SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 701
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ६१५ . थोडी शब्दार्थचर्चा तो 'झघडो' अर्थ बेसे छे. “अमारी साथे दुश्मनावट न कर / वेर न बांध" एम अर्थ पण लई शकाय. (४) रत्नप्रभसूरिकृत 'रिसह-पारण-संधि' (११८२) (संधिकाव्यसमुच्चय, संपा. र. म. शाह, १९८०)मा - धणवंत दित न हु करहि काणि. (३, ३) "धनवान लोको दान देवामां 'काणि' करता नथी" ए वाक्यमां 'काणि'नो 'वेर', 'झघडो' के 'कलंक' अर्थ न ज बेसे, 'संकोच' एवो अर्थ ज बेसे. राजस्थानी-गुजरातीमां 'शरम, संकोच' एवा अर्थमां 'काणि' शब्द वापरवानी दीर्घ परंपरा मळे छे पण ए शब्द आटलो वहेलो आ अर्थमां वपरायेलो मळे छे ए खास नोंधपात्र छे. अपभ्रंशमां 'झघडो' ए अर्थनी व्यापक परंपरानी साथे आ अर्थ- अस्तित्व सविशेष नोंधपात्र बने. (५) मेरुतुंगाचार्यकृत 'प्रबंधचिंतामणि' (१३०५) (संपा. जिनविजय मुनि, १९३३)मां - लच्छि-वाणि मुहकाणि, सा पइं भागी मुह मरउं, हेमसूरि-अत्याणि, जे ईसर ते पंडिया. (पृ.९२, पद्य २०२) हेमचंद्राचार्यनी प्रशस्ति करवानी स्पर्धामां ऊतरेला बे चारणोमांनो एक एमने आवता जोईने आ प्रमाणे कहे छे – “लक्ष्मी अने सरस्वती वच्चे जे 'मुहकाणि' छे, ते तें मिटावी. हुं तारा मों पर ओळघोळ थाउं छं. हेमसूरिनी सभामां जेओ श्रीमंत छे तेओ पंडित पण छे." लक्ष्मी अने सरस्वती एक स्थाने रहेतां नथी, ए रीते एमनी वच्चे 'वेर' के 'झघडो' होवानी वात जाणीती छे. एटले अहीं 'मुहकाणि'नो एवो कोई अर्थ लेवानो थाय. 'मुह' शब्दने लक्षमां लईए एटले 'बोलचालनो झघडो' एम करवानु थाय. 'कलंक' के 'शरम, संकोच' ए अर्थने अहीं अवकाश जणातो नथी. आम, अपभ्रंशनां चार उदाहरणोमां 'काणि' शब्दनो जे एक अर्थ सुसंगत अने सरळ रीते बेसे छे ते 'झघडो' छे. एथी एनी प्रमाणभूतता सौथी वधारे गणाय. ए चार उदाहरणोमांथी त्रणेकमां 'वेर' ए अर्थने अवकाश रहे छे, पण 'शरम, संकोच' ए अर्थने लगभग अवकाश नथी. एक उदाहरणमां 'वेर', 'झघडो' ए अर्थाने बिलकुल अवकाश नथी ने निर्विवाद रीते 'संकोच'नो अर्थ बेसे छे, जे अर्थने पछीनी परंपरानो टेको छे. आ परथी 'झघडो'ना अर्थमां 'काणि' ए अपभ्रंशमां जूनो प्रयोग होवानु समजाय. 'लज्जा, संकोच'ना अर्थमा 'काणि'नो प्रयोग ए पाछळनो फणगो समजाय. पछीथी लंने प्रयोगो साथे चालता होवा, पण आ उदाहरणो बतावे छे. Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016071
Book TitleMadhyakalin Gujarati Shabdakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayant Kothari
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1995
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy