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________________ ओवट्टण - ओवासंतर ओट्ट [अपवर्त्तन] ह्रास, कमी (श्रावक २१६) । ओवणा श्री [अपवर्त्तना] भागाकार, भागहरण (राज) 1 ओट्टिन [] पाटु, सुखमद (दे १, १६२) । ओट्ट व [अ] वरसा हुआ जिसने वृष्टि की हो वह (से ६, ३४) । [दे. अपवर्ष] वृष्टि बारिश ओटू (१,२५) । २ मेघ - जल का सिञ्चन ( दे १, १५२ ) । ओट्टिइअ [औपस्थितिक] उपस्थिति के योग्य, नौकर (अमी ११) । ओवड क [ अव + पत्] गिरना, नीचे पड़ना । वकृ. ओवडंत ( से १३, २८) | ओवडण न [ अवपतन] १ अधःपात । २ झम्पा-पात (से २, ३२) । ओव[उपार्थ] माथे के करीब [रिका ] बारह कवल का ही श्राहार करना, तप-विशेष (भग७, १) । ओट [अपवृद्धि]हास (नि २० ) । ओवा श्री [] धोनी का एक भाग (दे १. १५१) । पाइअसरमणयो ओवम देखो ओवम्भः 'इंदियपच्चक्खं पिय श्रमारण श्रवमं च मइनाएं' (जीवस १४२ ) । ओनियन [औपमिक ] उपमा-सम्बन्धी (शु) । ओयमियन [औपम्य] १ उपमा (डा ओम्म अणु) । २ उपमान, प्रमाण (सूप्र Jain Education International १. १० ) 1 " ओवय सक [अब + पन्] १ नीचे उतरना । २] पड़ना ओत ओवयमाण कप्पः स ३७०; पि ३६३३ गाया १, १९) । ओवयण न [दे. अवपदन] प्रोङ्खरणक, चुमना (गाया १, १ – पत्र ३६ ) । ओवयणन [ अवपतन] तर नीचे उतरना (भग ३, २- पत्र १७७ ) । ओवयाइयय वि [ औपयाचितक ] मनौती से प्राप्त किया हुआ, मनौती से मिला हुआ (डा १०) | ओवयारिय[औपचारिक ] उपचारसंधीचा ६ पुप्फ ४:६) । ओवर [द] निकर, समूह (दे १, १५७) । ओववाइय वि [ औपपातिक ] १ जिसकी उत्पत्ति होती हो वह (पंच १)। १ पुं. संसारी, प्राणी ( श्राचा)। ३ देव या नारक जीव (दस ४) । ४ न. देव या नारक जीव का शरीर ( पंच १) । ५ जैन आगम ग्रन्थ विशेष, औपपातिक सूत्र ( प ) । ओववाइय वि [ औपपातिक ] एक जन्म से दूसरे जन्म में जानेवाला (सूम्र १, १, ११) । raefore a [ औपसर्गिक ] १ उपसर्ग से संबन्ध रखनेवाला, उपद्रव - समर्थ रोगादि । २ शब्द - विशेष, प्र, परा आदि अव्यय रूप शब्द (धरण) । ओवसमि पुंन [ औपशमिक ] १ उपशम । २ वि. उपशम से उत्पन्न । ३ उपशम होते पर होनेवाला (विले २१७४) । ओवण न [उपधन] बगीचा, धाराम (कुमा)। ओवणहियपुं [औपनिहित, औपनिधिक] भिक्षाचर विशेष; समीपस्थ भिक्षा को लेनेवाला साधु (ठा ५३ श्रीप) । ओवणहिया स्त्री [औपनिधिकी ] श्रानुपूर्वीविशेष, अनुक्रम विशेष (प) । ओवत्त सक [ अप + वर्त्तय् ] १ उलटा करना । २ फिराना, घुमाना । ३ फेंकना । ओतिय दत्त ५) क्र. ओवतेअय्य ( से १०, ५० ) । ओवत व [अपवृत्त] फिराया हुमा से ओवसेर [] चन्दन, सुगन्धि ६, ६१) । ओति [अपवर्त्तित] माया था। २ क्षिप्त (लाया १, १ -पत्र ४७ ) । ओवस्थाणियवि [ औपस्थानिक ] सभा का कार्यं करनेवाला नौकर । स्त्री. या (भग ११, (1). विशेष । २ वि. रति-योग्य (दे १, १७३) । ओवरसय देखो उवस्सय; 'घट्टिबइ श्रोवस्सयतर यं तेरणाइरक्खठ्ठा' (पव ८१) । ओवह सक [ अव + वह ] १ बह जाना, बह चलना। २ डूबना । कवकृ, ओवुब्भमाण For Personal & Private Use Only २०३ ओवहारिअ वि [ औपहारिक ] उपहारसंधी (विक ७५) ओवह [औषधिक] माया से गुम विचरनेवाला १,२) । ओवा [] आपात जनसमूह की गरमी ( ) | ओवाइय देसी ओवाइयन) ओवाइय देखो उवयाइय (सुपा ११३) । ओवाइ वि [आपपातिक] सेवा करनेवाला (ठा १०) । ओवाडण न [ अवपाटन ] विदारण, नाश (ठा २, ४ ) । भोवाडियन [अनपाटित] विचारित (श्रीप) ओवाय सक [ उप + याच् ] मनौती करना । यह ओवायंत, ओवाइयमाण (सुर १३, २०६३ गाया १,८- - पत्र १३४ ) । ओवा [अवपात] १ सेवा, भक्ति (ठा ३, २० औप ) । २ गर्त्त, गड्डा ( पह १, १ ) । ३ नीचे गिरना (पद १, ४) । ओवाय वि [औपाय ] उपाय-जन्य, उपायसंबन्धी (उत्त १२८ ) । ओवार सक [ अप + वारयू ] श्राच्छादन करना, ढकना । संह ओषारिज (पनि २१३) । ओवारि न [दे] धान्य भरने का एक प्रकार का लम्बा कोठा, गोदाम (राज) | ओवारिअ वि [दे] ढेर किया हुआ, राशिकृत (४८७४८) । ओवारिजन [अपवारित] पाि ढका हुआ (मै ६१) । ओवास क [ अब काश ] शोभना विराजना । श्रवासइ ( प्राप ) । ओवास अक [ अव + काश् ] अवकाश पाना, जगह मिलना । श्रवासइ ( प्राप्र कुमा ७, २३; प्राकृ ६६ ) । ओपास [अवकाश] अवकाश खाली जगह (पान प्राप्र से १, ५४ ) । [ओबास [उपवास] उपवास, भोजनाभाव पुं ( पउम ४२, ८९ ) । ओवासंतर पुंन [ अवकाशान्तर] आकाश, गगन (भग २०, २-पत्र ७७६) । www.jainelibrary.org
SR No.016080
Book TitlePaia Sadda Mahannavo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovinddas T Seth
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1986
Total Pages1010
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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