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________________ १८६ जाना । ४ प्रक. फैलना, पसरना । वकृ. उव्वेल्लंत (पि १०७) उब्वेल्ल वि [उवेल ] १ उच्छलित, उछला हुआ; 'उब्वेल्ला सलिलनिही' (पउम ६, ७२ ) । २ प्रत फैला हुआ (पास) 'हरिसल्लाए (६२५) उब्वेल्लिन [उद्वेल्लित] १ कम्पित (गा ६०५) २ उरह ३) ३ प्रचारित (स २३५) | डब्बेस्टर [िउद्वेल्लि] सावर जानेवाला (कुमा) । वेदेखी पद् उठवे देखो उब्वेग (कुमा सुर ४, ३६; ११. १६४) । वि [ उद्वेजक ] उद्वेग-कारक, 'द्धा छिप्पेही, श्रवन्नवाई सयम्मई चवला । का कोहणसीला, सीसा उम्मेवना गुरुणा" (उब ) उव्वेषणय वि [उद्वेजनक ] उद्वेग-जनक ( पच्च ४५) । उव्वेव देतो देव ( २६२) । उब्वेसर [म्बेश्वर] इस नामका एक राजा (कुमा) । १ उबेद [वेध] ऊँचाई (सम १०४) २ गहराई (ठा १० ) । ३ जमीन का अवगाह (ठा १० ) 1 बेलिया श्री [उद्वेलि] त्यति विशेष (१) । ड्ड वि [दे] ऊँचा (राय) उसढ देखो ऊसढ = दे ( पव २ ) । उस [ उशनस् ] ग्रह-विशेष, शुक्र, भार्गव ( पाच ) 1 उससे [दे] बल (१, ११०) उस वि [उत्सक्त]] ऊपर बंधा हुआ खाया २.१1४ उस [] यति विशेष की एक जाति (६१) । उसपिणी देखो उस्सप्पिणी (जी ४०; विसे २७०९) । उस पुंन [वृषभ ] एक देव - विमान (देवेन्द्र १४०) Jain Education International पाइअसहमणव ० उसभ पु [ऋषभ, वृषभ ] ख्यात प्रथम जिनदेव (सम ४३ बैल, साँड़ ( जीव ३) । ३ वेष्टन पट्ट (पव २१६) । ४ देव - विशेष (ठा ८ ) । ३ ब्राह्मणविशेष (उत्त १) कंठ ["कण्ठ] बेल का गला । २ रत्न विशेष ( जीव ३) । कूड [["कूट] पर्यंत विशेष (ठा) नाराय न[* नाराच] संहनन-विशेष, शरीर बन्धविशेष (पंच)। दन्त ["दत्त] ब्राह्मण कुण्ड ग्राम का रहनेवाला एक ब्राह्मण, जिसके घर भगवान् महावीर अवतरे थे (कल्प ) पुरन ["पुर] नगर- विशेष (त्रिपा २, २ ) । पुरी स्त्री ['पुरी] एक राजधानी (ठा ८ ) । °सेण पुं[°सेन ] भगवान् ऋषभदेव के प्रथम गणधर (प्राचू १) । -- उसर ( [] (वि२५६) लिवि [ दे ] रोमाञ्चित, पुलकित ( षड् ) 1 उसह देखो उसभ ( हे १, १३१६ १३३ १४१ षड् कुमाः सम १५२ पउम ४, ३५) IV उससे [वृषभसेन] तीर्थंकर-विशेष २ जिनदेव की एक शाश्वती प्रतिमा (पव ५६) । उसा [ उषस् ] प्रभात-काल (गड) | उणि वि [उष्ण] गरम, सप्त रूप्पा ३, उसिण वि [उष्ण] गरम, तप्त (कप्प ठा ३, १) । ३ पुंन. गरम स्पर्श (उत्त १) । ३ गरमी, ताप (उत्त२) । उसिय वि[[]] व्याप्त, फैला हुआ (सम वि[उत्सृत] १३७) । उसिय वि [ उषित] रहा हुआ, निर्वासित ( से ८, ६३३ भत्त १२८) उसिर देखो उसीर उशीर (गु १, ४, 2,5) Iv विस (दे १, उसीर न [ उशीर ] सुगन्धि तृण- विशेष, खश (२५) । उसीर न [ दे] कमल दण्ड, ६४) उसु पुं [इषु] १ बाण, शर १) । २ धनुराकार क्षेत्र का क्षेत्र परिमाण १ स्वनामकप्प ) । २ (सूत्र १, ५, बारण स्थानीय For Personal & Private Use Only उव्वेल — उस्सग्ग 'धरणुवग्गा नियमा, जीवावगं विसोहइत्ताणं । सेसस्स छट्टभागे, जं मूलं तं उसू होई ( जो १) । कार, गार, यार [कार ] १ पर्वत - विशेष (सम ६६ ठा २, ३; राज ) । २ इस नाम का एक राजा । ३ स्वनाम ख्यात एक पुरोहित (उत्त १४) । ४ वि. बारण बनानेवाला (राज) । ५ स्वनाम - ख्यात एक नगर (उत्त १४) । उसुअ [दे] दोष, दूषण (१८१) उसुअन [ इषुक ] १ बाण के श्राकार का एक आभूषण । २ तिलक (पिंड ४२४) । उसुअवि [रमुक ] उत्कल (मुपा २२४) । उसुयाल न [दे] उदूखल (राज) I [[[दे] परिक्षा, शत्रुसैन्य का नाश करने के लिए ऊपर से आच्छादित गतं विशेष (उत १) | उस [दे] हिम श्रोसः 'अप्पहरिए प्रप्पु - स्पेसु' (बृह ४) । उस्संकलिअ वि [उत्संकलित ] निसृष्ट, परिव्यक्त (प्राचा २) | उ[] निरंकुश (पि २१३) । उस्संग पुं [उत्सङ्ग] क्रोड, कोला या कोरा (नाट) । उस्संघट्ट वि [उत्संघट्ट] शरीर-स्पर्शं से रहि ( उप ५५५) । उस्क्क क [ उत् + ष्वष्कू ] १ उत्कण्ठित होना । २ पीछे हटना । ३ सक स्थगित करना । संकृ. उस्सक्कइत्ता । प्रयो. उस्सक्कावइत्ता (ठा ६) । उस्सक सक [ उत् + ष्वष्क् ] प्रदीप्त करना, उत्तेजित करना । संकृ. उस्सक्किय ( श्राचा २, १,७, २) उसकण न [क] किसी कार्य को कुछ समय के लिये स्थगित करना (धर्मं ३) । [](पंचा १२, १०) 1 उसकि [धित] नियत काल के बाद किया हुआ (२१० ) - उस्सग्ग पुं [ उत्सर्ग] १ त्याग ( आव ५ ) । २ सामान्य विधि (उप ७८१ ) 1 www.jainelibrary.org
SR No.016080
Book TitlePaia Sadda Mahannavo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovinddas T Seth
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1986
Total Pages1010
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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