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________________ ( २७ ) प्रथम युग (ख्रिस्त-पूर्व ४०० से स्त्रिस्त के बाद १००) (क) हीनयान बौद्धों के त्रिपिटक, महावंश और जातक-प्रभृति ग्रन्थों की पाली भाषा। (ख) पैशाची और चूलिकापैशाची। (ग) जैन अंग-ग्रन्थों की अर्धमागधी भाषा। (घ) अंग-ग्रन्थ-भिन्न प्राचीन सूत्रों की और पउम-चरिअ आदि प्राचीन ग्रन्थों की जैन महाराष्ट्री भाषा । (ङ) अशोक-शिलालेखों की एवं परवर्ति-काल के प्राचीन शिलालेखों की भाषा । (च) अश्वघोष के नाटकों की भाषा । ____ मध्ययुग (ख्रिस्तीय १०० से ५००) (क) त्रिवेन्द्रम् से प्रकाशित भास-रचित कहे जाते नाटकों की और बाद के कालिदास-प्रभृति के नाटकों की शौरसेनी, मागधी और महाराष्ट्री भाषाएँ। (ख) सेतुबन्ध, गाथासप्तशती आदि काव्यों की महाराष्टी भाषा। (ग) प्राकृत व्याकरणों में जिनके लक्षण और उदाहरण पाये जाते हैं वे महाराष्टी, शौरसेनी, मागधी, पैशाची, चूलिकापैशाची भाषाएँ। (घ) दिगम्बर जैन ग्रन्थों की शौरसेनी और परवर्ति-काल के श्वेताम्बर ग्रन्थों की जैन महाराष्ट्री भाषा। (ङ) चंड के व्याकरण में निर्दिष्ट और विक्रमोर्वशी में प्रयुक्त अपभ्रंश भाषा । शेष युग (ख्रिस्तीय ५०० से १००० वर्ष ) भिन्न-भिन्न प्रदेशों की परवर्ती काल की अपभ्रश भाषाएँ। अब इन तीन युगों में विभक्त प्रत्येक भाषा का लक्षण और विशेष विवरण, उक्त क्रम के अनुसार (१) पालि, (२) पैशाची, (३) चूलिकापैशाची, (४) अर्धमागधी, (५) जैन महाराष्ट्री, (६) अशोकलिपि, (७) शौरसेनी, (८) मागधी, (E) महाराष्टी, (१०) अपभ्रंश इन शीर्षकों में क्रमशः दिया जाता है। (१) पालि हीनयान बौद्धों के धर्म-प्रन्थों की भाषा को पालि कहते हैं। कई विद्वानों का अनुमान है कि पालि शब्द 'पङ्क्ति' पर से बना है। 'पक्ति' शब्द का अर्थ है 'श्रेणी । प्राचीन बौद्ध लेखक अपने ग्रन्थ में धर्म-शास्त्र की वचन-पक्ति को उद्धृत करते समय इसी पालि शब्द का प्रयोग करते थे, इससे बाद के समय में बौद्ध धर्म-शास्त्रों की भाषा का ही नाम पालि हुआ । अन्य विद्वानों का मत है कि पालि शब्द 'पङ्क्ति' पर से नहीं, परन्तु 'पल्लि' पर से हुआ निर्देश प्रोर व्युत्पत्ति है। पल्लि' शब्द असल में संस्कृत नहीं, परन्तु प्राकृत है, यद्यपि अन्य अनेक प्राकृत शब्दों की तरह यह भी पीछे से संस्कृत में लिया गया है। पल्लि शब्द जैनों के प्राचीन अंग-ग्रन्थों में भी पाया जाता है । 'पल्लि' शब्द का अर्थ है ग्राम या गाँव । 'पालि' का अर्थ गावों में बोली जाती भाषा-ग्राम्य भाषा-होता है। 'पङ्क्ति' पर से 'पालि' होने की कल्पना जितनी क्लेश-साध्य है 'पल्लि' पर से 'पालि' होना उतना ही सहज-बोध्य है। इससे हमें पिछला मत ही अधिक संगत मालूम होता है। 'पालि' केवल ग्रामों की ही भाषा थी, इससे उसका यह नाम हुआ है यह बात नहीं है। बल्कि प्रदेश-विशेष के ग्रामों की तरह शहरों के भी जन-साधारण की यह भाषा थी, परन्तु संस्कृत के अनन्य-भक्त १ "पङक्ति = पंक्ति = पंति = पण्टि = पंटि = पंलि = पल्लि = पालि अथवा पङक्ति = पत्ति = पट्टि = पल्लि = पालि" (पालिप्रकाश, प्रवेशक, पृष्ठ ६)। २ “सेतुस्सिं तन्तिपन्तीसु नालियं पालि कथ्यते" (अभिधानप्रदीपिका ६६६)। ३ देखो, विपाकश्रुत (पत्र ३८, ३६) । Jain Education Interational For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016080
Book TitlePaia Sadda Mahannavo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovinddas T Seth
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1986
Total Pages1010
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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