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________________ णमोऽथुणं समणस्स भगवो महावीरस्स गुणैकगेहं भविकाब्जबोध-दिवाकर शासननायकं च । श्रीवीरदेवं प्रणमामि चन्द्र-कीर्ति सुरेन्द्राय॑ममोहमायम् ॥१॥ परमतारक,-शासनपति-चरमतीर्थनायकश्रीमहावीर परमात्माए स्वपुरुषार्थबले कैवल्यज्ञान प्राप्त करीने देवरचितसमवसरणमा बिराजी सर्वत्यागप्रधानदेशना आपो. जे सांभलीने श्रीइन्द्रभूति विगेरे ब्राह्मणोए परमात्मा द्वारा पोत गेताना सशयोनु निवारण थतां संयमनो स्वीकार कर्यो. संयम मार्ग स्वीकार्याबाद परमात्माने त्रण प्रदक्षिणा देवा पूर्वक नमस्कार करीने "भयवं किं तत्तं" ? एम त्रण वार प्रश्न करतां विनयावनत श्रीइन्द्रभूति आदिने प्रभुए "उप्पन्ने इ वा” “विगमे इ वा" "धुवे इ वा" आ प्रण पद समर्पण काँ. बीजबुद्धिना स्वामी श्रीइन्द्रभूति आदि अगीयारे आ त्रिपदी पामीने श्रीजनशासनना बंधारणभूत परम तत्त्वस्वरूप श्रीद्वादशांगीनी रचना करी, त्यारवाद परमात्माए तेमना मस्तक उपर दिव्यवासक्षेप करवा पूर्वक तीर्थनी अनुज्ञा करी अने गणधरपदे प्रतिष्ठित कर्या. आथी तेमनी रचना सर्वमान्य बनी. गुरु निथाये द्वादशांगी आगमनु अध्ययन करी श्रमण भगवंतो स्वजीवनने धन्य बनाववा लाग्या. परंतु अवसर्पिणी कालना प्रभाव क्षयोपशममान्धता, दुष्काल आदि कारणोए द्रष्टिवादान्तर्गत पूर्वगतजाननो धीरे धीरे करतां सपूर्णतया हास थतां दृष्टिवादनो संपूर्ण नाश थयो. आधी अवशिष्ट आगमसाहित्यने सुरक्षित बनाववा पूर्वना महापुरुषो श्रीजिनभद्रगणीक्षमाश्रमण, स्कंदिलाचार्य, देवद्धिगणीक्षमाश्रमण आदि तेमज सूरपुरदरश्रीहरि भद्रसूरिजी कलिकालसर्वज्ञश्रीहेमचन्द्राचार्यजी आदिए कम्मर कसी. वली आगमशास्त्रना बोध माटे आगमो उपर नियुक्ति-भाष्य - चूणि-टीका-अवचूरि विगेरे रचनाओ पण थइ हती. त्यारग्छी ते समये उपलब्ध ताडपत्र विगेरे उपर लहिआओ आदि द्वारा श्रीदेवदिगणीक्षमाश्रमण विगेरे सधे लखी लखावी आगमोना क्षण माडे भगीरथ पुरुषार्थ करी अपणा उपर महान उपकार कर्यो छे. जो आगमन होत तो आपणु श्रेयः कवी रीते थात ! विषमकालमां परमतारक 'जिनप्रतिमा अने जिन-आगम' बेज छे. परंतु विषमकालमा वीसमी सदीना पूर्वार्धमा आगम अध्ययन माटेनी प्रतिमो दुर्लम बनी. तेमज आगमशास्त्रानु अध्ययन पण नहिवत् थयु, ते समये शासनना पुण्यप्रभावे जिनशामना आकाशमां तेजस्वी सूर्यसमान-आगमदिवाकर-गीतार्थसार्वभौम-आगमोद्धारक ध्यानस्थस्वर्गत सूरिप्रवर-श्रीआनंदसागरसूरीश्वरजीमहाराजश्रीए स्वपुरुषार्थ बले दुर्लभ आगमप्रति प्राप्त करी तेनु सशोधन कयु. श्रमण भगवंतोने आगमनी प्रतिओ सुपाप्य बने तथा आगमनो बोध सुलभ बने ए पुण्यपवित्र आशयथी "श्रीआगमोदयसमिति" नी स्थापना करारी. श्रीआगमशास्त्रोने मुद्रित कराववाना भगीरथ कार्यनो प्रारंभ कर्यो. जेम जेम आगमो छाता गया तेम तेम मनिभगवंतो आगमज्ञानना अभ्यासी बने ते हेतथी सात सात स्थले सवार बपोर आगम बाचना आपी. श्रमण भगवतो उपर महान उपकार कर्यो, ए एक अनिर्वाच्य सत्य छे. वली आगमना अमूल्यवारसाने चिरकाल सुरक्षित बनाववाना परम शुभ आशयथी श्रीसिद्धक्षेत्रनी जयतलाटीना तलीये पालीताणा नगरे श्रीशीलोत्कीर्ण आगममन्दिर तथा श्रीसूर्यपुरमा श्रीताम्रपत्रोत्कीर्ण आगममदिरनी स्थापना करावी. शीलाओमा आगमो कोरववा मुद्रणनी आवश्यकता आवी ते मुद्रण वखते ३०४१७ ना मोटा लेजर पेपरमां पण आगमो मूल छपाव्या. आथी ते आगममंजूषा थई, ए रीते आगमोने चिर स्थाइ बनाम्या, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016078
Book TitleAlpaparichit Siddhantik Shabdakosha Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Sagaranandsuri
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1979
Total Pages316
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationDictionary, Dictionary, & agam_dictionary
File Size20 MB
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