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उप्पुअ-उबिबिर पाइअसद्दमहण्णवो
१६५ उप्पुअवि [उत्प्लुत] उच्छलित, कूदा हुआ उप्फाल पुं[दे] खल, दुर्जन (दे १, ६०, उप्फुस सक [उत् + स्पृश् ] सिंचना, छिड(से ६, ४८; पण्ह १, ३) पाप)M
कना । संकृ. उप्फुसिऊण (राज)। उप्पुंसिअ देखो उप्पुसिअ (से ६, ८५)। उप्फाल सक [उत् + पाटय् ] १ उठाना। उप्फेणउप्फेणिय किवि [दे] क्रोध-युक्त उप्पणिअ वि [उत्पूत] सूप से साफ-सुथरा
२ उखाड़ना । उफ्फालेइ (हे २,१७४)V | प्रबल वचन से; 'उप्फेणउप्फेरिणयं सीहरायं किया हुअा (पान) उप्फाल सक [कथ् ] कहना, बोलना ।
एवं वयासी' (विपा १, ६-पत्र ६०)। उप्पुण्ण वि [ उत्पूर्ण ] पूर्ण, व्याप्त (स उप्फालेइ (हे २, १७४) ।।
उप्फेस पुं[दे] १ त्रास, भय (दे १, ६४) । २५) । | उप्फाल वि [कथक] कहनेवाला, सूचक |
२ मुकुट, पगड़ी, शिरोवेष्टनः 'पंच रायककुहा उप्पुलइअ वि [उत्पुलकित] रोमाञ्चित (स ६४४)।
पएणत्ता, तं जहा-खग्गं छत्तं उपफेसं (स २८१)। उप्फालिअ वि [कथित] १ कथित । २ |
उवाहणाउ बालवियणी' (ठा ५, १-पत्र उप्पुसिअ वि [उत्प्रोञ्छित] लुप्त, प्रोञ्छित
___३०३ औप; पाचा २, ३, २, २)/
सूचित (पाय; उप ७२८ टी स ४७८)। (से ६, ८५ गउड)।
उप्फेसण न [दे] डराना, भयोत्पादन (सुख उरिफड अक [उत् + स्फिट ] कुण्ठित उप्पूर पुं[उत्थर ] १ प्राचुर्य ( पण्ह १,
___३, १)। होना, असमर्थ होना । उफ्फिडइ, उप्फेडइ। ३) । २ प्रकृष्ट-प्रवाह (प्रौप) V
उप्फोअ ' [दे] उद्गम, उदय ( दे १, 'एमाइविगप्पणेहिं वाहिज्जमाणो उप्फि- फे)उपेक्ख (अप) देखो उविक्ख । उप्पेक्ख
६१) डइ परसू' (महा)(पिंग) IV
उबुस सक [ मृज ] मार्जन करना, शुद्धि उपेक्स सक [उत्प्र + ईक्ष ] संभावना | उप्फिड अक [उत् + स्फिट ] मंडूक की
करना, साफ करना । उबुसइ ( षड् )। करना, कल्पना करना। उप्पेक्खामि (स तरह कूदना, उड़ना । उप्फिडइ (उत्त २७,
उब्बंध सक [उद् + बन्ध् ] १ फाँसी १४७) । उप्पेलेमि (स ३४६) IV ५)। वकृ. उप्फिडंत (पव २)।
लगाना, फ.सी लगा कर मरना। २ वेष्टन उपेक्खा स्त्री [उत्प्रेक्षा] १ अलंकार-विशेष उप्फिडण न [उत्स्फेटन] कुण्ठित होना
करना। वकृ. 'जलनिहितडम्मि दिट्ठा उब्बं २ वितरणा, संभावना (गा ३३९)। (स ६६८)।
धंती इहप्पाणं' (सुपा १६०)। संकृ. उब्धं - उप्पेक्खिअ वि [उत्प्रेक्षित] संभावित, उटिफडिय वि [उत्स्फिटित] १ कुण्ठित ।
