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________________ ३७६ पाइअसद्दमहण्णवो ढोइय-णं ढोइय विढौकित] १ भेंट किया हुआ। २ ढोयणिया स्त्री [ढौकनिका] उपहार, भेंट ढोवग । न [ढौकन, क] १ भेंट करना, उपस्थित किया हुआ (महाः सुपा १६८ (धर्मवि ७१)। ढोवणय । अर्पण करना (कुमा)। २ उपहार, भवि) ढोल्ल पु[दे] प्रिय, पति (संक्षि ४७; हे भेंट (सुपा २८०) ढोघर वि [दे] भ्रमण-शील, घुमक्कड़, ४, ३३०) घूममेवाला (दे ४, १५)। ढोल्ल [दे] १ ढोल, पटह । २ देश विशेष, ढोविय वि [ढौकित] उपस्थापित, उपस्थित ढोयण देखो ढोवण (चेइय ५२: कुप्र १९८) जिसकी राजधानी धौलपुर है (पिंग) I किया हुआ (स ५०८)। ॥ इन सिरिपाइअसद्दमहण्णवम्मि ढयाराइसहसंकलणो एक्कवीसइमो तरंगो समत्तो। ण तथा न ण [ण, न] व्यञ्जन वर्ण-विशेष, इसका णई देखो गई (गउड; हे २, ६७; गा १६७ लाख से गुणने पर जो संख्या लब्ध हो वह उच्चारण-स्थान मूर्दा है, इससे यह मूर्धन्य | सुर १३, ३५) । (ठा २, ४; इक)। कहाता है (प्राप, प्रामा)। | णइअ वि[नयिक नय-युक्त, अभिप्राय-विशेष- णउअंग न [नयुताङ्ग] 'प्रयुत' को चौरासी णम [न] निषेधार्थक अव्यय, नहीं, मत वाला (सम ४०)।। से गुणने पर जो संख्या लब्ध हो वह (ठा २, (कुमाः गा २; प्रासू १५९)। उण, उणा, णइअ देखो णी = नी । ४; इक)। 'उणाइ, "उणोप [पुनः] न तु, नहीं णमासय न [दे] पानी में होनेवाला फल णउइ स्त्री [नवति] संख्या-विशेष, नब्बे, ६० कि (हे १, ६५ षड्)। संतिपरलोगवाइ विशेष (दे ४, २३)। (सम ६४)। वि [शान्तिपरलोकवादिन] मोक्ष और णउइय वि [नवत] १० वाँ (पउम ९०, | णइराय न नौरात्म्य आत्मा का प्रभाव । परलोक नहीं है ऐसा माननेवाला (ठा )। ३१) वाद पुं [वाद] आत्मा के अस्तित्व को ण स [तत् ] वह (हे ३, ७०; कुमा)। Jणउल पुं० [नकुल] १ न्योला, नेवला (परह नहीं माननेवाला दर्शन, बौद्ध तथा चार्वाक १,१; जी २२)।२ पाँचवाँ पाएडव (गाया. ण स [इदम्] यह, इस (हे ३, ७७ उप मत (धर्मसं ११८५)। ६६० गा १३१, १६६) १, १६)। णई स्त्री [नदी] नदी, पर्वत आदि से निकला णउल पुं [नकुल] वाद्य-विशेष (राय ४६)। ण वि [ज्ञ] जानकार, पण्डित, विचक्षण वह स्रोत जो समुद्र या बड़ी नदी में जाकर (कुमा २,८८) णउली स्त्री [नकुली] एक महौषधि (ती ५)। मिले (हे १, २२६; पात्र) । कच्छ पुं णअ देखो णव = नव (गा १०००; नाट | "उली स्त्री [नकुली] विद्या-विशेष, सर्प-विद्या [°कच्छ] नदी के किनारे पर की झाड़ी | चैत ४२) । दीअ ' [द्वीप] बंगाल का (णाया १,१)५°गाम पु[ग्राम] नदी | की प्रतिपक्ष विद्या (राज)। एक विख्यात नगर, जो न्याय-शास्त्र का केन्द्र के किनारे पर स्थित गाँव ( प्राणाहणं म[दे] इन प्रर्थों का सूचक अव्यय-१ गिना जाता है, जिसको आजकल 'नदिया' [नाथ] समुद्र, सागर (उप ७२८ टी) प्रश्न । २ उपमा (प्राकृ ७६) कहते हैं (नाट-चैत १२६) वइ पु [पति समुद्र, सागर (पएह १, णं अ. १ वाक्यालंकार में प्रयुक्त किया जाता णअंचर देखो णत्तंचर (चंड)। ३)। संतार पु[संतार] नदी उतरना, अव्यय (हे ४, २८३ उवाः पडि)।२ प्रश्नणइ स्त्री [नति १ नमन, नम्रता । २ अव- जहाज आदि से नदी पार जाना (राज) सूचक अव्यय, ३ स्वीकार-द्योतक अव्यय सान, अन्त (राय ४६) । "सोत्त पुं[स्रोतस् ] नदी का प्रवाह (राज)। णइ अ. १ निश्चय-सूचक भव्यय, 'गईए गई (हे (प्राप्र; हे १, ४)। णं (शौ) देखो जणु (हे ४, २८३)। २, १८४; षड्)। २ निषेधार्थक अव्यय; णउ (अप) देखो इव (कुमा)। णं (अप) देखो इव (हे ४, ४४४; भविः सण 'नइ माया नेय पिया' (सुर २, २०६)। णउअन [नयुत] 'नयुतांग को चौरासी | पडि)। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016080
Book TitlePaia Sadda Mahannavo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovinddas T Seth
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1986
Total Pages1010
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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