SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 707
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश (१३) आरारा. - अंतर्गत पूजाऋषिकृत 'आरामशोभा रास' (१५९६) मां - राजा बोलइ, 'म करु काणि, जोसी जंपइ मधुरी वांणि, 'करउ सजाई वीवाह तणी, जिम सुख हुवइ राजा भणी.' (७२-७३) प्रधान विद्युत्प्रभाना पिताने राजा पासे लावे छे ते प्रसंगनुं आ वर्णन छे. अहीं पण 'काणि'नो 'लज्जा, संकोच' ए अर्थ स्पष्ट छे. राजाना शब्दोनुं तात्पर्य एम छे के लज्जा, संकोच राख्या विना तारी शी इच्छा छे ते कहे, जेना जवाबमां ए ब्राह्मण (जोशी) विवाहनी तैयारी करवानुं सूचवे छे. (१४) कर्पूमं. (१६१९ ) मां - ६२१ थोडी शब्दार्थचर्चा उलग करतुतु, प्रभु, ताहरी, कसी काणि म आणेस माहरी. (३१६) प्रधान राजकुमारना शयनगृहमां छुपाईने सर्पने मारीने राजाने चोथी घातमांथी बचावे छे ने राणीना स्तन पर पडेला लोहीना छांटाने लूछवा जाय छे, त्यारे राजकुमार जागी जाय छे. प्रधानना हाथमां तलवार जोईने ए चमके छे, चिंतातुर बने छे अने पूछे छे "आ ते तारी रीत ? निर्लज थईने हाथमां खड्ग लंईने जोतो हतो ?" जवाबमां प्रधान उपरनी उक्ति बोले छे. संपादके, अलबत्त संदर्भने आधारे ज, अहीं 'काण' नो अर्थ 'शंका' कर्यो छे. ए अर्थ लेतां पंक्तिनो अनुवाद आम थाय "स्वामी, हुं तमारी सेवा करतो हतो, मारा पर कशी शंका न लावशो." 'शंका' ए अर्थ आ संदर्भमा बराबर बेसी जाय छे. राजकुमार तरत प्रधानने शिक्षा कराववानुं मनमां विचारी पण ले छे, परंतु परंपरामांथी ए अर्थने टेको मळतो नथी ने आगळनी पंक्तिमा 'निर्लज' शब्द वपरायो छे ते जोतां अहीं 'लज्जा, संकोच' नो अर्थ रहेलो मानवो (मारी कशी शरम न राखशो, मारो कशो संकोच न राखशो) के 'शरम, संकोच' ए अर्थमांथी 'शंका' नो अर्थ विकस्यो छे एम मानवुं के पछी 'खटको / (शंकानुं) शल्य' एवो अर्थ लेवो ते कोयडो छे. ('खटको' ए अर्थ माटे जुओ क्रमांक १४ अने २० . ) (१५) जिनरा. - अंतर्गत जिनराजसूरिकृत 'वइरकुमार गीत' (१७मी सदीनुं पहेलुं चरण)मां - जउ तइ कही अवगणी, धोटा, करि लोगणकी काण, धोटा, तउ परदेशी मीत ज्युं, धोटा, ऊठि चलेसी प्राण, धोटा. Jain Education International 2010_03 (४, पृ.७१-७२ ) दीक्षा लई संयममार्गे पळेला वज्रस्वामीनी मातानी पुत्रवात्सल्यनी लागणी व्यक्त करता गीतनी आ कडी छे. संपादके 'काण' शब्दनो 'लिहाज' (लज्जा, संकोच, अदब, मलाजो) अर्थ आप्यो छे ते यथायोग्य छे. माता अहीं कहे छे के लोकलाजने कारणे जो तुं मने अवगणीश तो हे पुत्र, मारा प्राण परदेशी मित्रनी पेठे चाली नीकळशे. For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016071
Book TitleMadhyakalin Gujarati Shabdakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayant Kothari
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1995
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy