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पाइअसहमहण्णवो
अहिया-अहिवढिय अहिया स्त्री [अधिका] भगवान् श्रीनमिनाथ अहिरिअ देखो अहिरीअ (पिंड ६३१)। अहिलाव पुं[अभिलाप] शब्द, आवाज (ठा की प्रथम शिष्या (सम १५२) ।
अहिरीअ वि [अह्रीक निर्लज, बेशरम (हे २, २, ३)। अहियाइ देखो अहिजाब (षड्)।
१०४)।
| अहिलास पुं [अभिलाष] इच्छा, वाञ्छा, अहियाय देखो अहिजाय (पान)। अहिरीअ वि [दे] निस्तेज, फीका (दे १, | चाह (गउड)। अहियार पुंअभिचार शत्रु के वध के लिए | २७)।
अहिलासि वि [अभिलाषिन्] चाहनेवाला किया जाता मन्त्रादि-प्रयोग (गउड)। अहिरीमाण वि[दे. अहारिन्, अहीमनस्] (नाट)। अहियार देखो अहिगार (स ५४३; पाः | १ अमनोहर, मन को प्रतिकूल । २ अलजा- | अहिलिअ न [दे] १ पराभव। २ क्रोध, गुस्सा मुद्रा २६६ सट्ठि ७ टी भविः दे ७, ३२)। कारक, 'एगयरे अन्नयरे अभिन्नाय तितिक्ख- (दे १, ५७)। अहियारि देखो अहिगारि (दे ६, १०८)। माणे परिब्बए, जे य हिरी, जे य अहिरीमाणा' अहिलिह सक [अभि + लिख] १ चिन्ता अहियास सक [अधि + आस् , अधि+ (आचा १, ६, २)।
करना। २ लिखना । अहिलिहंति (मुद्रा सह ] सहन करना, कष्टों को शान्ति से | अहिरूव वि [अभिरूप] १ सुन्दर, मनोहर १०८)। संकृ, अहिलिहिअ (वेणी २५)। झेलना । अहियासइ, अहियासए, अहियासेइ | (अभि २११)। २ अनुरूप, योग्य (विक्र ३८)। | अहिलोयण न [अभिलोकन] ऊँचा स्थान (उव; महा)। कर्म. अहियासिज्जंति (भग)। | अहिरेम सक [] पूरा करना, पूर्ति करना। (पराह २, ४)। वकृ. अहियासेमाण (प्राचा)। संकृ. अहि- | अहिरेमइ (हे ४, १६६)।
अहिलोल वि [अभिलोल] चपल, चञ्चल यासित्ता, अहियासेत्तु (सूप १, ३, ४, अहिरोइअ वि [दे] पूर्ण ( षड्) । (गउड)। प्राचा) हेकृ. अहियासित्तए (प्राचा)। कृ. | अहिरोहण न [अधिरोहण] ऊपर चढ़ना, अहिलोहिआ स्त्री [अभिलोभिका] लोलुपता, अहियासियव्व (उप ५४३)। आरोहण (मा ४०)।
तृष्णा (से ३,४७)। अहियास वि [अध्यास, अधिसह] सहिष्णु | अहिरोहि वि [अधिरोहिन] ऊपर चढ़ने अहिल्ल वि [दे] धनवान्, धनी (दे १, १०)। (बृह १)। वाला (अभि १७०)।
अहिल्लिया स्त्री [अहिल्या] एक सती स्त्री अहियासण न [अध्यासन अधिसहन] अहिरोहिणी स्त्री [अधिरोहिणी] निःश्रेणी, | (पराह १, ४)। सहन करना (उप ५३६; स १६२)। सीढ़ी (दे ८, २६)।
अहिव [अधिप] १ ऊपरी, मुखिया (उप अहियासण न [अधिकाशन] अधिक भोजन, अहिल वि [अखिल] सकल, सब (गउडा । ७२८ टी)। २ मालिक, स्वामी (गउड)। अजीणं (ठा है)। रंभा)।
३ राजा, भुपः 'दुट्ठाहिवा दंडपरा हवंति' अहियासिय वि [अध्यासित, अधिषोढ]
अहिलंख , सक [कास चाहना, अभि- (गोय ८)।
अहिलंघलाष करना । अहिलंखइ, अहि- | अहिवइ वि [अधिपति] ऊपर देखो (गाया सहन किया हुअा (प्राचा)।
अहिलक्ख लंघइ (हे ४, १६२); 'अहिल- १,८ गउड; सुर ६, ६२)। अहिर पुं [आभीर] अहीर, गोवाला (गा
खंति मुअंति अरइवावारं विलासिणीहिअ- अहिवंजु देखो अहिमंजु (षड् )। ८११)। आई' (से १०, ५७)।
अहिवंदिय वि [अभिवन्दित] नमस्कृत (स अहिरम देखो अभिरम । वकृ. अहिरमत
अहिलक्ख वि [अभिलक्ष्य] अनुमान से | ६४१)। (समु १५४)।
जानने योग्य (गउड)। अहिरम अक [अभि + रम् ] क्रीड़ा करना,
अहिवज्जु देखो अहिमंजु (षड् )। संभोग करना । अहिरमदि (शौ) (नाट)। हेकृ.
अहिलय सक [ अभि + लप्] संभाषण | अहिवड अक [अधि+ पत् ] क्षीण होना । अभिरमिदं (शौ) (नाट)।
करना, कहना। कवकृ. अहिलप्पमाण (स | वकृ. 'एवं निस्सारे माणुसत्तणे जीविए अहिअहिरम्म वि [अभिरम्य] सुन्दर, मनोहर
वडते' (तंदु ३३)। अहिलस सक [अभि + लष्] अभिलाष (भवि)।
अहिवड सक[ अधि+पत् ] आना। वकृ. अहिराम वि [अभिराम] सुन्दर, मनोहर करना, चाहना। अहिलसइ (महा)। वकृ.
अहिवडंत (राज)। (पाप)। अहिलसंत (नाट)।
अहिवड्ढ देखो अभिवड्ढ अहिवड्ढामो अहिरामिण वि [अभिरामिन] आनन्द देने
अहिलसिय वि [अभिलषित] वाञ्छित (सुर (कप्प)। वाला (सण)। ४, २४८)।
अहिवढि स्त्री [अभिवृद्धि] उत्तर प्रोष्ठअहिराय अधिराज] १ राजा (बृह ३)। अहिलसिर वि [अभिलाषिन] अभिलाषी, | अहिवद्धि पदा नक्षत्र का अधिष्ठाता देवता २ स्वामी, पति (सण)।
(सुज १०, १२; जं ७-पत्र ४६८)। अहिराय न [अधिराज्य] राज्य, प्रभुत्व अहिलाण न [अभिलान] मुख का बन्धन अहिवड्ढिय वि [अभिवर्धित] बढ़ाया हुआ (सट्ठि ७)। विशेष (गाया १, १७)।
(स २४७)।
८४)।
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