीढ़ी (पण्ह १, १५८; सण)। ! णिहा सक [नि + हा] त्याग करना। संकृ. १; पाप्र)। णिहत्त सक [निधत्तय ] कर्म को निबिड़ . णिहाय (सूम १, १३)। णिस्सेयस न [निःश्रेयस ] १ कल्याण, रूप से बाँधना। भूका. णिहतिसु (भग)। : णिहा । सक [दृश] देखना। णिहाइ, मंगल, क्षेम (ठा ४, ४; पाया १, ८)। भवि. णिहत्तेस्संति (भग)। णिहाआणिहाप्राइ ( षड्)। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016080
Book TitlePaia Sadda Mahannavo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovinddas T Seth
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1986
Total Pages1010
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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