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________________ तृतीय भागमां " टथी प" चतुर्थ मागमां 'फथी व" पंचम भागमां "शथी ह" तेमज परिशिष्ट पहेलु अवशिष्ट शब्दो परिशिष्ट बीजु देशीनाममालाना शब्दोनुं आ ते आग्रन्थ पांच भागमा पूर्ण थाय छे आ "श्रीअल्पपरिचित सैद्धान्तिक शब्दकोष" मां ११ अंगो, १२ उपांगो, ३ छेदसूत्रों (बृहत्कल्प, व्यवहार अने निशीथसूत्र ) ४ मूलसूत्रो, १ नंदी, १ अनुयोगद्वार १ ओर्घनियुक्ति, १ विशेषावश्यक अने दशवेकालिकचूर्ण, विगेरेना शब्दोनो संग्रह करवामां आवेल छे तेमज श्रीदशाश्रुतस्कंध - श्रीदशप्रकीर्णक- पउमचरियं - उपदेशमाला अने तत्त्वार्थसूत्रना केटलाक शब्दो पण लेवामां आवेला छे. आ रीते आ ग्रन्थ पांचभागमां सर्वांग सुंदर बनेल छे. आ ग्रन्थमां कोइ जग्याए विभक्तिसहित के विभक्तिरहित अपायेल शब्दो माटेनी योग्य विगतो प्रथमभागनी प्रस्तावनाथी जाणी लेवी, कोइ ठेकाणे एवु पण बन्युं छे के शब्दोनी तथा शब्दना अर्थोनी शैलीमां थोडी अव्यवस्था थयेल छे. छतां पाछलथी अनुभव थतां, ते दरेक बाबतमां यथोचित व्यवस्थितता साचववा माटे कालजी पूर्वक प्रयत्न करायल छे. प्रान्ते एटलु जणाववानु के समवसरणमा बिराजी बार पर्षदा समक्ष देशना अमृतने बरसावता श्रीजिनेश्वर भगवंतना मुखकमलथी नीकलती वाणी श्रवण करी श्रीगणधर भगवंतोए श्रीद्वादशांगीनी रचना करी, एटले के द्वादशांगीना रचयिता गणधर भगवंत छे. एम आगम शास्त्रोमांथी शब्दोनी तारवणी करी तेना व्यवस्थित बोध माटे संकलना करनार श्री आगमतत्त्व पारदश्री आगमोद्धारक प० पू० आचार्य भगवंतश्री छे. अने ए पूज्यश्रीनी संकलनाने अकरादिक्रमबद्ध गोठवी व्यवस्थित करनार पू० विद्वद्वर्य मुनिवरो छे. आम आ ग्रन्थमां त्रिवेणीनो सुन्दर संगम थयेलो जोवा मले छे. जेथी आ ग्रन्थ पूर्ण महत्त्वने प्राप्त करे छे. अने विद्वद्भोग्य बने छे । शासनना मुनिवरो वगेरे माटे आ ग्रन्थ भोमियाजी गरज सरनार वनशे. पू० मुनिवरादि पठन पाठनादि द्वारा आ ग्रन्थनो वधु ने वधु उपयोग करी स्व- पर कल्याण साधक बने एज एकज शुभाभिलाषा. "गच्छतः स्खलनं” पंक्ति अनुसार छस्थता, मुद्रणादि कारणे पाठकोने खास विनंति के - आमां रहेल क्षतिओ जो जणावशो तो पुनः आपथमां आवशे. सुधीना शब्दो सुधोना शब्दो वि० सं० २०३४ अ० शु० ६ श्री महावीर स्वामिच्यवनकल्याणक दिने, ओपेरा सोसायटी, जैनउपाश्रय पालडी, अमदावाद ३८०००७ Jain Education International प्रस्तावना अंगे खास विनम्रभावे जणाववानु के प्रस्तावना लखवा बाबतमां मारो अनुभव नहीवत् होवा छतां ननसारी चातुर्मास बाद बिलिमोरामां महोत्सव प्रसंगे प० पू० पं० श्रीकंचनसागरजी म० तथा मुनिश्री - प्रमोदसागरजी म० नु सुभगमिलन थतां तेओश्रीए आग्रंथनी प्रस्तावना अंगेनु कार्यमने सुपरत कयुं - पूज्यश्रीनो आग्रह तथा मारा पू० गुरुदेव श्रीनी आज्ञा मलतां आ प्रस्तावनानु' आलेखन कयुं छे. प्रथम प्रयास होवाथी, थयेल क्षति बदल क्षमायाचना साथे जिनाज्ञा विरुद्ध लखायुं होय ते बदल "मिच्छामि दुक्कडं" पुरस्सर आ प्रस्तावना समाप्त करु' छु . लि ( ११ ) थयेल क्षतिओ बदल क्षमायाचना पूर्वक मुद्रणादि अवसरे ते उपर जरूर ध्यान परमशासन प्रभावक स्व० पू० आचार्यदेव श्रीचन्द्रसागरसूरिवर्य पट्टधर परमाराध्य चरणाम्बुज परमतारक गुरुदेव श्रीमदाचार्य प्रवर श्रीदेवेन्द्रसागरसूरिवर्य For Private & Personal Use Only पादपद्म नरदेव सागर www.jainelibrary.org
SR No.016078
Book TitleAlpaparichit Siddhantik Shabdakosha Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Sagaranandsuri
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1979
Total Pages316
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationDictionary, Dictionary, & agam_dictionary
File Size20 MB
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