________________
थोडी शब्दार्थचर्चा
५९६
मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश
लाव्या.)
ए नोंधपात्र छे के संस्कृत कोश 'अंक' एटले 'बगल' अने 'अंकपालिका' एटले 'आलिंगन' एवा अर्थो आपे छे.
३७. आधु, आघेलं 'आधु' शब्द अत्यारे सामान्य रीते 'दूर'ना अर्थमां वपराय छे. 'आघो आव' एटले 'पासे आव' एवो प्रयोग विरल छे. परंतु मध्यकाळमां 'आधु' शब्द 'आगळ, पासे, नजीक' एवा अर्थमां ज मोटे भागे वपरातो जोवा मळे छे. जेमके, विक्रच.मां -
थरहर कंपइ नावइ आष. (थरथर कंपे छे अने नजीक आवतो नथी.) संपादके 'आघा, दूर' एवो अर्थ आप्यो छे ते खोटो छे. आरारा.मां -
जेतलि जोई आधु थई, आराम उपरे मीट ज गई. (आगळ / पासे जईने जुए छे त्यां बगीचा उपर नजर.गई.)
तव जोवइ ते आधी थाइ, उणि हत्यारी लाधउ दाइ. (त्यारे आगळ / पासे जईने ते जुए छे. पेली हत्यारीने लाग मळी गयो.) संपादके 'आगळ' अर्थ आप्यो छे ते चाले तेम छे. नलाख्या.मां -
एहवू कही रथ आषु खेड्यु. (एवं कहीने एणे रथ आगळ चलाव्यो.)
आधेत जईनि चीतवि. (आगळ जईने विचार करे छे.)
संपादके 'दूर' एवो अर्थ आप्यो छे, ते बीजा उदाहरणमां बंधबेसतो लागे, पण 'आगळ' अर्थ लेवो ज उचित छे. पहेला उदाहरणमां 'आगळ' ए अर्थर्नु औचित्य स्पष्ट
नरप(द).मां -
नासी जाए, आषो आवे, सुंदर सांम. (सुंदरश्याम घडीक नासी जाय छे, घडीक पासे / नजीक आवे छे.) संपादके 'नजीक' अर्थ आप्यो छे ए बराबर छे. नरसिंह महेताना एक बीजा पदमां पण आवी पंक्ति मळे छ : __ आषा आवीने आलिंगन मागे.
Jain Education International 2010_03
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org