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________________ आगमोनुं मुद्रण-याचना-आ कलिकालमा विक्रमनी वीसमो सदीमां एवो पण एक समय आव्यो के ज्यां शास्त्रीय बोघ ओछो थवा लाग्यो अने हस्तलिखित प्रतो वांचवानी तेमज वांचवा माटे प्रतो मेळववानी पण मुश्केलीओ ऊभी थई. आथी जो लखाण छापेलु मळी जाय अने तेनो जो बोध अपाय तो ते हितावह निवडे. आ हेतुथी आगमो छपाववा अने तेनी वाचनाओ आपकी एम प. पू. आगमोद्धारकगुरूदेवश्रीनी प्रेरणाथी नक्की थयु. अने संपादननुं कार्य अने वाचनानुं कार्य आगमज्योतिर्थर, अप्रमादी. आगमोद्धारकश्रीने ज कर गर्नु थयु. आधी जेम जेम आगभो छपाता तेम तेम पाटण५ आदि स्थलोए 'वाचनाओ' अपाई अने तेनो सेंकडो साधुसाध्वीओए लाभ लीघो. आगमो रूपी सागर अने तेमां आवता विषयो पण ए सागरना उपसागरो जेवा छे. परंतु ते अखात रूपे छूटा छूटा पडया होय तो उपसागर रूपे देखाय, तेथी ते बधा प्रवाहो एकत्र करी जुदा जुदा उपसागरो बनाववा. आ मुद्दाप जेम आगमो छपाता गया तेम तेम वर्तमान श्रुतना शाता आगमोद्धारकगुरुदेवश्रीए आगमोमां जुदा जुदा विपयोने जणावनारा त्रेपन (५३) अंको पाड्या अने 'शब्दकोष' माटेना शब्दो अंगे पण 'फूल'नुं एक निशान कयु. ए निशानो एवां हतां के-अंकोमा क्या शब्दथी क्यां सुधीनो भाग लेवानो छे ते जणाववा माटे आदिमां अने अंतम निशाननी साथे अंक मूकवामां आवतो हतो. ज्यारे आ कोषना शब्दोने अंगे फूलनु निशान मूरवामां आवतुं हतं. तेमां पण खूबी करवामां आवती हती के जो शब्द एक अक्षरनो होय तो एकनी नीचे, बेनो होय तो बेनी वच्चे, यावत् जेटला अक्षरनो होय तेना मध्य बिन्दुए निशान मूकवामां आवतुं हतुं आवी रीते शब्दोनी संकलना थई. आ वधा विषयो अने शब्दो लहिया द्वारा उताराईने एकत्रित करावाता हता. ___नाम--आ कोषनुं नाम 'श्रीअल्पपरिचितसैद्धान्तिकशब्दकोष' राखवामां आव्यु छे. कारण एछे के-आ कोषमां आगमोमां वपरायेला तमाम शब्दो नथी, परंतु जे शब्दनो परिचय अल्प ४ आगमो छपाववा माटे भोयणीतीर्थमां सं. १९७१ना गहा सुद १० ने सोमवार २५-१-१९१५ना दिवसे श्रीआगमोदयसमितिनी स्थापना थई. आना अंगेनु आगमोद्धारककृत 'आगमसमितिस्थापनास्तव' अमारा संगदित आचारंगसूत्र (भाग १) (व्या. सं.) मां छपायु छे. स्थळ वि. सं. __ वाचना आपेल ग्रन्थोन नाम पाटण १९७१ श्रीदशवकालिक, श्रीसूत्रकृतांगसूत्र, २॥ पटनिशिकाओ। करडवणज श्रीललितविस्तरा, श्रीयोगदृष्टिसमुच्चय, श्रीअनुयोगद्वारसूत्र १२. श्रीआवश्यकसूत्र ५८ श्री उत्तराध्ययनसूत्र १३। अमदावाद १९७३ श्रीनिशेषावश्यकसूत्र ८४, श्रीस्थानांगसूत्र १२। सूरत श्रीविशेषावश्यकसूत्र १२, श्रीस्थानांगसूत्र १२, श्रीऔरपातिकसूत्र श्रीउत्तराध्ययनसूत्र २३, श्रीआचारांगसूत्र । । श्रीआवश्यकसूत्र ३५, आचारांगसूत्र १२, श्रीअनुयोगद्वारसूत्र १/२, धीनन्दीसूत्र। पालीनाणा श्रीओधनियुक्ति, श्रीविण्डनियुक्ति, श्रीभगवर्त सूत्र ८४१, श्रीप्रज्ञापनासूत्र ३३/३६। रतलाम (मालवा) १९७७ श्रीभगवतीसूत्र ३३ ८१, श्रोप्रज्ञापनासूत्र ३.३६, श्रीसमवायांगसूत्र सूरत Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016074
Book TitleAlpaparichit Siddhantik Shabdakosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Sagaranandsuri
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1954
Total Pages296
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationDictionary, Dictionary, & agam_dictionary
File Size21 MB
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