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________________ - १०% पाइअसहमहण्णवो आचिक्ख-आण आचिक्ख सक [आ + चक्ष ] कहना। | आजुत्त वि [आयुक्त] अप्रमादी (नि)V आडोविअ वि [दे] आरोपित, गुस्सा किया कृ. आचिक्खणीय (स ४०) आजुज्म अक [आ+ युध् ] लड़ना । हेकृ. | हुपा (दे १,७०) आचिक्खिय वि [आख्यात] कथित, उक्त आजुज्झिदुं (शौ) (वेणी १२४) । आडोविअ वि [आटोपिक] पाटोपवाला, (स ११९) । V आजुह न [आयुध हथियार (मै २४) स्फारित (पएह १, ३)। आचुण्णिअ वि [आचूर्णित] १ चूर-चूर आजोज्ज देखो आओज (विसे १५०३)। | आढई स्त्री [आढकी वनस्पति-विशेष (पएण किया हुआ (पउम १७, १२०) ।। आडंबर पुं [आडम्बर] १ आटोप, ऊपरी १) V आचेलक्क न [आचेलक्य] १ वस्त्र का प्रभाव | दिखाव (पान)। २ वाद्य की आवाज (ठा)। आढग पुन [आढक] १ चार प्रस्थ (सेर) का (कप्प) । २ वि. आचार-विशेषः 'आचेलको एक परिमाण। २ चार सेर परिमित चीज धम्मो' (पंचा) ।। (पव) (प्रौपः सुपा ९७)। आच्छेदण न [आच्छेदन] १ नाश। २ वि. आडंबर पुं [आडम्बर] वाद्य-विशेष, पटह | आढत्त वि[दे] आक्रान्त, 'एर तरम्मि विजयनाशक (कुमा)IV (अणु १२८)। वम्मनरवइणा पाढत्तो लच्छिनिलयसामी सूरआजत्थ देखो आगम + आ = गम । पाजत्थइ आडंबरिल्ल वि [आडम्बरवत् ] आडम्बरी तेनो नाम नरवई (स १४०) (प्राकृ ७४)। (पास) आढत्त वि [आरब्ध] शुरू किया हुआ, प्रारब्ध आजाइ देखो आयाइ (ठा; स १७८)।V आडविय वि [दे] १ चूणित, चूर-चूर किया (प्रोघ ४८२, हे २, १३८) ।। आजि देखो आइ% प्राजि (कुमाः दे १,४६) हा (षड्)V आढत्तिअ) वि[आरब्ध प्रारंभ किया हुआ आज.रण पुं [आजीरण] स्वनामख्यात एक आडविय वि [आटविक] जंगल में रहनेवाला, आढविअ (मंगल २३, चेइय १४८) । जैन मुनि, 'पाजीरणो य गीग्रो' (संथा ६७)। जंगली (स १२१)। आढप्प देखो आढव । आजीव । [आजीव] १ आजीविका, आडह सक [आ + दह ] चारों ओर से आढय देखो आढग (महा ठा ३, १)V आजीवग जीवन निर्वाह का उपायः 'भाजी- जलाना । पाडहइ (पि २२२, २२३)। प्राड आढव सक [आ + रम् ] प्रारंभ करना, वमेयं तु प्रबुज्जमाणो पुणो पुरणो पिप्परियाहंति (पि २२२, २२३)। शुरू करना। प्राढवइ (हे ४, १५५, धम्म सूति' (सूम)। २ जैन साधु के लिए भिक्षा आडह सक [आ + धा] स्थापन करना, २२)। कर्म. पाढप्पइ, माढवीभइ (हे ४, का एक दोष-गृहस्थ को अपनी जाति, कुल | नियुक करना। आडहइ। संकृ. आडहेत्ता २५४)। मादि की समानता बतलाकर उससे भिक्षा | (ोप)। आढा सक [आ + ह] पादर करना, ग्रहण करना (ठा ३, ४)। ३ गोशालक मत | आडाडा स्त्री [दे] बलात्कार, जबरदस्ती (दे मानना । माढाइ (उवा)। वकृ. आढामाण, का अनुयायी साधु (पत)। ४ धन का समूह | १,६४) आढायमाण (पि ५०० प्राचा)। कवकृ. (सूम)/ आडासेतीय पुं[आडासेतीक] पक्षि-विशेष आइज्जमाण (प्राचा)। आजीवग पु [आजीवक] १ धन का गर्व पिण्ड आढा स्त्री [आदर] संमान (पव २-गाथा (सूप) । २ सकल जीव (जीव ३ टी)। देखो | आडि स्त्री [आटि] १ पक्षि-विशेष। २ मत्स्य १५५: संबोध ५५) IV आढिअ वि [आहत ] सत्कृत, सम्मानित आजीवय ।। विशेष (दे ८, २४) । (हे १, १४३) आजीवण न [आजीवन] १ आजीविका, आडियत्तिय पुं [दे] शिविका-वाहक पुरुष | आढिअ वि [दे] १ इष्ट, अभीष्ट । २ गणनीय, जीवन-निर्वाह का उपाय । २ जैन साधु के | (?) (स ५३७; ५४१)IV माननीय । ३ अप्रमत्त, उद्यक्त। ४ गाढ़, लिए भिक्षा का एक दोष (वव) निबिड (द १,७४)। आडुआल सक [दे] मिश्र करना, मिलाना। आजीवणा स्त्री [आजीवना] ऊपर देखो | (दंस; जीत)। आण सक [ज्ञा] जानना, 'किंव न पाणह आडुपालइ (दे १, ६६)। आजीवय देखो आजीवगः 'पाजीवयदिट्टतेणं आडुआलि पुं[दे] मिश्रता, मिलावट (दे १, एअं' (से १३, ३)। प्राणसि (से १५, २८); 'अमिमं पाइप्रकव्वं पढिउं सोउं च जे ण चउरासीतिजातिकुलकोडीजोरिणपमुहसयसहस्सा आडोय देखो आडोवाटोप (सुपा २६२)। आति' (गा २) । आणे (अभि १९७) भवंतीतिमक्खाया' (जीव ३)। आडोलिय वि [दे] रुद्ध, रोका हुआ (णाया आण सक [आ + णी] लाना, पानयन आजीविय वि [आजीविक] गोशालक के करना, ले पाना । पाणइ (पि १७; भवि) । मत का अनुयायी (पएण २०० उवा)। आडोव सक [आ + टोपय् ] १ आडंबर वकृ. आणमाणे (णाया १, १६)। हेकृ. आजीविया स्त्री [आजीविका] १ निर्वाह करना। २ पवन द्वारा फूलाना। प्राडोवेइ आणिवि (अप) (भवि) । (आव)। २ जैन साधु के लिए भिक्षा का एक (भग) । संकृ. आडोवेत्ता (भग)। आण ' [आन] १ श्वासोच्छ्वास, सांस । दोष (उत्त)। आडोष पुं[आटोप] आडम्बर (उवा; सण)। २ श्वास के पुद्गल (पएण)। Jain Education International For Personal & Private Use Only wwwinelibrary.org
SR No.016080
Book TitlePaia Sadda Mahannavo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovinddas T Seth
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1986
Total Pages1010
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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