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________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ६१३ थोडी शब्दार्थचर्चा एवी व्युत्पत्ति सूचवे छे. (३) के. का. शास्त्री (नळाख्यान, १९५६) सं.अप-शृंखल परथी 'उसींकल' आव्यो होवानी शक्यता दर्शावे छे. (४) कांतिलाल ब. व्यास (कान्हडदे प्रबंध, भा.३-४, १९७७) सं.उपसंग्रह, प्रा.उव-संग्रह साथे 'उसींकल'ने सरखाववानुं सूचवे छे. आमांथी बीजी व्युत्पत्ति वधारे प्रतीतिकर जणाय छे. सं.उत्+शृंखल परथी आवेलो बीजो एक शब्द 'उच्छंखल' (मध्यकाळनो 'उछंकल') आपणने जाणीतो छे. एमां नियमनी शृंखला छोडी देवानो अर्थ छे त्यारे 'उसींकल'मां ऋण के भारनी शृंखला. एकमां अ-पालननो अर्थ छे, बीजामां पालननो अर्थ विकसे छे अने आम एक ज मूळमांथी आवेला बन्ने शब्दो, अंते, अर्थना बे विरुद्ध छेडा व्यक्त करता देखाय छे. शब्दार्थना इतिहासनो आ कौतुकमय दाखलो छे. [फार्बस गुजराती सभा त्रैमासिक, जान्यु.-मार्च, १९९०] ४५. काण, काणि, काणी, कांणि, कुलकाणि, मुहकाणि 'काण' शब्द अत्यारे 'मरण पाछळनी रोककळ, खरखरो, दिलसोजी' ए अर्थमां जाणीतो छे. 'काणे जवु' 'काण मांडवी' 'मोंकाण’ ‘काण-मोंकाण' वगेरे प्रयोगो आपणने मळे छे. आपणा कोशो 'काण' शब्दनो आ अर्थ ज नोंधे छे; भगवद्गोमंडल बीजा घणा अर्थो नोंधे छे, पण तेमांथी केटलाक संस्कृत शब्दकोशने आधारे मुकायेला जणाय छे, तो बीजा केटलाक अर्थोनी प्रमाणभूतता शंकास्पद जणाय छे. ___'एना घरमां तो रोज आम काण मंडाय छे', 'ए दुखियाराए मारी पासे मोंकाण मांडी' जेवा 'काण'ना लाक्षणिक प्रयोगो पण व्यवहारमा सांभळवा मळे छे, जेमा 'दुःख के झघडानु वातावरण', 'दुःखभरी कथनी' ए अर्थो विकस्या छे. पण आपणा कोशोए व्यवहारना आ प्रयोगोनी नोंध नथी लीधी, भगवद्गोमंडले पण नहीं. . ____ 'काण' शब्दनो पूर्व-इतिहास तो आपणने थोडो मूझवे एवो छे. छेक अपभ्रंश-काळथी आ शब्द वपरातो आव्यो छे अने एमां विभिन्न अर्थछायाओ जोवा मळे छे. अहीं, आजे जाणीता अर्थथी जुदा अर्थोमां आ शब्द प्रयोजायो छे तेनी नोंध लेवानो उपक्रम छे. अपभ्रंशना अने गुजरातीना 'काण' शब्दना प्रयोगो बहुधा जुदी अर्थपरंपरा दर्शावे छे तेथी ए बन्नेने अलग पाडीने आपणे वात करीशुं. (अपभ्रंशना प्रयोगो डॉ. हरिवल्लभ भायाणी पासेथी मने प्राप्त थया छे, अनुवाद साथे.) अपभ्रंशना प्रयोगो (१) स्वयंभूकृत 'पउमचरिय' (नवमी सदीनु चोथु चरण) (संपा. हरिवल्लभ चू, Jain E.97.3 international 2010_03 For Private & Personal Use Only .. www.jainelibrary.org
SR No.016071
Book TitleMadhyakalin Gujarati Shabdakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayant Kothari
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1995
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size12 MB
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