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अवग-अवञ्चिज
पाइअसहमहण्णवो अवग पुन [दे. अवक] जल में होने वाली अवगरिस देखो अवक्करिस विसे (१५८३)। अवगृहण न [अवगूहन आलिंगन (सुर १४, वनस्पति-विशेष (सूत्र २, ३, १८)। । अवगल वि [दे] आक्रान्त ( षड् )। अवगइ स्त्री [अपगति] १ खराब गति । २ अवगल्ल वि [अवग्लान] बीमार (ठा २, ४)। अवगृहाविय वि [अवगृहित] प्राश्लेषित गोपनीय स्थान (सुपा ३४५) ।
अवगहण न [अवग्रहण] निश्चय, अवधारण | (स ६६६)। अवगंड न [अवगण्ड] १ सुवर्ण। २ पानी | | (पव २७३)।
अवग्ग वि [अव्यक्त] १ अस्पष्ट । २ पृ. का फेन (सूम १, ६)।
अवगाढ देखो ओगाढ (ठा १; भगः स १७२)। अगीतार्थ, शास्त्रानभिज्ञ साधु (उप ८७४) । अवगंतव्य देखो अवगम = अवगम् । अवगादु वि [अवगाहित] अवगाहन करने
अवग्गह देखो उग्गह (पव ३०)। अवगच्छ सक [अव + गम् ] जानना । वाला (विसे २८२२)।
अवग्गहण न [अवग्रहण] देखो उग्गह (विसे अवगच्छइ (महा) । अवगच्छे (स १५२) । अवगार पुं [अपकार] अपकार, अहित-करण
१८०)। अवगच्छ अक [अप + गम् ] दूर होना, (सुर २, ४३)।
अवच देखो अवय = अवच (भग)। निकल जाना । अवगच्छइ (महा)। | अवगारय वि [अपकारक] अपकार-कारक
अवच इय वि [अपचयिक] अपकर्षप्राप्त, (स ६६०)। अवगण ) सक [अत्र+गणय अनादर अवगण करना, तिरस्कारना। वकृ. अबअवगारि वि [अपकारिन्] ऊपर देखो (स
ह्रासवाला (प्राचा)।
अवचय पुं[अपचय ह्रास, अपकर्ष (भग गणंत (श्रा २७)। संकृ. अवगणिय अवगास पुं [अवकाश] १ फुरसत (महा)।
११, ११ स २८२)। (पारा १०५)। अवगणणा स्त्री [अवगणना] अवज्ञा, अनादर २ जगह, स्थान (प्रावम)। ३ अवस्थान, अब
अवचय पुं [अवचय] इकट्ठा करना (कुमा)।
अवचयण न [अवचयन] ऊपर देखो (दे ३, (दे १, २७)।
स्थिति (ठा ४, ३)। अवगणिय ) बि [अवगणित] अवज्ञात, अवगाह सक [अब + गाह. ] अवगाहन अवगणिय) तिरस्कृत (दे; जीव १)। करना । अवगाहइ (सरण)।
अवचि प्रक [अप + चि हीन होना, कम अवगद वि [दे] विस्तीर्ण, विशाल (दे १, | अवगाह पुं [अवगाह] १ अवगाहन । २ जाना । अवचिजइ (भग)। अवचिजंति (भग अवकाश (उत्त २८)।
२५, २)। अवगन्न देखो अवगण । अवगन्नइ (भवि)।।
अवगाहण न [अवगाहन] अवगाहन, 'तित्था- | अवचि ।सक [अव+चि] इकट्ठा करना संकृ. अवन्निवि (भवि)।
वगाहणत्थं आगंतव्वं तए तत्थ (सुपा ५६३)। | अवचिण )(फूल आदि को वृक्ष से तोड अवगाहणा देखो ओगाहणा (ठा ४, ३, विसे
__ कर)। अवचिणइ (नाट)। भवि. अवचिणिस्स अवगन्निय देखो अवगणिय (सुपा ४२१; | २०८८)।
(पि ५३१)। हेकृ. अवचिणेदुं (शौ) (पि भवि)। अवगम
६०२)। अवगिंचण न [दे. अववेचन] पृथक्करण (उप [अपगम] १ अपसरण (सुपा ३०२) । २ विनाश (स १५३; विसे ११८२)। पृ६६)।
अवचिय वि [अवचित] हीन, ह्रासप्राप्त अवगिज्म देखो ओगिज्झ। संकृ. अव- (विसे ८६७)। अवगम सक [अव + गम्] १ जानना । २ | गिझिय (कप्प)।
अवचिय वि [अपचित] इकट्ठा किया हुआ निर्णय करना। संकृ. अवगमित्तु (सार्ध
अवगीय वि [अवगीत] निन्दित (उप पृ (पान)। ६३) । कृ. अवगंतव्व (स ५२६) । १८१)।
अवचुण्णिय वि [अवचूर्णित] तोड़ा हुआ, अवगम पुं [अवगम] १ ज्ञान । २ निर्णय, अवगुंठण देखो अवउंठण (दे १, ६)। चूर-चूर किया हुआ (महा)। निश्चय (विसे १८०)।
अवगुंठिय वि [अवगुण्ठित] प्राच्छादित अवचुल्ल पुं[अवचुल्ल] चूल्हे का पीछला भाग अवगमण न [अवगमन] ऊपर देखो (स | (महा)।
(पिंडभा ३४)। ६७०, विसे १८६, ४०१)।
अवगुण पुं अवगुण] दुगुण, दोष (हे ४, अवचल देखो ओऊल (णाया १, १६, पत्र अवगमिअवि [अवगत] १ ज्ञात, विदित ३६५)।
२१६)। अवगय (सुपा २१८)।२ निश्चित अव- अवगुण सक [अव+गुणय ] खोलना, | अवच्च वि [अवाच्या १ बोलने के प्रयोग्य । धारित (दे ३, २३; स १४०)।
उद्घाटन करना। अवगुणेजा (माचा २, २, २ बोलने के अशक्य (धर्मसं ६६८)। अवगय वि [अपगत] गुजरा हुआ, विनष्ट २, ४) । अवगुणंति (भग १५)।
अवञ्च न [अपत्य संतान, बच्चा (कप्प; पाव (णाया १, १; दस १०, १६)।
अवगूढ वि [अवगूढ] १ प्रालिंगित (हे २, १; प्रासू ८३)। व वि [वत् ] संतानअवगर सक [अप+कृ] अपकार करना, १६८)। २ व्याप्त (गाया १,८)।
वाला (सुपा १०६)। अहित करना । अवगरेइ (स ६३६)। अवगूढ न [दे] व्यलीक, अपराध (दे १,२०)। अवचिज देखो अवचीय (सूपनि २०५) ।
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