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उश्चिय-उच्छाय पाइअसद्दमहण्णवो
१४७ उच्चिय देखो उचिय; 'तस्स सुमोच्चियपन्न- ८५)। २ वि. न्यून, हीना 'उच्छत्तं वा न्यून- उच्छप्पणा स्त्री [उत्सर्पणा] ऊपर देखो, त्तणेण संतोसमणुपत्ता' (उप १६६ टी)V त्वम्' (पएह २, १)IV
"जिएपवयणम्मि उच्छप्पणाउ कारेइ विविउच्चिवलय न [दे] कलुषित जल, मैला पानी
उच्छअ ' [उत्सव] क्षण, उत्सव (हे २, . हायो' (सुपा २०६; ६४६)। २२)।
उच्छल अक [उत् + शल्] १ उछलना, (पान)
उच्छअ वि [पृच्छक प्रश्न-कर्ता (गा ५०) ऊँचा जाना । २ कूदना । ३ पसरना, फैलना। उच्चुंच वि [दे] दृप्त, गर्विष्ठ, अभिमानी (दे
उच्छइअ वि [उच्छदित] आच्छादित, | वकृ. उच्छलत (कप्प; गउड)।V १,६९)
| 'पालंबउच्छइयवच्छयलो' (काल)। उच्छलण न [उच्छलन] उछलना (दे १, उच्चुग वि [दे] अनवस्थित (षड्)V उच्छंखल वि [उच्छल १शृङ्खला-रहित, ११८; ६, ११५) V उच्चुड प्रक [ उत् + चुड्] अपसरण | अवरोध-वजित, बन्धन-शून्य । २ उद्धत, निरं- उच्छलिअ वि [उच्छलित] उछला हुषा, करना, हटना । वकृ. उच्चुडंत (गउड ७३३)। कुश (गउड)।
ऊँचा गया हुआ (गा ११७६२४; गउड)। उच्चुप्प सक[चट् ] चढ़ना, प्रारूढ़ होना, उच्छंखलिय वि [उच्छङ्कलित] प्रवरोध- | २ प्रसृत, फैला हुआ. 'ता ताण वरगंधो।
ऊपर बैठना । उच्चुणइ (हे ४, २५६) IV रहित किया हुआ, खुला किया हुआः 'उच्छं- उच्छालयो छलिउँ पिव गधं गोसासचंदणवउच्चुप्पिअ वि [दे. चटित] आरूढ़, ऊपर खलियवणाणं सोहागं किंपि पवणाणं' एस्स' (सुपा ३८५) चढ़ा हुआ (दे १, १००)। (गउड)।
उन्छलिर वि [उच्चलित] उछलनेवाला उच्चुरण [दे] उच्छिष्ट, जूठा ( षड् )।
उच्छंग j [उत्सङ्ग] मध्य भाग; 'मउडुच्छंग- (धर्मवि १४, कुप्र ३७३)। उच्चुलउलिअ न [दे] कुतूहल से शीघ्र शीघ्र
परिग्गहमियंकजोराहावभासियो पसुवइणो' उच्छल्ल देखो उच्छल। उच्छलइ (पि २२७); जाना (दे १, १२१)। (गउड से १०,२)। २ क्रोड, गोद, कोरा
'उच्छल्लंति समुद्दा' (हे ४, ३२६)।' (पाप); 'उच्छंगे णिविसेत्ता' (प्रावम)। ३ | उच्चुल्ल वि [दे] १ उद्विग्न, खिन्न । २ अधि
उच्छल्ल वि[उच्छल] उछलनेवाला (भवि)। पृष्ट देश (ोप)। रूड, पारुढ । ३ भीत, डरा हुआ (दे १,
| उच्छल्लणा स्त्री [दे] अपवर्तना, अपप्रेरणा: उच्छंगिअ वि [उत्सङ्गित] कोरा, कोली या १२७) ।
'कप्पडप्पहारनियप्रारक्खियखरफरुसवयगतउच्चूड पुं [उच्चूड] निशान का नीचे लट
गोद में लिया हुआ (उप ६४८ टी)।
