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________________ अरूवि - अलय विवि [अरूपिन ] ऊपर देखो (ठा १, ३; श्राचा; पण १ ) । अरे [ अरे] १-२ संभाषण और रतिकलह का सूचक अव्यय ( हे २,२०१; षड् ) । अरे [अ] इन धर्मो का सूचक अव्यय१ आक्षेप २ विस्मय भाश्च ठट्ठा ( संक्षि ३८, ४७ ) । अरोअ क [ उत् + लस् ] उल्लास पाना, विकसित होना । श्ररोइ (हे ४, २०२३ कुमा) । अरोअअ [अरोचक] रोग-विशेष, अन्न की (२२) । परिहास, अ [ अरोचिन् ] प्ररुचि वाला, रुचिरहित; 'अरोइ प्रत्थे कहिए विलावो' (गोय ७) । अरोग a [ अरोग] रोगरहित (भग १८, १) । या स्त्री [" ता] श्रारोग्य, नीरोगता ( उप ७२८ टी ) । अरोगि वि [अरोगिन् ] नोरोग, रोग-रहित । "या स्त्री [ता ] श्रारोग्य, तंदुरुस्ती (महा) । अरोमा ) देखो यारोपधारोग्य (घाचा २, अरोय १५, २) । अरोस व [अरोष ] १ गुस्सा रहित । २-३ वृं. एक म्लेच्छ देश मीर उसमें रहनेवाली म्लेच्छ जाति ( प ह १, १) । अन [अ] १ बिच्छू के पुच्छ का अग्र भाग, ‘अलमेव विच्छुत्राणं, मुहमेव अहीर तह य मंदस्स । दिट्टि बियं पिसुरणाएं, सव्वं सव्वस्स भय जाय' (१९) । २ अलावे का एक सिहासन ( छाया २ ) । ३ वि. समर्थ (श्राचा) । 'पट्ट न [पट्ट] बिच्छू की पूंछ जैसे प्राकारवाला एक शस्त्र (विया १, ६) । "अल देखी तल (गा ७५ से १७८) अलं [ अम् ] १ पर्याप्त, पूर्णं; 'अलमाजती (सुर १३, २१) । २ प्रतिषेध, निवारण, बस ( उप २, ७) । अम [ अम् ] घर भूषा (मनि २०२) । १० Jain Education International पाइअसहमणवो अलंकर सक [अलं + कृ] भूषित करना, विराजित करना । श्रलंकरेंति (पि ५०९ ) । वक. अलंकरंत ( माल १४३ ) । संकृ. अलंकरिज (पि ५०१) पी. कर्म करा वी ( स ६४ ) । अलंकरण न [अलङ्करण] २ आभूषण, प कार ( रयण ७४, भवि ) । २ वि. शोभाकारक, 'मज्झमलोग्रस्स श्रलंकरण सुलोअरिंग' (चिक १४) । अलंकार २ [अ] सुशोभित, विभूषितः 'कि नयरमलं करियं जम्ममहेां तए महापुरिस ।' (सुपा ५८४ सुर ४, ११८ ) | अलंकार पुं [अलङ्कार ] १ शास्त्र - विशेष, साहित्यशास्त्र (सिरि ५५; सिक्खा २ ) । न. एक विमान (रेन्द्र १३५) । अलंकार पुं [अलंकार ] १ भूषण, गहना ( श्रपः राय ) । २ भूषा, शोभा (ठा ४, ४) । "सहा श्री [सभा] [भूषा- जार-घर भूषा-गृह, शृङ्गार-घर (इक) 1 अलंकारिय पुं [अलंकारिक ] नापित, नाई, हजाम (गाया १, १३) । कम्म न ["कर्मन] हजामत क्षीर कर्म (सामा १, १२) सहा श्री [["सभा ] हजामत बनाने का स्थान (गाया १, १३) । अयि [अ] विभूषित, सुशोवि १ भित (कप्प महा ) । २ न. संगीत का एक गुरा (३) । अलंकुण देखो अलंकर । अलंकुरांति ( रयर‍ ५२) । अलंच व [अध्य] १ उल्लंघन करने के अयोग्य (सुर १, ४१) । २ उल्लंघन करने के अशक्य (उप ५६७ टी) । अलंघणिय ) वि [अलङ्घनीय] ऊपर देखो अलंघणीय ) (महा, सुपा ६०१; पि ९६; नाट)। अलंप [] मुर्गा (दे १, १२) । अलबुसा स्त्री [अलम्बुषा] १ एक दिक्कुमारी देवी का नाम । (ठा ८ ) । २ गुल्म- विशेष । (चाय)। अलंभि स्त्री [अलाभ ] प्रप्राप्ति (श्रौष २३३ भा) । अल्का श्री [अलका] नगरी- विशेष पहले For Personal & Private Use Only ७३ प्रतिवायुदेव की राजधानी (उम २० २०१) । देखो अलया । अलक्ख पुं [अलक्ष] १ इस नाम का एक राजा, जिसने भगवान् महावीर के पास दीक्षा लेकर मुक्ति पाई थी (अंतु १८) । २ न. 'अंतगडदसा' सूत्र के एक अध्ययन का नाम । (पंत १८ ) । अलक्ख वि [अलक्ष्य ] लक्ष्य में न श्रा सके ऐसा (सुर १, १३६ महा) । अलमसमान नि [अलक्ष्यमाण ] जो पहि चाना न जा सकता हो, गुप्त (उप ५६३ टी) 1 अलक्खिय [अलक्षित] अशात अपरिचित । (से १३, ४५) । २ न पहचाना हुआ । (सुर ४ १४० ) । अलग देखो अलय = अलक (महा) । अलगा देखो अलया ( अंत १) । अलग्ग न [दे] कलंक देना, दोष का झूठा भारोप (दे १. ११)। अलचपुर (जुमा) | अलज व [अस] निर्लज, बेशरम (पराह १,२) । अलजिर वि [अलजालु] ऊपर देखो (गा न [अचलपुर ] कार-विशेष ०; ४४५; ६६१; महा) । अपाउन] [] पार्थ का परिवर्तन (दे १,४८) । अन्त [अलफ] घालता, जियाँ हाथपैर को लाल करने के लिए जो रंग लगाती हैं वह (धनु) । [अलक्तक] १ ऊपर देखो। घालता से रंगा हुआ अन्तय (मुपा ४०६) (धनु) । 'अलधोय देखो कलधोय (से ६, ४६) । अलमंजुल वि [दे] श्रालसी, सुस्त (१, ४६) । अलमंथु वि [ अलमस्तु ] १ समर्थं । २ निषेधक, निवारक । (ठा ४, २) । अलमल पुं [दे] दुर्दान्त बैल (दे १,२५) । अलमलवसह पुं [दे] उन्मत्त बैल (दे १, २५) । अलय न [दे] विद्रुम, प्रवाल (दे १, १६; भवि ) । www.jainelibrary.org
SR No.016080
Book TitlePaia Sadda Mahannavo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovinddas T Seth
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1986
Total Pages1010
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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