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________________ २३० पाइअसद्दमहण्णवो कलकल-कला आवाज (भग ६, ३३, राय)। ३ चूना आदि कलय दे]१ अर्जुन वृक्ष । २ सोनार, कलहाअ देखो कलह = कलहाय । कलहाएदि से मिश्रित जल (विण १, ६)। सुवर्णकार (दे २, ५४)। (शौ) (नाट) । वकृ. कलहाअंत (गा ६०)। कलकल अक [कलकलाय ] 'कल कल' कलय पुं[कलाद] सोनार, सुवर्णकार (षड्)। कलहाइअ वि [कलायित] कलहवाला, यावाज करना । बकृ. कलकलंत, कल फलित, कलयंदि वि [दे] १ प्रसिद्ध, विख्यात । २ झगडाखोर (पान)। कलकलेत, कलकलमाण (पएह १, १, ३, स्त्री. वृक्ष-विशेष, पाडरी, पाढल (दे २, ५८)। कलहि वि [कहिन] झगड़ाखोर (दे ५, प्रौप)। कलयजल न [दे] ओष्ठ-लेप, होठ पर लगाया ५४)। कलकलिअ न [कलकलित] कोलाहल करना जाता लेप-विशेष (भवि)। कलहोय न [कलधौत] १ सुवर्ण, सोना ! कल यल देखो कलफल (हे २, २२ पान (सण) । २ चाँदी, रजत (गउड परह १, ४, कलकलिअ वि [कलकलित] कलकल शब्द गा ५३५) । पात्र)। से युक्त (सिरि ६६४)। कलयलिर वि कलकलायित कलकल करनेकलक्ख देखो कडक्ख = कटाक्ष (गा ७०२)। | कला स्त्री [क्ला] १ अंश, भाग, मात्रा वाला (वजा ६६)। कलचुलि गुं[करचुलि] १ क्षत्रिय-विशेष । कलरुदाणी स्त्री [कलरुद्राणी] इस नाम का (अनु ४) । २ समय का सूक्ष्म भाग (विसे २०२८)। ३ चन्द्रमा का सोलहवाँ हिस्सा २ इस नाम का एक क्षत्रिय-वंश (पिंग)। छन्द (पिंग)। कलण देखो करणः 'तोसुवि कलणेसु हासु । कलल न [कलल] १ वीर्य और शोणित का (प्रासू ६५) । ४ कला, विद्या, विज्ञान (कप्प; रायः प्रासू ११२) । पुरुष-योग्य कला के सुहसंकप्पो' (अच्नु ८२)। समुदाय, 'पाइज्जंति रडंता सुतत्ततवुतंबसंनिभं मुख्य बहत्तर और स्त्री-योग्य कला के मुख्य कलण न [कलन] १ शब्द, आवाज । २. कललं' (पउम ११८, ८); 'वसकललसेंभ चौसठ भेद हैं। 'बावत्तरी कला' (अरण); संख्यान, गिनती (विसे २०२८)। ३ धारण | सोरिणय-' (पउम ३६, ५६)। २ गर्भ 'बावत्तरिकलापंडियावि पुरिसा' (प्रासू १२६); करना (सुपा २५)। ४ जानना (सुपा १६)। | वेष्टन चर्म । ३ गर्भ के अवयव रूप रेत-विकार 'चउसट्ठिकलापंडिया' (णाया १, ३) । पुरुष५ प्राप्ति, ग्रहणः 'जुत्तं वा सयलकलाकलणं (गउड) । ४ काँदो, कीचड़, कर्दम (गउड)। कला ये हैं:-१ लिपि-ज्ञान । २ अंकगणित । रयणायरसुअस्स' (श्रा १६)। कललिय विकललित] कर्दमित, कीचवाला ३चित्र कला। ४ नाट्यकला। ५ गान, गाना। कलणा स्त्री [कलना] १ कृति, करणः 'जुगणं | किया हुआ, 'अरणोएणकलहविअलियकेसरकी ६ वादा बजाना। ७ स्वर गत (षड्ज, ऋषभ कंदप्प-दप्पं णिहुवरणकलणाकंदलिल्लं कुणंता' लालकललियद्दारा' (गउड)। वगैरह स्वरों का ज्ञान)। ८ पुष्कर-गत (मृदंग, (कप्पू)। २ धारण करना, लगाना; 'मज्झएहे । कलविंक पुं [कलविङ्क] पक्षि विशेष, चटक, मुरजादि