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________________ नाब्ध (उत्त बी. डारी, भाण्डागा कराना । गाहे गारिहत्थिय-गिड्डिया पाइअसहमहण्णवो २६३ गारिहस्थिय स्त्रीन [गाईस्थ्य] गृहस्थ-संबन्धी, गास [प्रास] पास, कवल (सुपा ४८८)। [पति] १ गृहस्थ, गृही, संसारी (ठा ४, संसारि-संबन्धी । स्त्री. 'या (पव २३५) । गास पुं[प्रास भोजन (पव ९५) ४ सुपा २२६)। २ धनी, धनाब्ध (उत्त गारुड विगारुड] १ गरुड़-संबन्धी। गाह देखो गह = ग्रह् । कर्म. गाहिजइ (प्राप्र)। १)। ३ भंडारी, भाण्डागारिक (सम २७)। गारल्ल २ सर्प के विष को उतारनेवाला, स्त्री. °णी (णाया १, ५ उवा)। सर्प-विष को दूर करनेवाला । ३ पुं. सर्प विष गाह सक [ग्राहय् ] ग्रहण कराना । गाहेइ गाहाल ' [ग्राहाल] कीट-विशेष, श्रीन्द्रिय को दूर करनेवाला मन्त्र (उप १८६ टी से (ोप)। गाह सक [गाह ]१ गाहना, ढूँढ़ना। २ जन्तु विशेष (जीव १)। १४,५७) । ४ न. शास्त्र विशेष, मन्त्र-शास्त्रविशेष, सर्पविष-नाशक मन्त्र का जिसमें वर्णन पढ़ना, अभ्यास करना। ३ अनुभव करना । गाहावई स्त्री [ग्राहावती] १ नदी-विशेष । २ द्वीप-विशेष । ३ ह्रद-विशेष, जहां से हो वह शास्त्र (ठा )1'मंत पुं[मन्त्र] ४ टोह लगाना । गाहदि (शौ); (मृच्छ ७२) । कवकृ. गाहिज्जत (वजा ४)। सर्प-विष का नाशक मन्त्र (सुपा २१९)M ग्राहावती नदी निकलती है (जं ४) । "विउ वि [वित् ] गारुड मन्त्र का जानकार, गाह पु[गाध प्रस्ताघ-रहित, थाह (ठा ४, गाहाविय वि [प्राहित] जिसको ग्रहण गारुडात्र का जानकार (उप ९८६ टी) कराया गया हो वह (सुर ११, १८३) । ४)। गाल सकगालय ] १ गालना, छानना ।। गाह पुग्राह] १ गाह, कुंभीर, नक, जल- | गाहिणी स्त्री [गाहिनी] १ गाहने वाली २ नाश करना । ३ उल्लंघन करना, अतिक जन्तु-विशेष, मगर (दे २,८६ गाया १,४० स्त्री । २ छन्द-विशेष (पिंग)। मण करना । गालयइ (विसे ६४)। वकृ.. जी २०) । २ आग्रह, हठ (विसे २६८६ पउम गाहिपुर न [गाधिपुर] नगर-विशेष (गउड) गालेमाण (भग ६, ३३)। कवकृ. गालि १६, १२) । ३ ग्रहण, पादान (निचू १)। गाहिय वि [ग्राहित] १ जिसको ग्रहण जंत (सुपा १७३) प्रयो. गालावेइ (णाया ४ गारुड़िक, सर्प को पकड़नेवाली मनुष्य- कराया गया हो वह । २ भ्रामित, उकसाया १, १२)। जाति (बृह १) वई स्त्री [वती] नदी- हुमा (सूम १, २,१)। गालण न [गालन] छालना, गालना (पएह विशेष (ठा २, ३–पत्र ८०)। गाहीकय वि [गाथीकृत] एकत्रित, इकट्ठा १, १, उप पृ ३७९)। गाहग वि [ग्राहक] १ ग्रहण करनेवाला, | किया हुआ (सूपनि १, १६) । गालणा स्त्री [गालना] १ गालना, छानना । लेनेवाला ( सुपा ११)। २ समझनेवाला, | गाहु स्त्री [गाहु] छन्द-विशेष (पिंग)। २ गिरवाना । ३ पिघलवाना (विपा १, १) जाननेवाला (सुपा ३४३)। ३ समझानेवाला, | गाहुलि पुंस्त्री [दे] ग्राह, नक, मगर, क्रूर जलगालवाहिया स्त्री [दे] छोटी नौका, डोंगी; शिक्षेक, प्राचार्य, गुरु (औप)। ४ ज्ञापक, | जन्तु विशेष (दे २, ८६)! 