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________________ २०० पाइअसहमहण्णवो ओमत्थ-ओरंपिअ ओमत्थ वि [दे] नत, अधोमुख (पान)। ओमीस वि [अवमिश्र] १ मिश्रित ।२ ओयट्टण न [अपवर्तन] पीछे हटना, वापिस ओमस्थिय [] देखो ओमंथिय (प्रोष समीपस्य । ३ न. सामीप्य, समोपताः लौटना (उप ७६०) ३८६) 'सुचिरंपि अच्छमारणो, . ओयड्ढ़ सक [अप + कृप] खींचना । ओमल्ल न [निर्माल्य निर्माल्य, देवोच्छिष्ट वेरूलियो कायमणियप्रोमीसे। कवकृ. ओयढ़ियंत (पउम ७१, २६) । द्रव्य (षड् )। न उवेइ कायभावं, | ओयढिया। स्त्री [दे] ओढ़नी, प्रोढ़ने ओमल्ल विदे] घनीभूत; कठिन, जमा हुआ पाहन्नगुरोण नियएण ।' आयड्ढी ३ का वस्त्र, चादर, दुपट्टा (सुख (षड् )। (मोघ ७७२) V २,३०)। आमाण पू[अपमान अपमान, तिरस्कार आमुक वि [अवमुक्ता परित्यक्त (सम्मत्त ओयग देखो ओदण (पउम ६६,१६)। (उत्त २६)। ओयत्त वि [अववृत्त] अवनत, अधोमुख ओमाण न [अवमान] १ जिससे क्षेत्र वगैरह ओमुग्ग देखो उम्मग्ग (पि १०४: २३४) (पान) का माप किया जाता है वह, हस्त, दण्ड | ओमुन्छि अवि [अवमूच्छित] महा-मूर्छा ओयत्त सक [अप + वर्तय् ] उलटाना, वगरह मान ठार, ४।। २ जिसका माप को प्राप्त (पउम ७, १५८) खाली करने के लिए नमाना । संकृ. किया जाता है वह क्षेत्रादि (अण) ओमदरा विअिबसर्भक अधोमात 'ग्रोम आयात्तयाण (आचार, ओमाणण न [अवमानन, अप] अपमान, द्धगा धरणियले पति (सूत्र १, ५) । | ओयत्तग न [अपवर्तन] खिसकाना, हटाना तिरस्कार (स ६६७) । ओमय सक [अव + मुच् ] पहनना। (पिंड ५६३) । ओयविय विदे] परिकर्मित (पएह १, ४० ओमाय वि [अवमित] परिमित, मापा हुआ ओमुयइ (कप्प) । वकृ. ओमुयंत (कप्प)। प) । . आमुयत (कप्पीप) TV (सुज्ज है)। संकृ. ओमुइत्ता (कप्प) ओया स्त्री [ओजस् ] शक्ति, सामर्थ्य (णाया ओमाल देखो ओमल्ल = निर्माल्य (हे १, ३८; ओमोय पुं[ओमोक] पाभरण, आभूषण १, १०-पत्र १७०) कुमाः वज्जा ८८) (भग ११, ११) । ओया स्त्री [ओजस् ] १ प्रकाश (सुज्ज ६)। ओमाल प्रक [उप + माल] १ शोभना, | ओमोयर वि [अवमोदर] भूख की अपेक्षा २ माता का शुक्र-शोरिणत (तंदु १०)। शोभित होना । २ सकः सेवा करना, पूजना । न्यून भोजन करनेवाला (उत्त ३०) ओयाइअ देवो उवयाइय (सुपा ६२५दे संकृ. ओमालिवि (भवि) । कवकृ. 'अहवावि ओमोयरिय न [अवमोदरिक] १ न्यून ४, २२)। भत्तिपणमंततियसवहूसीसकुमुमदामेहि । ओमा- | भोजनत्व, तप-विशेष (याचा)। २ दुर्भिक्ष, ओयाय वि [उपयात] उपागत, समीप पहुँचा लिज्जतकमो, नियमा तित्थाहिवो होई' अकाल (पोध ७)। हुआ (णाया १, ६; निर १, १)। ओमोयरिया स्त्री [अवमोदरिता, 'रिका] (उप ६८६ टी) ओयार सक[ अव + तारय ] नीचे उतान्यून भोजन रूप तप (ठा ६)। ओमालिअ देलो ओमल्ल = निर्माल्य (प्राक | रना । संकृ. ओयारिया (दस ५, १, ६३)। ३४)IV अम्माय पुं[उन्माद] उन्मत्तता (संबोध २१)। ओयार पुं [अवतार] घाट, तीर्थ (चेश्य ओमालिअ वि [उपमालित] १ शोभित । ओय न [ओजस्] १ विषम संख्या, जैसे ५१८) ।। २ पूजित, अचित (भवि)। एक, तीन, पांच आदि (पिंड ६२६)।२ ओयारग वि [अवतारक] १ उतारनेवाला। ओमालिआ स्त्री [अवमालिका] चिमड़ी या आहार-विशेष, अपनी उत्पत्ति के समय जीव २ प्रवृत्ति करनेवाला (सम १०६) । मुरझाई हुई माला (गा १६४)। प्रथम जो आहार लेता है वह (सुअनि १७१) ओयारण देखो उयारण (कुप्र ७१) ओमास दु[अवमर्श] स्पर्श (से ६, ६७)। ओय वि [ओकस् ] गृह, घर (वव ५) ओयावइत्ता प्र[ओजयित्वा] १ बल दिखा कर । २ चमत्कार दिखा कर ! ३ विद्या आदि ओमिण सक [अव + मा] मापना, मान | ओय वि [ओज] १ एक, असहाय (सूत्र १, र (सूत्र १ का सामर्थ्य दिखा कर (जो दीक्षा दी जाय करना । कर्म. ओमिणिज्जइ (अणु) । ४, २, १)। २ मध्यस्थ, तटस्थ, उदासीन | __ वह) (ठा ४)। ओमिणण न [दे] प्रोखनक, विवाह की एक | (बह १)। ३. विषम राशि (भग २५,३) Myra1 चाह. सन्दर (दे १.१४६)। रीति, वर के लिये सासू की ओर से किया ओय न [ओजस्] १ बल (प्राचा) ।.२ २ समीप (दश अग० चू०, आख्या० कोश. हुमा न्योछावर (पंचा ८,२५)। प्रकाश, तेज (चंद ५)। ३ उत्पत्ति-स्थान पत्र ८७ गा०६) अंमय वि[अवमित] परिच्छिन्न, परिमित में आहत पुद्गलों का समूह (पएण ८; संग ओरंपिअ विदे]१ पाक्रान्त । २ नर (दे (गज्ज ) १८२) । ४ आर्तव, ऋतु-धर्म (ठा ३, ३)। १, १७१) । माल अक [अव + मील ] मुद्रित होना, ओयंसि वि [ओजस्विन्] १ बलवान् । ओरंपिअ वि [दे] पतला किया हुआ, छिला बन्द होना । वकृ.ओमीलंत (से ३, १) २ तेजस्वी (सम १५२; औप) ।। हुआ (पान) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016080
Book TitlePaia Sadda Mahannavo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovinddas T Seth
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1986
Total Pages1010
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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