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________________ [१२] आपवा प० ता० आगमोद्धारकगुरुदेवश्रीना एकैव पट्टधर, श्रुतवारिधि, शास्त्रतत्त्वदर्शी, श्रीगच्छनायक, आचार्यश्रीमाणिक्यसागरसूरीश्वरजी महाराजे कृपा करी हती. ए रीते संपादननु कार्य चालतु हतु, तेमां प्रथम भागनु पंदर आनी काम थई गया पछी सूरतथी दक्षिण तरफ बिहार थवाना कारणे अने प्रेस आदिना प्रतिकूल संयोगोमां अमारी अनिच्छाए पण नहि जेवा कार्यमां वर्षोनां वर्षों वीती गया बाद आजे आ श्रीअल्पपरिचितसैद्धान्तिकशब्दकोषनो 'प्रथम भाग' विद्वानोना करकमलमां उपस्थित करी शक्या छीए. आ प्रथम भागमा 'सम्पूर्ण स्वरो' आपवामां आवेला छे. स्वरोमां तेमज बीजा रही गयेला 'शब्दो' तथा देशीनाममालाना शब्दो श्रीअल्पपरिचितसैद्धान्तिकशब्दकोष पूर्ण थतां 'परिशिष्ट' तरीके आपवा विचार छे. ५० पू० आगमवाचनादाता, देवसूरतपागच्छसामाचारीसंरक्षणकटिबद्ध, अनेकग्रन्थोना प्रणेता, वादीमानमर्दक, चरमशासनपति महावीर परमात्माना शासनमा आगममंदिरोना संस्थापक, जैनआनन्दपुस्तकालयादि संस्थाना संस्थापक, सैलानानरेशप्रतिबोधक, युगप्रधानसदृश, वर्तमान श्रुतना ज्ञाता, स्वआराधनार्थे आराधनामार्गकरनारा, मौनपणे रही अर्धपद्मासने स्वर्गे संचरनार, प० पू० आगमोद्धारक आचार्यवर्यश्रीआनन्दसागरसूरीश्वरजी महाराजनी पुनित सेवाना प्रतापे जे कई बोध शक्ति मेलवेल छे, ते आधारे अमे अमारी बुद्धि केवलीने कालजीपूर्वक आ श्रीअल्पपरिचितसैद्धान्तिक शब्दकोषनु संपादन कयु छे. मुनिराज श्रीअभयसागरजी महाराजे संजोग मलतां आमां मार्ग बताव्यो छे. तेओत्रीने तेमज प्रो० हीरालाल र० कापडियाने पण हमे अत्रे भूलता नथी. आमां जे अशुद्धिओ जणाई छे तेनु शुद्धिकरण पण आप्युछे, छतां विद्वजनो प्रति अमारी प्रार्थना छे. के क्षति देखाय तो जगाववा उदारता दाखवे. वीर सं० २८८०, वि० सं० २०१० जेष्ठ पूर्णिमा हींगनघाट ( मध्यप्रदेश) आगमोद्धारकउपसंपदाप्राप्त शिष्याणु कंचनविजय तथा आगमोद्धारक शिष्यलव क्षेमकरसागर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016076
Book TitleAlpaparichit Siddhantik Shabdakosha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Sagaranandsuri
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1969
Total Pages334
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationDictionary, Dictionary, & agam_dictionary
File Size21 MB
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