जणगलच्छल्लुच्छल्लणाहि विमणा चारगवसहि कता हुआ शृंगारित वस्त्रांश (उब ४४६)।
उच्छंगिअ वि [दे] आगे किया हुआ, आगे पवेसिया' (पण्ह १, ३)।
रखा हुअा (दे १, १०७)। उच्चूर वि [दे] नानाविध, बहुविध (राज)।
उच्छल्लिअ देखो उच्छलिअ (भवि) । - उच्छंघ देखो उत्थंघ (हे ४, ३६ टो)। उच्चूल पुं[अवचूल] १ निशान का नीचे
उन्छलिअ वि [दे] जिसकी छाल काटी गई उच्छंट पुं[दे] झड़प से की हुई चोरी (दे १, | लटकता हुआ शृङ्गारित वस्त्रांश (उप ४४६
हो वह, 'तरुणो उच्छल्लिया य दंतीहि' (दे १०१; पान)। टी)। २ औंधा-सिर-पैर ऊपर और सिर
१,१११)। नीचे कर--खड़ा किया हुआ (विपा १, ६)
उच्छटपुं[दे] चोर, डाकू (दे १,१०१) उच्छव देखो उच्छअ (कुमा)। २ उत्सेक उच्चे देखो उच्चिण। उच्चेइ (हे ४, २४१)।
उच्छडिअ वि [दे] चुराई हुई चीज, चोरी | (भवि)। हेकृ. उच्चेउं (गा १५६)। का माल (दे १, ११२)।
उच्छविअ न [दे] शय्या, बिछौना (दे १, उच्चय वि[उच्चेतस् ] चिन्तातुर मनवाला उच्छण न [प्रच्छन] प्रश्न, पूछना (गा १०३)।
उच्छह सक [उत् + सह ] उद्यम करना। (पान)।
उच्छण्ण देखो उच्छन्न (हे १, ११४)। वक. उच्छहं (दस ६, ३, ६)। उच्चेल्लर न [दे] १ ऊसर भूमि। २ जघन
उच्छत न [अपच्छत्र] १ अपने दोष को उच्छह अक [उत् + सह. ] उत्साहित स्थानीय केश (दे १, १३६)।
ढकने का व्यर्थ प्रयत्न, गुजराती में 'ढांकपि- होना । वकृ. उच्छहंत (भवि)। उच्चेव वि [दे] प्रकट, व्यक्त (दे १,६७)।
छोडो'। २ मृषावाद, भूठ वचन (पराह | उच्छ हय वि [उत्सहित] उत्साह-युक्त उच्चोड पुं [दे] शोषण, 'चंदणुचोडकारी चंडो १,२)।
(सरण)। देहस्स दाहाँ (कप्पू: प्राप)।
उच्छन्न वि [उत्सन्न] छिन्न, खण्डित, नष्ट उच्छाइअ वि [अवच्छादित आच्छादित, उच्चोदय पुं [उच्चोदय चक्रवर्ती का एक देव(कुमाः सुपा ३८४)
ढका हुआ (पउम ६१, ४२; सुर ३, ७१)। कृत प्रासाद (उत्त १३, १३)।
उच्छप्प सक[ उत् + सर्पय ] उन्नत करना, उच्छाडिअ (अप) वि [अवच्छादित] ढका उच्चोल पुं[दे] १ खेद, उद्वेग। २ नीवी, स्त्री
प्रभावित करना । उच्छप्पइ (सुपा ३५२)। हुप्रा (भवि)।.. के कटी-वन की नाड़ी (दे १, १३१) ।
वकृ. उच्छप्पंत (सुपा २९६)TV उच्छाण देखो उच्छ = उक्षन् (प्रामा)।.. उच्छ ' [उक्षन] बैल, वृषभ (हे २, १७)। उच्छप्पण न [उत्मग] उन्नति, अभ्युदय उन्धान पु[उच्छ्राय] उल्लेध, ऊगई (ठा उच्छ पु [दे] १ प्रांत का प्रावरण (दे १, (सुपा २७१) ।।
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