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शृंगामं.
षडाबा.
(जयवंतसूरिकृत) शृंगारमंजरी (शीलवतीचरित्र रास), संपा. कनुभाई व्र. शेठ, प्रका. लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्यामंदिर, अमदावाद, १९७८.
कृति १५५८ (सं.१६१४)मां रचायेली छे.
शब्दकोशमा ५०० उपरांत शब्दो छे. केटलाक शब्दोमां व्युत्पत्ति दर्शावी छे. शब्दकोशमा केटलीक छापभूलो रही गई छे. असंगत शब्द अने अर्थ पण एक स्थाने आवी गयेल छे ने वर्णक्रमभंग पण थयो छे. (तरुणप्रभाचार्यकृत) षडावश्यक बालावबोध, संपा. प्रबोध बे. पंडित, प्रका. भारतीय विद्याभवन, मुंबई, १९७६.
कृति १३५५ (सं.१४११)मां रचायेली छे.
शब्दकोशमा आशरे २३०० शब्दो छे. शब्दकोश सर्वग्राही करवानो आशय जणाय छे तेथी 'अमुक' 'अरण्य' 'आदित्यु' 'आकर्षइ' जेवा शब्दो जोवा मळे छे, जोके छतां कृतिमांना अनेक मध्यकालीन शब्दो कोशमां आवी शक्या नथी. शब्दोना अर्थ अंग्रेजीमां छे ने एमने विशे व्याकरण तथा व्युत्पत्तिविषयक वीगते नोंध छे, अन्यत्र मळता समांतर प्रयोगो पण नोंध्या छे. अनुस्वारवाळा शब्दो जेते वर्णमां छेल्ले लीधा छे, जेमके 'कौशाम्बी' पछी 'कंपावतउ' 'कांगुण' वगेरे आवे छे, जोके 'कृमि' ए पछी छे. शब्दोना रूपभेदो पेटामां मूक्या छे ने एकथी वधु स्थाननिर्देश कर्या छे. (नेमिचन्द्र भंडारीविरचित) षष्टिशतक प्रकरण (त्रण बालावबोध सहित), संपा. भोगीलाल ज. सांडेसरा, प्रका. महाराजा सयाजीराव विश्वविद्यालय, वडोदरा, १९४३.
मूळ प्राकृत कृति परना त्रण बालावबोधो १४४०(सं.१४९६)थी १४६९ (सं.१५२५)नां रचनावर्षों बतावे छे.
शब्दकोश स्वाभाविक रीते जत्रण गुजराती बालावबोधोनो छे. एमां २७५ जेटला शब्दो छे. शब्दोनां व्याकरणी रूपो ओळखाव्यां छे, व्युत्पत्ति आपी छे अने अर्थविषयक विस्तृत नोंधो करी छे. स्थाननिर्देश बधा ज करवानी नेम जणाय छे. 'रुलइ' पछी 'कुटकई' अने 'इ' आवे एटलो मोटो वर्णक्रमभंग पण थयेल छे. उच्चारभेदवाळां शब्दो एक मुख्य शब्दना पेटामां दर्शाव्या छे.
त्रण बालावबोधो लगभग समांतर चालता होई, एक बालावबोधना शब्दनो खुलासो बीजा बालावबोधमांथी मळे एवं बने छे.
षष्टिप्र.
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