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घाइयव्व
दखो घाय% हन् ।
घसुमर-घिणिल्ल
पाइअसहमहण्णवो घसुमर वि [घस्मर] खाने की आदतवाला, घाणिदिय न [घ्राणेन्द्रिय] नासिका, नाक घारण न [घारण] विष की असर से होनेखाधुक (प्राकृ २८)। (उत्त २६)।
वाली बेचैनी (सुपा १२४)। घाइ वि [घातिना घातक, नाशक, हिसक घाय सक[हन् मारना, मार डालना, विनाश घारिय वि [घारित] जो विष की असर से (गा ४३७ विसे १२३८; भग)। कम्म न करना। वकृ. घाएह (उव) । वकृ. 'घाएंत । बेचैन हुआ हो; 'तत्तो भोगो। सम्वत्थ [कर्मन्] कर्म-विशेषः ज्ञानावरण, दर्शना- रिउभंडहवे' (पउम ६०, १७) । घायंत तदुवघाया विसघारियभोगतुल्लोत्ति' (उप वरण, मोहनीय और अन्तराय ये चार कर्म (पउम २४, २६; विसे १७६३)। कवकृ. 'से ४४२); 'विसवा (? पा) रियस्स जह वा (अंत)। 'चउक्क न [चतुष्क] पूर्वोक्त चार धणे चिलाएणं चोरसेगावइणा पंचहि चोर- घणचन्दणकामिणीसंगो ( उवर ६७); कर्म (प्रारू)।
सरहिं सद्धि गिहं घाइजमाणं पासई' (णाया 'विसघारियो सि धत्तूरियो सि मोहेण किंव घाइअ विघातित] १ मारित, विनाशित
१,१८)। वकृ. घाइयव्य (पउम ६६, ३४)। ठगिमो सि' (सुपा १२४; ४४७)।। (गाया १, ८ उव)। २ घवाया हुआ, जो
घाय सक [घातय् ] मरवाना, दूसरे द्वारा घारिया स्त्री [दे] मिष्टान्न-विशेष, गुजरातो में शक्ति-शून्य हुमा हो, सामर्थ्यरहित; करणाई
मार डालना, विनाश करवाना। वकृ. जिसे 'धारी' कहते हैं (भवि)। घाइयाई जाया ग्रह वेयणा मंदा' (सुर ४,
घायमाण (सूत्र २,१)। कृ. घाइयव्व (पउम घारी स्त्री [६] १ शकुनिका, पक्षि-विशेष (दे
६६, ३४)। २३९)।
२, १०७; पाम) । २ छन्द-विशेष (पिग)। घाइआ स्त्री [घातिका] १ विनाश करनेवाली
घाय [घात गमन, गति (सुज १, १)। घास सक [घृष्] १ घिसना। २ पोड़ा. स्त्री, मारनेवाली स्त्री (जं २) । २ घात, घाय पुं[घात] १ प्रहार, चोट, वार (पउम करना । कर्म. घासइ (सूम १, १३, १५)। हत्या । ३ घाव करना (सुर १६, १५०)। ५६, २५)। २ नरक (सूम १, ५, १)। ३ घास पुं[घास] तृण, पशुत्रों को खाने का घाइज्जमाण) देखो घाय =हन ।
हत्या, विनाश, हिंसा (सूत्र १, १, २) । ४ तृण (दे २, ८५; प्रौप)। संसार (सूत्र १, ७)
घास पुं [प्रास] १ कवल, कौर (प्रौपः उत्त घाइयव्व देखो घाय = घातय् । -- घायग वि [घातक] मार डालनेवाला, विना- २) राहार. भोजन (आचा: मोघ ३३०)। घाइर वि [प्रायिन् सूंघनेवाला (गा ८८६) शक (स २६४; सुपा २०७)।
घास पुं[घर्ष] घर्षण, रगड़; 'जो मे उवजिघाउकाम वि [हन्तुकाम] मारने की इच्छा- घायण न [हनन] १ हत्या, नाश, हिंसा