विशेष वाद्य का ज्ञान)। ६ समताल सिरिखंडपंककलणा' (कप्पू)। गौरिया पक्षी, गौरैया (पान' गउड)। (संगीत के ताल का ज्ञान)। १० चूत कला। कणिज देखो कल = कलय् । कलवू स्त्री [दे] तुम्बी पात्र (दे २, १२ । कलत्त न [कलत्र] स्त्री, भार्या (प्रासू ७६)।। षड् )। ११ जनवाद (लोगों के साथ आलाप संलाप कलधोय देखो कलहोय (औप)। कलस पुंकलश] १ कलश, घड़ा (उवा करने की विधि)। १२ पांसे का खेल । १३ अष्टापद (चोपाट खेलने की रीति)। १४ कलभ पुंस्त्री [कलभ] १ हाथी का बच्चा गाया १,१)। २ स्कन्धक छन्द का एक भेद, शीघ्र-कवित्व । १५ दक-मृत्तिका (पृथक्करण(गाया १, १)। २ बच्चा, बालक; 'उवमासु । छन्द-विशेष (पिंग)। अपजत्तेभकलभदंतावहासमूरुजुधे' (हे १, ७)। कलस पुन [कलरा] १ एक देव विमान । विद्या)। १६ पाक कला । १७ पान-विधि (जलपान के गुरण-दोष का ज्ञान)। १८ वस्त्रकलभिआ स्त्री [कलभिका] हाथी का स्त्री- देवेन्द्र १४०।२ वादा-विशेष (राय ५० विधि (वस्त्र की सजावट की रीति)। १६ बचा (णाया १,१-पत्र ६३)। टी)। विलेपन-विधि । २० शयन-विधि । २१ आर्या कलम पु [दे. कलम] १ चोर, तस्कर (दे २, कलसिया स्त्री [कलशिका] १ छोटा घड़ा (छन्द विशेष) बनाने की रीति । २२ प्रहेलिका १०, पाम आचा)। २ एक प्रकार का उत्तम (अणु) । २ वाद्य विशेष (प्राचू १)। (विनोद के लिए पहेलियां-गूढ़ाशय पद्य)। चावल (उवा जै २; पान)। कलह पुं [कलह क्लेश, झगड़ा (उव; औप)। २३ मागधिका (छन्द विशेष) । २४ गाथा कलमल पुं[कलमल] १ पेट का मल (ठा ३, कलह देखो कलम (उवः पउम ७८, २८)।। (छन्द विशेष) । २५ गीति (छन्द-विशेष) । ३) । २ वि. दुर्गन्धि, दुर्गन्धवाला (उप ८३३) | कलह न [दे] तलवार की म्यान (दे २, ५; २६ श्लोक (अनुष्टुप् छन्द)। २७ हिरण्य कलमल पुन [दे] १ मदन-वेदन (संक्ष ४७)। पाम)। युक्ति (चांदी के आभूषण की यथास्थान २ कंपन, थरथराहट, घृणा: 'असुईए अट्ठीणं | कलह अक [कलहाय ] झगड़ा करना, योजना)। २८ सुवर्ण-युक्ति। २६ चूर्ण-युक्ति सोणियकिमिजालपूइमंसाणं । नामपि चितियं तड़ाई करना । वक कलहंत, कलहमाण (सुगन्धि पदार्थ बनाने की रीति) । ३० खलु कलमलयं जगइ यियम्मि' (मन ३३)। (पउन २८, ४, सुपा ११, २३३, ५४६)। आभरण-विधि (आभूषणों की सजावट)। कलय देखो कालय (हे १, ६७)। | कलहण न [कलहन] झगड़ा करना (उब)। ३१ तरुणी परिकम (स्त्री को सुन्दर बनाने Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016080
Book TitlePaia Sadda Mahannavo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovinddas T Seth
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1986
Total Pages1010
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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