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________________ [१०] छपाववा माटे प्रबंध को. तेमज अमने संपादन माटे विज्ञप्ति करी. तेथी अमे आ संपादनk कार्य शरू कयु. साथे साथ मेटर पण तैयार करवा मांडयु सम्पादन पद्धति-दरेक दरेक शब्द ते ते आगमनी साथे मेलववो अने तेमां जणावेल अर्थ मेलवी लेवो. ते रीते कार्य करतां केटलाक आगमोना अंगे शब्दोना प्रश्नो उभा थया. तेमां श्रीव्यवहारसूत्र ना त्रीजा उद्देशाना शब्दो हता पण ते सिवायना बाकीना उद्देशाना शब्दो न हता. तेथी प० ता० आगमोद्धारकगुरुदेवश्रीए व्यवहारनी आखी प्रतमां निशानो करी आप्यां आथी तेनी कापलीओ उतारी तेना शब्दोनो उमेरो कर्यो. आगल जतां बीजा पण आगमोना शब्दो नथी एम देखायु, तेनी तपास करतां नंदी, अंतगड, अणुत्तरोववाइय, उपासकदसा, रायपसेणीय अने निरया वलिना शब्दो न हता. तेथी तेना शब्दो पण उतार्या. अने ते शब्दो धीरे धीरे मेलववामां आव्या. आगल चालतां नायाधम्मकहाना शब्दो बिलकुल नथी एम मालम पडयु. नायाधम्मकहानी प्रत तो प० ता० आगमोद्धारकगुरुदेवश्रीनी निशानवाली प्राप्त न थई. तेमज जे समये शब्दो नथी तेवी शंका थई ते समये तो अमारू पुण्य पण न हतु के पू० गुरुदेवश्री 'विद्यमान' होय, आथी अमे अमारी मंदमति अनुसारे आ आगमनी सटीक प्रतमां निशानो कों, शब्दो तारख्या अने ते तारवेला शब्दोने कोषमां स्थान आप्यु. आ अ० सै० श० मां अग्यार अंग ११ बार उपांग, त्रण ( बृहत्कल्प, व्यवहार अने निशीथ ) छेदसूत्र, चारमूल, ओघनियुक्ति, विशेषावश्यक, नंदी, अनुयोगद्वार अने दशवैकालिकचूर्णीना शब्दोनो संग्रह करवामां आवेल छे. तेमज दशाश्रुतस्कंध, दशप्रकीर्णक, पउमचरिय, उपदेशमाला अने तत्त्वार्थसूत्रना केटलाक शब्दो पण लेवामां आवेल छे. संज्ञापत्रक-अ० सै० श० मा जे शब्दोनो संग्रह करवामां आव्यो छे अने तेमां आगमो शास्त्रो वगेरेनी जे संज्ञाओ आपवामां आवेली छे, ते संज्ञाओना स्पष्टीकरण माटे तेमज लीधेली प्रत-टीका वगेरे शेनी छे ते जणाववा अने तेना संपादक तथा प्रकाशक जगाववा एक संज्ञापत्रक नामथी प्रकरण राख्यु छे. तेमज बीजी बीजी प्रतोनी साथे पण शब्दो मेलववानुशक्य बने ते उद्देशथी पत्रांकसूची नामथी एक प्रकरण आप्यु छे. वर्णक्रम-अ० सै० श० मां अनुस्वारने पहेलु स्थान आपवामां आव्यु छे. कारण के शरूआतमां प० ता० आगमोद्धारकगुरुदेवश्रीए आ रीते शरू करवानुजगाव्यु हतु. आथी ए पद्धति कायम राखी छे. पण आनो हेतु हमे जाणी शक्या नथी, तेथी अत्रे हेतु आप्यो नथी. विद्वज्जनो प्रत्ये-सुज्ञ विद्वज्जनो ? अमो गुर्जर भाषाना संपादनना कार्यमा अनुभव मेलवतां संपादनमा आगल वध्या छीए. ते रीते संस्कृत अने प्राकृतना संपादनमा प्रवेश करता थया. एवा समयमा प० ता० गुरुदेवश्रीनी सेवाना प्रतापे अमने 'अ० सै० श.' नुसंपादन......"मलयु आथी अमे ते कार्यमां रस लीधो ने संपादन कार्य शरु कयु. आथी पंडितोनी अपेक्षाए के विद्वानोनी अपेक्षाए अमारा आ संपादनना अंगे जे सूचनाओ करवी उचित छे ते अमे विद्वज्जनोनी समक्ष रजू करिए छीए. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016076
Book TitleAlpaparichit Siddhantik Shabdakosha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Sagaranandsuri
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1969
Total Pages334
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationDictionary, Dictionary, & agam_dictionary
File Size21 MB
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