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________________ १५८ [' वस्ति ] हृति, पानी भरने का मशक | उदयंत देखो उदि । सिहा स्त्री [शिखा ] सीम पुं [ 'सीमन् ] (गाया १, १८ ) । वेला (ठा १० ) । विशेष (क) 1 उदग्गवि [उद] १ सुन्दर, मनोहरः ' तत्तो दछु' तीए रूवं तह जोव्वरणमुदग्गं' (मुर १, १२२) । २ उग्र, उत्कट, प्रखर (ठा ४, राया १, १ सत्त ३० ) । ३ प्रधान, मुख्य 'उगवारितवो महेसी' (पत ११) ॥ उदड्ढ पुं [उद्दग्ध] एक नरक-स्थान ( देवेन्द्र २७) २३ उदन्तवि [उदात्त ] उदार, अकृपण (संबोध ३८) उदत्त वि[उदास ] स्वर-विशेष जी उच्च स्वर से बोला जाय वह स्वर ( विसे ८५२ ) उदन्ना स्त्री [उदन्या ] तृषा, तरस, पिपासा (उप १०३१ टी । | उदय देखो उद्ग (गाया १८ सम १५३३ उप ७२८ टी; प्रासू ७२; पण १) । उदय [उदय] लाभ (सू २६, २४) ル उदय पुं [उदय] १ अभ्युक्ष्य, उन्नति, 'जो एवंविपि कज्जं प्रायर, सो कि बंभदत्तकुमारस्स उदयं इच्छइ ?' (महा) । २ उत्पत्ति (विसे) ३ विपाक, कर्म-परिणाम । 'हमारण अभक्खारणदारण परधरविलोवरगाई । सत्रहन्नो उदो दसगुरिणश्रो एक्कसि कमाए (उप) । ४] प्रादुर्भाव उद्गम होए चंदा इ निव्यभा जाया सुरा' (महा); 'उदयमिनि साथमावि धरइ रत्तत्तणं दिवसनाहो । रिद्धी आि तुल्लच्चिय पूरण सप्पुरिसा ।' (प्रासू १२ ) । ५ भरतक्षेत्र के भावी सातवें जिनदेव (सम १५३ ) । ६ भरतक्षेत्र में होनेवाले तीसरे जिनदेव का पूर्व-भवीय नाम ( सम १५४ ) । ७ एक राजकुमार (पउम २१, ५६ ) यल [चल ] पर्यंत विशेष, जहाँ सूर्यं उदित होता है (सुपा 44 ) V स्वनाम - ख्यात पाइअसद्दमणको Jain Education International उदयण [ उदयन] १ राजा सिद्धराज का प्रसिद्ध मंत्री ( कुप्र १४३) । उदयण [उदयन] १ एन राजकुमार, कोशाम्बी नगरी के राजा शतानीक का पुत्र ( विपा १, ५) । २ एक विख्यात जैन राजा (कप्प ) । ३ न उन्नति, उदय । ४ वि उन्नत होनेवाला प्रवर्धमान (ठा ५, ३) I उदर न [उदर ] १ पेट, जठर (सूत्र १, ८) । २ पेट की बीमारी 'खयजरवरणलुप्रासाससोसोदराणि ( लहुन १५ ) 1 उदरंभरि वि [उदरम्भरि] स्वार्थी, श्रकेलपेटू (1 202) V उद्दिवि [उदरिन] पेट की बीमारीवाला ( परह २,५ ) V उदरिय वि [ उदरिक ] ऊपर देखो ( विपा १, ७) TV उदवाह वि [ उदवाह ] १ पानी वहन करनेवाला, जल वाहक । २ पुं. छोटा प्रवाह (भग २, A) IV उदसी [] [ उदश्चित् ? ] तक उदहि पुं [ उदधि] १ समुद्र, सागर (कुमा) २ भवनपति देवों की एक जाति, उदधिकुमार (पण्ह १, ४)। कुमार पुं [कुमार ] देवों की एक जाति ( पण १) । देखो उअहि उदाइ [उदायिन] १ एक जैन राजा, महाराजा कोणिक का पुत्र, जिसको एक दुष्ट ने जैन साधु बनकर धर्मच्छल से मारा था और जो भविष्य में तीसरा जिनदेव होगा (ठा ; ती ) । २ पुं. राजा कूणिक का पट्टहस्ती (भग १६, १) उदाइण देखो उदायण ( कुलक २३) । उदात्त देखो उदत्त (दि १७४ टी) । उदाय [उदायन] सिन्धु-देश का एक राजा, जिसने भगवान् महावीर के पास दीक्षा ली थी (ठा भग ३, ६) उदार देखो उराल (उप पृ १०८) उदासि वि [उदासिन्] उदास उदासीन । वन [व] श्रीदासीन्य ( मास ४५१) । उदासीण वि [उदासीन ] १ मध्यस्थ, तटस्थ (पह १, २ ) । २ उपेक्षा करनेवाला (ठा ६) । For Personal & Private Use Only उदाहड (राज) उद्ग्ग-उदीणा [उदाहृत] कथित तिल , उदाहर सक [उदा + हृ] १ कहना । २ दृष्टान्त देना। उदाहरति (पि १४१) 'मार्स नेव उदाहरि' (सप्त ४३) भूका. (भाचा उत्त १४, ६) राहू (सूच १, १२, ४) । वकृ. उदाहरंत (सूत्र १, १२, ३) उदाहरण न [उदाहरण] १ कथन, प्रतिपादन । २ दृष्टान्त (सूत्र १, १२, विसे) । उदाहिय [उदाहत] १ कथित प्रति पादित २शन्ति (धाचा खाया १०) उदादिय व [] लिप्त फेंका गया ( प ) उदाहु देखो उदाहर " [उदाहु [उताहो] अथवा या उ उदाहू देखो उदाहर | = उदाहो देखो उदाहु उताहो (स्वप्न ७० ) । उदि धक [उद् + इ] १ उन्नत होना । २ उत्पन्न होना । ( विसे १२९६० जीव ३ ) । वकृ. उदयंत (भाग ८२, ५ वा १२० । उदित (निये ४१०) । अवि [उदीक्षित ] अवलोकित (दे ६, १४४ ) IV उदिष्ण वि [ उदीच्य] उत्तर- दिशा में उत्पन्न (श्रावम) उण वि [ उदीर्ण] १ उदित, उदय-प्राप्त } उदिन्न } (ठा ५); 'इको वि इको विसम्रो उदिन्नो' (सत ५२ ) । २ फलोन्मुख (कर्म) ( पण १९ भग) । ३ उत्पन्न; 'जहा उदिरणो न कोलि काही (सत १ था. २७) । ४ उत्कट, प्रबल 'अगुत्तरोववाइयाणं भंते ! देवा कि उदिरा मोहा, उवसंतमोहा, खीरणमोहा ?' (भग ५, ४) । V उदिय वि [ उदित] १ उदित, उद्गत (सम ३६) २ उन्नत (ठा ४) । ३ उक्त, कथित (विसे २५७६) उदीण वि [ उदीचीन] १ उत्तर दिशा से संबन्ध रखनेवाला, उत्तर दिशा में उत्पन्न ( श्राचापि १६५) । पाईणा स्त्री [प्राचीना ] ईशान कोण (भग ५, १ ) 1 उदीणा स्त्री [उदीचीना ] उत्तर दिशा (ठा 3,3) 17 www.jainelibrary.org
SR No.016080
Book TitlePaia Sadda Mahannavo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovinddas T Seth
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1986
Total Pages1010
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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