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________________ २०८ पाइअसद्दमहण्णवो कइअंक-कंकडइय कइअंक । पु[दे] निकर, समूह (दे २, कईस पुं [कवीश] श्रेष्ठ कवि, उत्तम कवि | ४ इस नाम की एक रागिणी । ५ शास्त्र । कइअंकसइ । १३)। (पिंग)। ६ विकीर्ण केश (हे १, २१)। अइअव न [कैतव] कपट, दम्भ (कुमाः प्राप्र)। कईसर पुं [कवीश्वर] उत्तम कवि (रंभा)। कउहि वि [ककुदिन] वृषभ, बैल (अणु कइआ अकदा] कब, किस समय ? (गा कउ पुं[क्रतु] यज्ञ (कप्पू)। १४२)। १३८; कुमा)। कउ (अप) प्र[कुतः] कहाँ से (हे ४, ४१६)। कए । प्र[कृते वास्ते, निमित्त, लिए; कउअ विदे] १ प्रधान, मुख्य । २ पुंन करणं । 'तत्तो सो तस्स कए, खगेइ खाणीकइउल्ल वि [दे] थोड़ा, अल्प (दे १, २१)। चिन्ह, निशान (दे २, ५६)। कएण) उणेगठाणेसु' (कुम्मा १५; कुमा); कइंद पुं[कवीन्द्र] श्रेष्ठ कवि (गउड)। | कउच्छेअय पुं [कौशेयक] पेट पर बँधी हुई 'अवरएहमजिरीणं कएण कामो वहइ चाव' कइकच्छु स्त्री [कपिकच्छु] वृक्ष-विशेष, तलवार (हे १, १६२ षड् )। (गा ४७३); केवांच, कौंछ, कवाछ (गा ५३२)। कउड न [दे. ककुद] देखो कउह = ककुद | 'लजा चत्ता सीलं च खंडिग्नं अजसघोसणा दिएरणा। कइगई स्त्री [कैकयी] राजा दशरथ की एक (षड्)। रानी (पउम ६५, २१)। कउरअ [कौरव] १ कुरु देश का जस्स कएणं पिअसहि ! कउरव राजा । २ पुंस्त्री. कुरु वंश में सो चेन जो जो जानो' कइत्थ पुं [कपित्थ] १ वृक्ष-विशेष, कैथ का उत्पन्न । ३ वि. कुरु (देश या वंश) से संबन्ध (गा ५२५)। पेड़ । २फल-विशेष, कैथ, कैथा (गा ६४१)। रखनेवाला। ४ कुरु देश में उत्पन्न (प्रातः कएल्ल वि [कृत] किया हुआ (सुख कइम वि [कतम] बहुत में से कौन सा ? (हे| नाट हे १, १६२)। २, १५)। १, ४८; गा ११६)। कउल न [६] १ करोष, गोइँठा का चूर्ण (दे कओ अ [कुतः] कहाँ से ? (माचा; उव: कइयव्व देखो कइअव (तदु ५३) । रयण २६)। हुत्त क्रिवि [दे] किस तरफ कइयहा (अप) अ[कदा] कब, किस समय ? | कउल न [कौल] तान्त्रिक मत का प्रवर्तक 'कोहुत्तं गंतव्वं ? (महा)।। (सण)। ग्रन्थ, कौलोपनिषद् वगैरह । २ वि. शक्ति का कओ अ[क] कहाँ, किस स्थान में; 'को कइयाइ अ [कदाचित् ] किसी समय में उपासक । ३ तान्त्रिक मत को जाननेवाला। । वयामो ? (णाया १,१४)। (कुप्र ४१३)। ५ तान्त्रिक मत का अनुयायी। ५ देवता कोण्ह वि [कदुष्ण थोड़ा गरम (धर्मवि कइर देखो कयर = कतर (पिंड ४६६)। विशेष, ११२)। कइर पुंकदर] वृक्ष विशेष, 'जं कइररुक्ख- "विस सिज्जंतमहापसुदं कओल देखो कवोल (से ३, ४६) । हिट्टा इह दसकोडो दविणमत्थि' (श्रा १६) । सणसंभमपरोप्परारूढा । कइरव न [कैरव कमल, कुमुद (हे १, १५२)। गयणे च्चिय गंधडि कं अ[कम् ] उदक, जल (तंदु ५३) कइरव पुंन [कैरव कुमुद, 'कइरवो' (संक्षि ५)। कुणंति तुह कउलणारीयो' कंइ अ [दे] किससे, 'कंइ पंइ सिक्खिउ ए कइरविणी स्त्री [कैरविणी] कुमुदिनी, कमलिनी (गउड)। गइलालस' (विक १०२)। (कुमा)। कउलव देखो कउरव (चंड)। कंक पुं[कङ्क] १ पक्षि-विशेष (पराह १, १; कइलास पुंकैलास, श] १ स्वनाम-ख्यात कउसल पुन [कौशल] चतुराई, 'कउसलो' ४ अनु ४)। २ एक प्रकार का मजबूत पर्वत विशेष (पापः पउम ५; ५३; कुमा)। और तीक्ष्ण लोहा (उप ४६४)। ३ वृक्ष२ मेरु पर्वत (निचू १३)। ३ देव-विशेष, कउसल न [कौशल] कुशलता, दक्षता, विशेषः 'कंकफलसरलनयरण-' (उप १०३१ एक नाग-राज (जीव ३)। सय पुं[शय] होशियारी (हे १, १६२: प्राप्र)। टी)। पत्त न [पत्र] बाण-विशेष, एक महादेव, शिव (कुमा)। देखो केलास। कउह न [दे] नित्य, सदा, हमेशा (दे २, ५)। प्रकार का बाण, जो उड़ता है (वेणी १०२)। कइलासा स्त्री [कैलासा, शा] देव-विशेष कउह पुंन [ककुद] १ बैल के कंधे का लोह पुंन ["लोह] एक प्रकार का लोहा की एक राजधानी (जीव ३)। कुब्बड़ । २ सफेद छत्र वगैरह राज-चिह्न । (उप पृ ३२६; सुपा २०७)। वत्त देखो कइल्लबइल्ल पुं [दे] स्वच्छन्द-चारी बैल ३ पर्वत का अग्रभाग, टोंच (हे १, २२५) । "पत्त (नाट)। (दे २, २५) । ४ वि. प्रधान, मुख्यः । कंकइ पुं [कङ्कति] वृक्ष-विशेष, नागबलाकइविया स्त्री [] बरतन-विशेष, पीकदान, 'कलरिभियमहुरतंतीतलतालवंसकउहाभिरामेसु। नामक प्रोषधि (उप १०३१ टी)। पीकगानी (गाया १, १ टी-पत्र ४३) । सद्देसु रज्जमाणा, रमंती सोइंदियवसट्टा। कंकड पुं [कङ्कट] वर्म, कवच, 'रामो चावे कइस (अप) वि [कीदृश] कैसा (कुमा)। (णाया १, १७)। देखो ककुह । सकंकडे दिट्ठी देंतो' (पउम ४४, २१; प्रौप)। कईया (अप) देखो कइआ (सुपा ११६)। कउहा स्त्री [ककुम्] १ दिशा (कुमा)।२ कंकडइय वि [कङ्कटित कवचवाला, वर्मित कईवय देखो कइवय (पउम २८, १६)। । शोभा, कान्ति । ३ चम्पा के पुष्पों की माला। (पएह १, ३) । Jain Education Interational For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016080
Book TitlePaia Sadda Mahannavo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovinddas T Seth
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1986
Total Pages1010
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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