'एत्यंतरम्मि समागया गालवाहियाए निजाबोधक । स्त्री. गाहिगा (पोप) गाहुल्लिया देखो गाहा = गाथा (सुपा २६४)। मया' (स ३५१)। गाहक वि [ग्राहक] प्राप्ति करनेवाला, 'गाहगं | गिठि [गृष्टि] १ एक बार व्यायी हुई। २ गालि स्त्री [गालि] गाली, गारी, अपशब्द, सयलगुणाणं' (स ६५२)। एक बार व्यायी हुई गाय (हे १, २६)। असभ्य वचन (सुपा ३७०)। गिंधुअ [दे देखो गेटुअ (पान)। गाहण न [ग्राहण] १ ग्रहण कराना । २. गालिय वि [गालित] १ छाना हुआ। २ ग्रहण, पादाना 'गाहण तवचरियस्सा गहणं गिंधुल्ल [दे] देखो गेंठुल्ल (पाम)। अतिक्रान्त । ३ विनाशित । ४ क्षिप्त; 'गालियचिय गाहणा होंति' (पंचभा) । ३ शास्त्र, गिंभ (अप) देखो गिझ (हे ४, ४४२)। गिह देखो गिझ षड्)। सिद्धान्त (वव ४) । ४ बोधक-वचन, शिक्षा, मिठो निरंकुसो वियरिओ रायहत्थी (महा)। उपदेश (पएह २, २)। गिजत देखो गा। गाली स्त्री [गाली] देखो गालि (पव ३८)। गाहणया। श्री [ग्राहणा] ऊपर देखो (उप | गिझ अक [गृध] प्रासक्त होना, लम्पट गाव (अप) देखो गा। गावइ (पिंग) । वकृ. गाहणापू ३१४, प्राचा; गच्छ १) होना। गिज्झइ (हे ४, २१७)। गिज्झह गावंत (पि २१४)। गाय देखो गाहग (विसे ८३१ स ४६८)। (णाया १,८)। वकृ. गिभंत (पौष)। गाव (प्रप) देखो गव्व (भवि)। गाहा स्त्री [गाथा] अध्ययन, ग्रन्थ-प्रकरण कृ. गिझियव्य (पएह २, ५)। गाव वि [दे] गत, गया हुमा, गुजरा हुआ (उत्त ३१, १३)। गिज्म वि [गृह्य, ग्राह्य १ ग्रहण करने गाहा स्त्री गाथा] १ छन्द-विशेष, आर्या, योग्य। २ अपनी तरफ में किया जा सके गाव पुं[ग्रावन] १ पत्थर, पाषाण __ गोति (ठा ५, ३, अजि ३७, ३८)। २ ऐसा (ठा ३, २) गावाण (पान)। २ पहाड़, गिरि (हे ३, प्रतिष्ठा। ३ निश्चयः 'सेसपयाण य गाहा' गिट्टि देखो गिठिः 'वारेंतस्सवि बला दिट्ठी ५६)। (प्राव ४) । ४ 'सूत्रकृतांग' सूत्र का सोलहवाँ | गिटिव्व जवसम्मि' (उप ७२८ टीः पाम: गावि (अप) देखो गम्विय (भवि)। गा ६४०)। गावी स्त्री [ग] गौ, गैया (हे २, १७४ विपा | गाहा स्री [दे] गृह, घर, मकान; 'गाहा घर | गिड्डिया स्त्री [दे] गेड़ी, गेंद खेलने की लकड़ी १,२: महा)। गिहमिति एगट्ठा (वव ८)। वइ पुत्री (पव ३८) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016080
Book TitlePaia Sadda Mahannavo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovinddas T Seth
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1986
Total Pages1010
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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