धिअ, उब्बंधिऊण ( नाट; पि २७०; विकल्पित (दे १, १०६) । २ बाहर निकला हुआ; 'कत्थइ नक्कुक्क
स ३४६) V उप्पेय न [दे] अभ्यंग, तैलादि की मालिश त्तियसिप्पिपुडुप्फिडियमोत्तिया. नो' (सुर १३,
उन्बंधण न [उदबन्धन] फांसी लगाना, 'पुब्वं च मंगलट्ठा उप्पेयं जइ करेइ गिहियाणं' २१३)।।
उल्लम्बन (ie , ५)। (वव ६) उप्फुकिआ स्त्री [दे] धोबिन, कपड़ा धोने
उब्बण बि [उल्बण] उत्कुट (पि २६६) । उप्पेल सक [ उद् + नमय ] ऊँचा करना,
वाली (दे १, ११४)।
उब्बद्ध वि [उद्बद्ध] १ जिसने फांसी लगाई उन्नत करना । उप्पेलइ (हे ४, ३६)। | उप्फुडिअ वि [दे] प्रास्तृत, बिछाया हुआ |
हो वह, फाँसी लगा कर मरा हुमा। २ उप्पेलिअ वि [उन्नमित] ऊँचा किया हुआ, (दे १, ११३)।
वेष्ठितः 'भुभंगसंघायउब्बद्धो' (सुर ८, ५७)। उन्नत किया हुआ (कुमा)।
उप्फुण्ण वि [दे] अापूर्ण, भरा हुआ, ३ शिक्षक के साथ शत्तों से बँधा हुआ, शिक्षक उप्पेल्ल पुं [उन्नमन] ऊंचा करना (पउम ८,
व्याप्त (दे १, ६२, सुर १, २३३, ३, के प्रायत्त (ठा ३); २७२) । २१५)।
'सिप्पाई सिक्खंतो, उप्पेस पुं[उत्पेष त्रास, भय, डर (से १०, | उप्फुन्न वि [दे] स्पृष्ट, छुपा हुआ (पव सिक्खावेंतस्स देइ जा सिक्खा। ६१) १५८ टी)।
गहियम्मिवि सिक्खम्मि, उप्पेह्ड वि [दे] उद्भट, आडम्बरवाला उप्फुल्ल वि [उत्कुल] विकसित (पान से
जं चिरकालं तु उब्बद्धो (बृह)।(दे १, ११६; पाना स ४४६)। ६, ६६)।
उब्बिब वि [दे] १ खिन्न, उद्विग्न । २ शून्य उप्फ देखो पुप्फ (गा ६३६) उप्फुल्लिा स्त्री [उत्फुल्लिका] क्रीड़ा विशेष,
३क्रान्त । ४ प्रकट वेष वाला। ५ भीत, डरा उप्फण सक [ उत् + फण ] छाँटना, पवन पांव पर बैठ कर बारंबार ऊँचा-नीचा होना:
पाँव पर बैठ कर बारंबार ऊँचा-नीचा होनाः | हुमा । ६ उद्भट (३१, १२७ वज्जा ६२)। में धान्य आदि का छिलका दूर करना । 'उप्फुलिपाइ खेल्लउ,
| उब्बिंबल वि [दे] कलुष जलवाला (दे उप्फरणंति, भूका. उप्फरिणसु, भवि. उप्फ
मा णं वारेहि होउ परिऊढा। १११ टी)V रिणस्संति (आचा २, १, ६, ४)।V
मा जहणभारगरुई,
| उब्बिंबल न [दे] कलुष जल, मैला पानी उप्फंदोल वि [दे] चल, अस्थिर ( दे १,
पुरिसातो किलिम्मिहिई (दे १,१११)। १०२)।
(गा १६६)V । उब्धिबिर वि [दे] खिन्न, उद्विग्न (कप्पू) ।
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