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________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश नथी. ६२५ (२२) सम्यचो. (१७मी उत्तरार्ध) मां थया अने थास्ये जे सिद्ध अंश निगोद अनंत प्रसिद्ध, तो जिनशासन सी भयहाणि, बिंदु गयै जलधि सी काणि. (९२) संपादके 'काणि 'नो 'हानि, खोट' एवो अर्थ आप्यो छे ते संदर्भ जोतां यथायोग्य लागे छे. स्वोपज्ञ बालावबोधमां पण 'काणि' शब्द एम ने एम रह्यो छे पण कथयितव्य स्पष्ट छे : "जे जीवो सिद्ध थया छे अने थशे ए तो निगोदना अनंतमा भाग समान छे, एथी प्रतिपक्षी माने छे तेम जिनमतमां संसारने कशो भय, कशी हानि नथी संसार चाल्या ज करवानो छे, जेम सागरमांथी एक बिंदु ओछु थये सागरने कोई हानि के खोट नथी." आ, वळी, 'काणी' शब्दनी एक विशिष्ट अर्थछाया छे, जोके 'संकोच' एअर्थमांथी 'ओछप, खोट' एवा अर्थ सुधी जई शकाय. (आ अर्थ माटे जुओ हवे पछी क्र. २४.) थोड़ी शब्दार्थचर्चा (२३) जगन्नाथकृत 'सुदामो' (१७०० आसपास ) ( महाकवि प्रेमानंद अने बीजा आठ कविओना सुदामाचरित्र, संपा. मंजुलाल र. मजमुदार, १९२२) रखे काण्य (?) करता किशी तो मागतां मन मांहे. (१९) संपादके ' काण्य' विशे प्रश्नार्थ कर्यो छे, तेथी एमने ए शब्द बेठो नथी एम समजाय छे. परंतु अहीं एनो 'संकोच' अर्थ स्पष्ट छे : "मागतां मनमां जराये संकोच न राखशो.” छापाना थापा करूं, गान करूं केम काण्य ?, गीतानां बतां करूं, हरिकीर्तनमां हाण्य. - (२४) प्रीतमदासकृत 'दाणलीला' (१८मी सदी) (प्रीतमदासनां कृष्णभक्तिनां पदो, संपा. अश्विनभाई पटेल, १९८९, प्रस्ता. पृ. २९ तथा ७५ पर उद्धृत अंश ) मां - दूध दहींनी काण चलावे, छास दुर्लभ छे ब्रिजवासी. अहीं क्र. २४नो 'हानि, नुकसान' ए अर्थ ज संभवित लागे छे : “ (कृष्ण) दहीं दूधनुं घणुं नुकसान करे छे. तेथी व्रजवासीओने छास पण दुर्लभ थई गई छे." (२५) शामळकृत 'सूडाबहोतेरी' (१७६५) मां Jain Education International 2010_03 कुलटा भगतने पोतानो संग करवा कहे छे तेनो उत्तर आपतां भगत आ प्रमाणे कहे छे. आमां 'काय' शब्दनो शो अर्थ करवो ते जरा कोयडो छे. ए तो स्पष्ट छे के कुलटानुं सूचन भगतने हरिकीर्तनमां हानि समान लागे छे एमां 'छापा 'ना 'थापा', 'गान' नी ' काण्य', 'गीता' नां 'बतां' करवा जेवुं एमने लागे छे. 'थापा' 'बतां' ए शब्दो द्वारा अहीं शुं अभिप्रेत छे ते स्पष्ट नथी, पण कंईक विपरीत स्थिति उद्दिष्ट छे ए तो For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016071
Book TitleMadhyakalin Gujarati Shabdakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayant Kothari
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1995
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size12 MB
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