प्रो इह कररुहधसणेण चरणधासेरण' (सुपा वाला (पाया १,१८)।
(सुपा ३४६; द्र २६) । २ वि. हिंसक, मार घाएंत देखो घाय% हन् ।
डालनेवाला (स १०८)।
घासंसणा स्त्री [ग्रासैपणा] प्राहार-विषयक घायण पुं [दे] गायक, गवैया (दे २, १०८ घाड प्रक[भ्रश ] भ्रष्ट होना, च्युत होना।
शुद्धि अशुद्धि का पर्यालोचन (प्रोध ३३८)। घाडइ (षड्)। हे २, १७४, षड् )।
घि देखो घे । भवि. घिच्छिइ (विसे १०२३)। घायणा स्त्री [हनन] मारना, हिंसा, वध | घाड पुं [घाट] १ मित्रता, सौहार्द (बृह (पएह १, १)।
कर्म. धिप्पंति (प्रासू ४)। संकृ चित्तण णाया १,२)। २ मस्तक के नीचे का भाग | घायय देखो घायग (विसे १७६३ स २९७)
(कुमा ७,४६) । हेकृ.घित्तं (सुपा २०६)। (णाया १,८-पत्र १३३) ।'
। कृ. चित्तव्य (सुर १४, ७७)। घायय पुं [घातक] नरक-स्थान विशेष घाडिय वि [घाटिक वयस्य, मित्र (णाया (देवेन्द्र २६, ३०)।
घिअ न [घृत] घी, घीव, प्राज्य (गा २२) । १, २ बृह १)।
घिअ वि [दे] भत्सिंत, तिरस्कृत, अवधीरित घायावणा स्त्री [घातना] १ मरवाना, दूसरे घाडेरुय [दे] खरगोश की एक जाति (?) द्वारा मारना । २ लूटपाट मचवानाः 'बहुग्गा- घि) ग्रीष्म]१गरमी की ऋतु, ग्रीष्म 'जे तुह संगसुहासारज्जुनिबद्धा दुहं मए रुद्धा। मवायावरणाहिं ताविया' (विपा १, ३)। प्रिंसु काल; घिसिसिरवासे' (मोघ ३१० घाडेख्यससया इव प्रबंधणा ते पलायंति'
घार अक [घारय् ] १ विष का फैलना, भाः उत्त २, ८; पि ६; १०१)। २ गरमी, (उप ७२८ टी)।
विष की प्रसर से बेचैन होना । २ सक, विष अभिताप (सूअ १, ४, २)। घाण पुं[दे] १ घानी, कोल्हू, तिल-पीड़न
से बेचैन करना । ३ विष से मारना । कर्म. घिट्ट वि [द] कुब्ज, कूबड़ा (दे २, १०८)। यन्त्र (पिंड)।२ घान, चक्की आदि में एक
'घारिजतो य तो विसेण' (स १८९)। हेकृ. घि? वि [घृष्ट] घिसा हुआ, रगड़ा हुआ (सुपा बार डालने का परिमाण (सुपा १४) घारिजिउं (स १८९)
२७८ गा ६२६ अ)। घाण पुंन [घ्राण] नाक, नासिकाः 'दो घाणा' घार पुं[दे] प्राकार, किला, दुर्ग (दे २, घिणा स्त्री [घृणा] १ जुगुप्सा, अरुचि । २ (पुराण १५, उप ६४८ टी दे २,७६)। १०८)।'
दया, अनुकम्पा (हे १, १२८)। "रिस पुन [र्शस् ] नासिका में होने- घारंत पुं[दे] घृतपूर, घेवर, एक प्रकार की घिणिल्ल वि [घृणावत् ] घृणावाला, नफवाला रोग-विशेष, पीनस (ोघ १८४ भा) मीठाई (दे २, १०८)।
रत करनेवाला (पिंड१७६)।
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