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________________ सुद्धि (४२) अर्धमागधी महाराष्ट्री अर्धमागधी महाराष्ट्री मिलक्खु, मेच्छ मिलिच्छ सोप्राण, सुसारण मसाण वग्गू वामा सुमिण सिमिण वाहणा ( उपानह) उवारणमा सुहम, सुहुम सरह सहेज्ज सहाय सोहि और, दुवालस, बारस, तेरस, प्रउणवीसइ, बत्तीस, पणतीस, इगयाल, तेयालीस, पणयाल, अढयाल, एगट्ठि, बावट्ठि, तेवट्ठि, छावट्ठि, अढसट्ठि, मउगत्तरि, बावत्तरि, परगत्तरि, सत्तहत्तरि, तेयासी, छलसीइ, बारण उइ प्रभृति संख्या-शब्दों के रूप अर्धमागधी में मिलते हैं, महाराष्ट्री में वैसे नहीं। नाम-विभक्ति १. अर्धमागधी में पुंलिंग अकारान्त शब्द के प्रथमा के एकवचन में प्रायः सर्वत्र ए और क्वचित् पो होता है, किन्त महाराष्ट्री में प्रो ही होता है। २. सप्तमी का एक वचन स्सिं होता है जब महाराष्ट्री में म्मि । ३. चतुर्थी के एक वचन में पाए या माते होता है; जैसे—देवाए, सवरणयाए, गमणाए, अट्ठाए, महिताते, असुभाते, प्रखमाते (ठा. पत्र ३५८) इत्यादि महाराष्ट्री में यह नहीं है। अनेक शब्दों के तृतीया के एकवचन में सा होता है; यथा-मणसा, वयसा, कायसा, जोगसा, बलसा, चक्खुसा: महाराष्ट्री में इनके स्थान में क्रमशः मणेण, वएण, कारण, जोगेण, बलेण, चक्खुणा । ५. कम्म और धम्म शब्द के तृतीया के एक वचन में पालि की तरह कम्मुणा और धम्मुणा होता है, जब कि महाराष्टी में कम्मेण और पम्मेण । ६. मागधी में तत् शब्द के पश्चमी के बहुवचन में तेब्भो रूप भी देखा जाता है। ७. युष्मत् शब्द की षष्टी का एकवचन संस्कृत की तरह तव और प्रस्मत् की षष्ठी का बहुवचन अस्माकं अर्धमागधी में पाया जाता है जो महाराष्ट्री में नहीं है। आख्यात-विभक्ति १. अर्धमागधी में भूतकाल के बहुवचन में इंसु प्रत्यय है; जैसे-पुच्छिंसु, गच्छिंसु, प्राभासिसु इत्यादि । महाराष्ट्री में यह प्रयोग लप्त हो गया है। धातु-रूप १. अर्धमागधी में प्राइक्खइ, कुव्वइ, भुवि, होक्खती, बूया, अब्बवी, होत्था, हुत्था, पहारेत्था, आघ, दुरूहइ, विगिचए, तिवायए, प्रकासो, तिउट्टई, तिउट्टिजा, पडिसंधयाति, सारयती, घेच्छिइ, समुच्छिहिति, आहंसु प्रभृति प्रभूत प्रयोगों में धातु की प्रकृति, प्रत्यय अथवा ये दोनों जिस प्रकार में पाये जाते हैं, महाराष्ट्रो में वे भिन्न भिन्न प्रकार के देखे जाते हैं। धातु-प्रत्यय १. अर्धमागधी में त्वा प्रत्यय के रूप अनेक तरह के होते हैं : (क) ट्टु जैसे-कट्, साहट्ट, अवहटटु इत्यादि। (ख) इत्ता, एत्ता, इत्ताणं और एत्ताणं; यथा-इत्ता, विउट्टित्ता, पासित्ता, करेत्ता, पासित्ताणं, करेत्ताणं इत्यादि। (ग) इत्तुः यथा-दुरूहित्तु, जाणित्तु, वषित्तु प्रभृति । (घ) चाः जैसे-किचा, एचा, सोचा, भोचा, चेचा वगैरह । (ङ) इया; यथा-परिजाणिया, दुरुहिया आदि । (च) इनके अतिरिक्त विउक्कम्म, निसम्म, समिच, संखाए, अरणवीति, लद्धं, लद्ध ण, दिस्सा इत्यादि प्रयोगों में 'त्वा' के रूप भिन्न भिन्न तरह के पाये जाते हैं। २. तुम् प्रत्यय के स्थान में इत्तए या इत्तते प्रायः देखने में आता है; जैसे-करित्तए, गच्छित्तए, संभुंजित्तए, उवसामित्तते (विपा० १३), विहरित्तए आदि। ३. ऋकारान्त धातु के त प्रत्यय के स्थान में ड होता है। जैसे-कड, मड, अभिहड, वावड, संवुड, वियड, वित्थड प्रभृति । For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.016080
Book TitlePaia Sadda Mahannavo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovinddas T Seth
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1986
Total Pages1010
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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